न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Fri, 22 May 2020 06:46 PM IST
पाकिस्तान में शुक्रवार को एक भयावह हादसा हुआ। लाहौर से कराची आ रहा विमान एयरपोर्ट पर लैंड करने से कुछ देर पहले दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दुखद हादसे में 90 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका है। इस हादसे के पीछे के कारण तो अभी पता नहीं चल पाए हैं। मगर एक चीज जरूर सामने आई है कि यात्रियों की जान बचाने के लिए पायलट ने भरसक प्रयास किए। विमान के क्रैश होने से पहले जो रिकॉर्डिंग सुनी गई, उसमें पायलट जोर जोर से चिल्ला रहा है, ‘हमने एक इंजन गंवा दिया है…मेडे…मेडे।’ मगर उनका यह प्रयास विफल साबित हुआ।
दरअसल ‘मेडे’ एक कोड वर्ड है। इसका इस्तेमाल पायलट तभी करता है, जब संकट बहुत ही ज्यादा होता है। इस कोड वर्ड के जरिए वह एयर ट्रैफिक कंट्रोलर को तुरंत आपात स्थिति से अवगत कराने की कोशिश करता है।
इसी कोड वर्ड ने बचाई थी 194 जानें
वर्ष 2018 में अमेरिकी एयरलाइंस के एक विमान में सवार 194 यात्रियों की जान इसी कोड वर्ड की वजह से बच पाई थी। पायलट ने समझदारी दिखाते हुए ‘मेडे’ शब्द का प्रयोग किया था।
इस शब्द का इस्तेमाल साल 1923 में सबसे पहले हुआ था। इस शब्द का इस्तेमाल उस समय लंदन एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) के वरिष्ठ रेडियो अफसर फ्रेडरिक स्टेनली मैकफोर्ड ने किया था। मैकफोर्ड को उसके अधिकारियों ने ये जिम्मेदारी दी थी कि वह ऐसे शब्द को ईजाद करें जिसका आपात स्थिति में इस्तेमाल किया जा सके।
यह भी कहा गया कि शब्द ऐसा हो जिसे पायलट और ग्राउंड स्टाफ समझ सकें। लंदन से पेरिस के बीच एयर ट्रैफिक को कंट्रोल करने के दौरान मैकफोर्ड ने इस शब्द का इस्तेमाल किया। यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि मदद के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द हेल्प आपात स्थिति के अलावा भी इस्तेमाल किया जा रहा था। वहीं वॉइस रेडियो कम्यूनिकेशन के आम होते जाने के कारण एसओएस शब्द के समान भी एक शब्द चाहिए था। एयर ट्रैफिक कंट्रोल का काम करते हुए मैकफोर्ड को जो शब्द सूझा था, वो था ‘एम एडर’। इसका मतलब है मेरी मदद करो। इसी शब्द का अंग्रेजीकरण करते हुए मैकफोर्ड ने मेडे शब्द को चुना।
इस शब्द को अंतरराष्ट्रीय मंजूरी साल 1927 में वॉशिंगटन में हुए अंतरराष्ट्रीय रेडियो टेलीग्राफ सम्मेलन में मिली। तब इस शब्द को आधिकारिक वॉइस डिजास्टर कॉल घोषित किया गया। इसके साथ ही यह शर्त भी रखी गई कि शब्द का इस्तेमाल पायलट और रेडियो अधिकारी उसी समय कर सकते हैं जब उन्हें बचने का और कोई रास्ता न दिख रहा हो। हालांकि आजकल मेडे का इस्तेमाल समुद्री जहाज के कैप्टन और मरीन रेडियो कंट्रोलर भी करने लगे हैं।
तीन बार बोलना होता है मेडे
जानकारी के मुताबिक पायलट को तीन बार मेडे शब्द का इस्तेमाल करना होता है। ऐसा करने का फैसला इसलिए लिया गया ताकि बाकी आवाजों के बीच रेडियो कंट्रोलर इसे आसानी से पहचान सकें और इस बात को पक्का किया जा सके कि पायलट को सच में मदद की जरूरत है।
पायलट आपात स्थिति में पैन पैन शब्द का भी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इसका इस्तेमाल मेडे से कम जोखिम वाली स्थिति में किया जाता है। पैन पैन का संकेत दे पायलट जोखिम वाली स्थिति में मदद मांगता है। पैन पैन का संकेत उस समय दिया जाता है जब जान जोखिम में न हो लेकिन उड़ान में परेशानियां आ रही हों। लेकिन दोनों ही स्थितियों में विमान का नियंत्रण पायलट के हाथों में होता है।
