लॉकडाउन 3.0 में 4 मई से विभिन्न राज्यों के ग्रीन व ऑरेंज जोन में ट्रकों की सामान्य आवाजाही शुरू हो रही है। नेशनल परमिट वाले करीब पांच लाख ट्रक सड़कों पर निकलेंगे। सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का सबब यह है कि ये ट्रक कोरोना वायरस संक्रमण का बड़ा जरिया बन सकते हैं।
ये ट्रक कोरोना की जीती हुई लड़ाई को हार में बदल सकते हैं। हर राज्य में दूसरे प्रदेशों के मजदूरों की भारी तादाद अपने घर जाने के लिए तैयार बैठी है। वे लोग इन ट्रकों में छिपकर जाने का हर संभव प्रयास करेंगे।
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के अध्यक्ष कुलतरण सिंह अटवाल का कहना है कि दोनों लॉकडाउन में बड़ी संख्या में ऐसे ट्रक पुलिस ने पकड़े हैं, जो गैरकानूनी तरीके से मजदूरों को ले जा रहे थे। हमने अपने सभी ट्रक ड्राइवरों से कहा है कि वे लॉकडाउन 3.0 में ऐसी हरकत न करें।
हालांकि ड्राइवर पैसे के लालच में आकर ये गलती करेंगे, हमें मालूम है। ऐसी स्थिति में विभिन्न राज्यों की पुलिस को ही कुछ करना होगा। पुलिस को हर ट्रक की तलाशी लेनी चाहिए।
मजदूरों के पास चिकित्सा जांच का कोई दस्तावेज नहीं होता
लॉकडाउन के दोनों चरणों में अनेक ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें ट्रक या दूसरे कमर्शियल वाहनों में मजदूर एक जगह से दूसरे शहर में जाते हुए पकड़े गए हैं। मजदूरों के इस अवैध सफर में सबसे बड़ा खतरा यह रहता है कि इनके पास चिकित्सा जांच का कोई दस्तावेज नहीं होता।
न तो ट्रक डाइवर जानता है कि इनमें से किसी व्यक्ति में कोरोना वायरस का कोई संक्रमण है और न ही मजदूरों को मालूम होता कि वे इस महामारी से बचे हैं या संक्रमण का शिकार हो गए हैं। ये मजदूर ड्राइवर या क्लीनर को थोड़े बहुत पैसे देकर ट्रक में बैठ जाते हैं।
कुलतरण सिंह बताते हैं कि हमनें अपने सभी ड्राइवरों से कहा है कि वे इस तरह की हरकत न करें। उनकी यह हरकत किसी भी राज्य या शहर में कोरोना की जीती हुई लड़ाई को हार में बदल सकती है। ऐसे में जब पुलिस उस ट्रक को जब्त कर लेती है तो इसका नुकसान ट्रक मालिक को भुगतना पड़ता है।
ट्रक चालकों की इन दिक्कतों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के पदाधिकारी कहते हैं कि कोरोना की इस लड़ाई में सरकार ने ट्रक चालकों की तरफ ध्यान नहीं दिया है। चालक, क्लीनर और माल चढ़ाने-उतारने वालों का तो बीमा भी नहीं है। बहुत से मजदूर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें डर लगता है कि संक्रमित हो जाएंगे।
वे किसी भी तरह से अपने घर जाना चाहते हैं। ट्रक चालक और क्लीनर की तो और भी ज्यादा बुरी हालत है। उन्हें अपने गांव में घुसने ही नहीं दिया जा रहा। सरपंच और दूसरे ग्रामीण ट्रक चालकों को शक की निगाह से देखते हैं। कई जगह पर उनका बहिष्कार तक किया जा रहा है।
ट्रक डाइवर जब कहीं से माल भरकर चलता है, तो उसे यह बता दिया जाता है कि वह माल उतरवाने के लिए मजदूरों का इंतजाम भी कर ले। इस वजह से भी ट्रक चालक बीच में मजदूरों को बैठा लेते हैं। ऐसे में उन्हें कुछ पैसे भी मिल जाते हैं और सामान भी उतर जाता है।
हालांकि उन्हें इतनी समझ नहीं होती कि वे इसके जरिए खुद और दूसरे लोगों को कितने बड़े खतरे में डाल रहे हैं।
मजदूर इसलिए उठा रहे हैं यह जोखिम
विभिन्न राज्यों में लाखों मजदूर फंसे हैं। कुछ रूट पर ट्रेन चलाई गई हैं। एक ट्रेन में 1000-1200 लोग जा रहे हैं। हालांकि अभी ये श्रमिक स्पेशन ट्रेन नियमित तौर पर नहीं चली हैं। बिहार के करीब 25 लाख मजदूर दूसरे राज्यों में हैं। वे सभी अपने घर जाना चाह रहे हैं।
इसी तरह यूपी के अधिकांश मजदूर महाराष्ट्र एवं दूसरे राज्यों में अपनी घर वापसी का इंतजार कर रहे हैं। हर राज्य अपने मजदूरों को जल्द से जल्द घर वापस लाना चाहता है। रविवार तक करीब 18 राज्यों ने रेलवे को अपनी सूची सौंप दी है।
इसमें स्टेशनों के नाम भी दे दिए हैं कि फलां स्टेशनों पर गाड़ी रोकी जाए। इस प्रक्रिया में अभी लंबा समय लगेगा। मजदूरों की मेडिकल जांच और उनके होम क्वारंटीन के चलते भी इसमें समय लग रहा है। यही वजह है कि मजदूर, ट्रक या दूसरे वाहनों में छिपकर अपने घर जाने का प्रयास करते हैं।
लॉकडाउन 3.0 में जब बड़ी संख्या में ट्रक चलेंगे तो उनमें मजदूर भी कहीं न कहीं बैठे मिल सकते हैं। पहले यह कहा जा रहा था कि 4 मई से 30-40 लाख ट्रक चल सकते हैं, लेकिन अब तीन तरह के जोन के चक्कर में ट्रक चालक भी फंस गए हैं।
कौन सा राज्य उन्हें अपने यहां घुसने देगा या नहीं, ये अभी तय नहीं हो पा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय कह चुका है कि ट्रकों को जो पास पहले जारी किए गए थे, वही पास दूसरे राज्यों में जाने के लिए पर्याप्त हैं। अलग से पास जारी नहीं होंगे।
अब इस नियम को भी कुछ राज्य अपने तरीके से लागू कर रहे हैं। ऐसे में ट्रक चालकों के लिए एक नई समस्या आ खड़ी हुई है। उन्हें नहीं मालूम कि एक जगह से चलने के बाद वे कहां रोक दिए जाएंगे।