Supreme Court Grants Protection To Lawyer Prashant Bhushan Against Coercive Action In A Case Of Hurting Religious Sentiments Of Hindus – प्रशांत भूषण के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में एफआईआर, सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत




न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Fri, 01 May 2020 03:36 PM IST

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अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ गुजरात के राजकोट में दर्ज की गई एक एफआईआर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भूषण को किसी प्रकार की बलपूर्वक कार्रवाई से राहत दी है। प्रशांत भूषण के खिलाफ यह एफआईआर कथित रूप से हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में दर्ज की गई है। 

यह एफआईआर पूर्व सैन्य अधिकारी जयदेव रजनीकांत जोशी ने दर्ज कराई थी। जोशी ने आरोप लगाया है कि प्रशांत भूषण ने पूरे देश में कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत के दोबारा प्रसारण के खिलाफ ट्वीट कर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। 

जोशी ने अपनी शिकायत में भूषण पर आरोप लगाा कि उन्होंने 28 मार्च को एक ट्वीट में रामायण और महाभारत के लिए ‘अफीम’ शब्द का इस्तेमाल करके हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत किया है। 

कोर्ट ने प्रशांत भूषण को किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम राहत और संरक्षण प्रदान करते हुए कहा, ‘कोई भी व्यक्ति टीवी पर कुछ भी देख सकता है।’ इसके साथ ही पीठ ने सवाल किया कि कोई किसी कार्यक्रम विशेष को नहीं देखने के लिए लोगों से कैसे कह सकता है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भूषण की याचिका पर सुनवाई की और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया। पीठ ने इस मामले को दो सप्ताह बाद आगे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

भूषण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने यह प्राथमिकी निरस्त करने का अनुरोध करते हुए पीठ से कहा कि फिलहाल उन्हें किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण प्रदान किया जाए।

दवे ने कहा कि वह इस मुद्दे पर नहीं है कि लोगों को क्या देखाना चाहिए और क्या नहीं बल्कि वह तो सिर्फ प्राथमिकी दर्ज किए जाने के खिलाफ ही बहस कर रहे हैं। इस बीच, रजिस्ट्री के सूत्रों ने बताया कि भूषण ने बृहस्पतिवार को यह यचिका दायर की थी और यह सुनवाई के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध हुई थी।

अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ गुजरात के राजकोट में दर्ज की गई एक एफआईआर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भूषण को किसी प्रकार की बलपूर्वक कार्रवाई से राहत दी है। प्रशांत भूषण के खिलाफ यह एफआईआर कथित रूप से हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में दर्ज की गई है। 

यह एफआईआर पूर्व सैन्य अधिकारी जयदेव रजनीकांत जोशी ने दर्ज कराई थी। जोशी ने आरोप लगाया है कि प्रशांत भूषण ने पूरे देश में कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत के दोबारा प्रसारण के खिलाफ ट्वीट कर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। 
जोशी ने अपनी शिकायत में भूषण पर आरोप लगाा कि उन्होंने 28 मार्च को एक ट्वीट में रामायण और महाभारत के लिए ‘अफीम’ शब्द का इस्तेमाल करके हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत किया है। 

कोर्ट ने प्रशांत भूषण को किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम राहत और संरक्षण प्रदान करते हुए कहा, ‘कोई भी व्यक्ति टीवी पर कुछ भी देख सकता है।’ इसके साथ ही पीठ ने सवाल किया कि कोई किसी कार्यक्रम विशेष को नहीं देखने के लिए लोगों से कैसे कह सकता है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भूषण की याचिका पर सुनवाई की और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया। पीठ ने इस मामले को दो सप्ताह बाद आगे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

भूषण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने यह प्राथमिकी निरस्त करने का अनुरोध करते हुए पीठ से कहा कि फिलहाल उन्हें किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण प्रदान किया जाए।

दवे ने कहा कि वह इस मुद्दे पर नहीं है कि लोगों को क्या देखाना चाहिए और क्या नहीं बल्कि वह तो सिर्फ प्राथमिकी दर्ज किए जाने के खिलाफ ही बहस कर रहे हैं। इस बीच, रजिस्ट्री के सूत्रों ने बताया कि भूषण ने बृहस्पतिवार को यह यचिका दायर की थी और यह सुनवाई के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध हुई थी।




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