पाकिस्तान में शुक्रवार को एक भयावह हादसा हुआ। लाहौर से कराची आ रहा विमान एयरपोर्ट पर लैंड करने से कुछ देर पहले दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दुखद हादसे में 90 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका है। इस हादसे के पीछे के कारण तो अभी पता नहीं चल पाए हैं। मगर एक चीज जरूर सामने आई है कि यात्रियों की जान बचाने के लिए पायलट ने भरसक प्रयास किए। विमान के क्रैश होने से पहले जो रिकॉर्डिंग सुनी गई, उसमें पायलट जोर जोर से चिल्ला रहा है, ‘हमने एक इंजन गंवा दिया है…मेडे…मेडे।’ मगर उनका यह प्रयास विफल साबित हुआ।
दरअसल ‘मेडे’ एक कोड वर्ड है। इसका इस्तेमाल पायलट तभी करता है, जब संकट बहुत ही ज्यादा होता है। इस कोड वर्ड के जरिए वह एयर ट्रैफिक कंट्रोलर को तुरंत आपात स्थिति से अवगत कराने की कोशिश करता है।
इसी कोड वर्ड ने बचाई थी 194 जानें
वर्ष 2018 में अमेरिकी एयरलाइंस के एक विमान में सवार 194 यात्रियों की जान इसी कोड वर्ड की वजह से बच पाई थी। पायलट ने समझदारी दिखाते हुए ‘मेडे’ शब्द का प्रयोग किया था।
1923 में पहली बार हुआ था इस्तेमाल
इस शब्द का इस्तेमाल साल 1923 में सबसे पहले हुआ था। इस शब्द का इस्तेमाल उस समय लंदन एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) के वरिष्ठ रेडियो अफसर फ्रेडरिक स्टेनली मैकफोर्ड ने किया था। मैकफोर्ड को उसके अधिकारियों ने ये जिम्मेदारी दी थी कि वह ऐसे शब्द को ईजाद करें जिसका आपात स्थिति में इस्तेमाल किया जा सके।
यह भी कहा गया कि शब्द ऐसा हो जिसे पायलट और ग्राउंड स्टाफ समझ सकें। लंदन से पेरिस के बीच एयर ट्रैफिक को कंट्रोल करने के दौरान मैकफोर्ड ने इस शब्द का इस्तेमाल किया। यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि मदद के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द हेल्प आपात स्थिति के अलावा भी इस्तेमाल किया जा रहा था। वहीं वॉइस रेडियो कम्यूनिकेशन के आम होते जाने के कारण एसओएस शब्द के समान भी एक शब्द चाहिए था। एयर ट्रैफिक कंट्रोल का काम करते हुए मैकफोर्ड को जो शब्द सूझा था, वो था ‘एम एडर’। इसका मतलब है मेरी मदद करो। इसी शब्द का अंग्रेजीकरण करते हुए मैकफोर्ड ने मेडे शब्द को चुना।
1927 में इस शब्द को मिली मंजूरी
इस शब्द को अंतरराष्ट्रीय मंजूरी साल 1927 में वॉशिंगटन में हुए अंतरराष्ट्रीय रेडियो टेलीग्राफ सम्मेलन में मिली। तब इस शब्द को आधिकारिक वॉइस डिजास्टर कॉल घोषित किया गया। इसके साथ ही यह शर्त भी रखी गई कि शब्द का इस्तेमाल पायलट और रेडियो अधिकारी उसी समय कर सकते हैं जब उन्हें बचने का और कोई रास्ता न दिख रहा हो। हालांकि आजकल मेडे का इस्तेमाल समुद्री जहाज के कैप्टन और मरीन रेडियो कंट्रोलर भी करने लगे हैं।
तीन बार बोलना होता है मेडे
जानकारी के मुताबिक पायलट को तीन बार मेडे शब्द का इस्तेमाल करना होता है। ऐसा करने का फैसला इसलिए लिया गया ताकि बाकी आवाजों के बीच रेडियो कंट्रोलर इसे आसानी से पहचान सकें और इस बात को पक्का किया जा सके कि पायलट को सच में मदद की जरूरत है।
पैन पैन शब्द का भी इस्तेमाल
पायलट आपात स्थिति में पैन पैन शब्द का भी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इसका इस्तेमाल मेडे से कम जोखिम वाली स्थिति में किया जाता है। पैन पैन का संकेत दे पायलट जोखिम वाली स्थिति में मदद मांगता है। पैन पैन का संकेत उस समय दिया जाता है जब जान जोखिम में न हो लेकिन उड़ान में परेशानियां आ रही हों। लेकिन दोनों ही स्थितियों में विमान का नियंत्रण पायलट के हाथों में होता है।
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