अमित शर्मा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Fri, 29 May 2020 08:22 PM IST
कोरोना की जांच के लिए नमूना एकत्र करते स्वास्थ्य कर्मी।
– फोटो : PTI (फाइल फोटो)
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सार
- गुरुवार को 8470 सक्रिय लोगों में से 4227 लोग थे होम क्वारंटीन
- विशेषज्ञों ने कहा- लक्षण न होने या कम गंभीर लोगों के लिए घर पर रहकर इलाज कराना ज्यादा बेहतर
विस्तार
होम आइसोलेशन कोरोना के इलाज में सबसे कारगर दवा साबित हो रही है। लोग अस्पतालों में भर्ती हुए बिना ही कोरोना संक्रमण को मात दे रहे हैं।
दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक गुरुवार को दिल्ली में कोरोना के कुल 8470 सक्रिय केस थे, लेकिन इसमें 4227 लोग किसी अस्पताल में नहीं, बल्कि होम आइसोलेशन में अपना इलाज करा रहे थे।
यानी कुल सक्रिय मरीजों के लगभग 50 फीसदी लोग अपने-अपने घरों में रहकर ही कोरोना की लड़ाई लड़ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना इतना ज्यादा घातक साबित नहीं हुआ है जितनी कि इसके बारे में कल्पना की जा रही थी।
अगर किसी में कोरोना के कोई लक्षण नहीं हैं या बहुत कम लक्षण हैं तो उसे अपने घर में रहकर ही इलाज कराना चाहिए।
बीएल कपूर अस्पताल के डॉक्टर संदीप नायर ने कहा कि शुरुआती दौर में विशेषज्ञों को भी यह ठीक-ठीक पता नहीं था कि कोरोना से लड़ाई का सही तरीका क्या होना चाहिए।
लेकिन अब तक के अनुभवों से हम यह सीख चुके हैं कि कोरोना उतना घातक नहीं है जितना कि इसके बारे में कल्पना की जा रही थी। यह अच्छी बात है कि भारी संख्या में लोग ठीक हो रहे हैं।
उनके मुताबिक हल्के लक्षण या बिल्कुल लक्षण न होने वाले कोरोना मरीजों को अपने घर पर रहकर ही इलाज कराना चाहिए।
होम आइसोलेशन में कितना मानसिक लाभ
इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉक्टर म्रुगेश वैष्णव ने अमर उजाला डॉट कॉम से कहा कि अस्पतालों में भर्ती होने पर लोगों पर ‘बीमार होने’ का एक मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है।
कई बीमार लोगों में यह ज्यादा नकारात्मक भाव पैदा करता है जो उनके स्वस्थ होने में समस्याएं पैदा करता है। कई बार स्वस्थ हो जाने पर भी वे मानसिक स्तर पर बीमार बने रहते हैं।
जबकि घर में आइसोलेशन में रहने पर उन्हें इस तनाव से मुक्ति मिल जाती है। घर में परिवार के लोगों की संवेदनाएं उन्हें बेहतर और आरामदेह स्थिति में होने का आभास कराती हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए ज्यादा बेहतर अनुभव कराता है।
सरकारी अस्पतालों में अच्छा वातावरण न मिलने पर भी बीमार लोगों में नकारात्मक भाव पैदा होता है, जबकि उनके घरों में उन्हें अच्छा अहसास होता है।
डॉक्टर म्रुगेश वैष्णव के मुताबिक, लेकिन घरों में रहने का यह आइडिया तभी कारगर रह सकता है जब उनके लिए पर्याप्त उपचार की व्यवस्था रहे।
उन्हें यह आभास रहे कि अगर उनकी स्थिति बिगड़ती है तो उन्हें बिना किसी देरी के अच्छे अस्पताल और डॉक्टरों की सेवाएं प्राप्त हो सकेंगी।
अगर उन्हें यह मानसिक मजबूती नहीं मिलती तो होम आइसोलेशन का आइडिया उन पर भारी भी पड़ सकता है।
उन्हें इससे बचाने के लिए उनके पास हमेशा एक विश्वस्त व्यक्ति का रहना आवश्यक है। साथ ही बीच-बीच में डॉक्टरों का उनसे मिलते रहना भी जरूरी है।
दिल्ली सरकार ने कहा
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना से किसी को चिंतित होने की जरूरत नहीं है, लेकिन सावधान रहने की आवश्यकता है।
80 फीसदी से अधिक लोग होम आइसोलेशन में ठीक हो रहे हैं। सभी लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत नहीं है। घर पर अलग कमरे की व्यवस्था हो सके तो ठीक अन्यथा अलग बिस्तर रखना भी पर्याप्त होगा।
यह छुआछूत की बीमारी नहीं है। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग की टीम लोगों को उनके घर पर ही काउंसलिंग कराएगी, जिससे वे कोरोना से बिना डरे स्वास्थ्य लाभ कर सकें।
दिल्ली सरकार ने की बेहतर व्यवस्था
दिल्ली सरकार ने होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों के लिए हमेशा चिकित्सकीय परामर्श मिलते रहने की व्यवस्था की है। इस दौरान डॉक्टर हमेशा उन्हें सलाह देते रहते हैं कि उन्हें होम क्वारंटीन में कैसे रह सकते हैं और इस दौरान उन्हें क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
बीमार लोगों के साथ रहने वाला परिवार का व्यक्ति किसी भी समय डॉक्टरों से सलाह ले सकता है। अगर स्थिति बिगड़ती है तो उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराए जाने की व्यवस्था है। होम आइसोलेशन में ज्यादा लोगों के रहने को देखते हुए इसके प्रति खूब जागरुकता भी फैलाई जा रही है।