डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, काठमांडू
Updated Mon, 01 Jun 2020 09:39 PM IST
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली
– फोटो : फाइल
नेपाल सरकार की ओर से पेश संविधान संशोधन विधेयक को समर्थन देने के साथ ही नेपाली कांग्रेस अपनी तरफ से भी संविधान में संशोधन के लिए एक प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में है। ये प्रस्ताव तीन साल पुराना है जब नेपाल के प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा थे। इस प्रस्ताव में मधेस इलाके की पार्टियों से जुड़ी मांगें हैं जिसे तब विपक्ष में बैठने वाली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी और यूएमएल की वजह से पास नहीं कराया जा सका था। तब सीपीएन-यूएमएल के नेता केपी शर्मा ओली थे, जो आज प्रधानमंत्री हैं।
नेपाली कांग्रेस की केंद्रीय समिति की बैठक में ये फैसला किया गया कि उस संशोधन प्रस्ताव को फिर से पेश किया जाए। ओली सरकार की ओर से पेश नेपाल के नये नक्शे पर भी नेपाली कांग्रेस ने अपनी मुहर लगाई जिसमें लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को नेपाल का हिस्सा बताया गया है। नेपाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष बिमलेंद्र निधि ने बताया कि बैठक में ये तय किया गया कि मधेसियों की मांगों को शामिल करते हुए ये संशोधन प्रस्ताव पार्टी पेश करेगी जिसमें 2015 के संविधान के प्रावधानों को व्यापक मंजूरी देने की बात होगी।
मधेस इलाकों में सबसे मजबूत जनाधार वाली नेपाल की दो प्रमुख पार्टियां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता पार्टी लंबे समय से ये मांग उठाती रही हैं कि मधेसियों को नेपाल के नागरिकों की ही तरह समान नागरिक माना जाए और सीमाओं को चिह्नित किया जाए। पिछले हफ्ते इन दोनों पार्टियों के नेता देउबा से मिले थे और अपनी मांगों को शामिल करते हुए संविधान संशोधन की बात कही थी। देउबा ने इसे गंभीरता से लेते हुए पार्टी की बैठक में ये प्रस्ताव रखा।
पार्टी बैठक में ये तय किया गया कि ओली सरकार के मौजूदा संविधान संशोधन में इन मांगों को भी शामिल किया जाए। या फिर इसके लिए अलग से संविधान में बदलाव किया जाए। नेपाली कांग्रेस के सांसद गगन थापा के मुताबिक मधेसियों की मांगों वाला यह संविधान संशोधन प्रस्ताव मौजूदा प्रस्ताव के पास होते ही रखा जाएगा। उनका कहना है कि नेपाली कांग्रेस मधेसियों की मांगों को लेकर खासी गंभीर है और उनके प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
दरअसल नेपाल की सियासत में इसे विपक्ष का नया पैंतरा भी माना जा रहा है। इसे मधेसियों के समर्थन के साथ ही विपक्ष की ताकत बढ़ाने वाला एक कदम भी माना जा रहा है। जानकारों के मुताबिक नेपाली जनता की भावनाओं को समझते हुए एक तरफ तो नेपाली कांग्रेस सरकार के मौजूदा संशोधन विधेयक को अपना समर्थन दे रही है, दूसरी तरफ अलग से नये संविधान संशोधन की बात करके सत्ताधारी पार्टी के समानांतर विपक्ष की गोलबंदी की कोशिश भी कर रही है।
सार
- नेपाल की जनता की भावनाओं को देखते हुए मौजूदा संशोधन को भी दिया समर्थन
- तीन साल पहले लाए गए प्रस्ताव को फिर लाने की तैयारी, मधेस पार्टियों का समर्थन
विस्तार
नेपाल सरकार की ओर से पेश संविधान संशोधन विधेयक को समर्थन देने के साथ ही नेपाली कांग्रेस अपनी तरफ से भी संविधान में संशोधन के लिए एक प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में है। ये प्रस्ताव तीन साल पुराना है जब नेपाल के प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा थे। इस प्रस्ताव में मधेस इलाके की पार्टियों से जुड़ी मांगें हैं जिसे तब विपक्ष में बैठने वाली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी और यूएमएल की वजह से पास नहीं कराया जा सका था। तब सीपीएन-यूएमएल के नेता केपी शर्मा ओली थे, जो आज प्रधानमंत्री हैं।
नेपाली कांग्रेस की केंद्रीय समिति की बैठक में ये फैसला किया गया कि उस संशोधन प्रस्ताव को फिर से पेश किया जाए। ओली सरकार की ओर से पेश नेपाल के नये नक्शे पर भी नेपाली कांग्रेस ने अपनी मुहर लगाई जिसमें लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को नेपाल का हिस्सा बताया गया है। नेपाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष बिमलेंद्र निधि ने बताया कि बैठक में ये तय किया गया कि मधेसियों की मांगों को शामिल करते हुए ये संशोधन प्रस्ताव पार्टी पेश करेगी जिसमें 2015 के संविधान के प्रावधानों को व्यापक मंजूरी देने की बात होगी।
मधेस इलाकों में सबसे मजबूत जनाधार वाली नेपाल की दो प्रमुख पार्टियां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता पार्टी लंबे समय से ये मांग उठाती रही हैं कि मधेसियों को नेपाल के नागरिकों की ही तरह समान नागरिक माना जाए और सीमाओं को चिह्नित किया जाए। पिछले हफ्ते इन दोनों पार्टियों के नेता देउबा से मिले थे और अपनी मांगों को शामिल करते हुए संविधान संशोधन की बात कही थी। देउबा ने इसे गंभीरता से लेते हुए पार्टी की बैठक में ये प्रस्ताव रखा।
पार्टी बैठक में ये तय किया गया कि ओली सरकार के मौजूदा संविधान संशोधन में इन मांगों को भी शामिल किया जाए। या फिर इसके लिए अलग से संविधान में बदलाव किया जाए। नेपाली कांग्रेस के सांसद गगन थापा के मुताबिक मधेसियों की मांगों वाला यह संविधान संशोधन प्रस्ताव मौजूदा प्रस्ताव के पास होते ही रखा जाएगा। उनका कहना है कि नेपाली कांग्रेस मधेसियों की मांगों को लेकर खासी गंभीर है और उनके प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
दरअसल नेपाल की सियासत में इसे विपक्ष का नया पैंतरा भी माना जा रहा है। इसे मधेसियों के समर्थन के साथ ही विपक्ष की ताकत बढ़ाने वाला एक कदम भी माना जा रहा है। जानकारों के मुताबिक नेपाली जनता की भावनाओं को समझते हुए एक तरफ तो नेपाली कांग्रेस सरकार के मौजूदा संशोधन विधेयक को अपना समर्थन दे रही है, दूसरी तरफ अलग से नये संविधान संशोधन की बात करके सत्ताधारी पार्टी के समानांतर विपक्ष की गोलबंदी की कोशिश भी कर रही है।
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