कोरोना वायरस दुनियाभर में अपना संक्रमण फैलाने की हर संभव कोशिश कर रहा है। अमेरिका के लॉस अलामॉस नेशनल लैबोरेटरी के वैज्ञानिकों को पता चला है कि कोरोना के वायरस वाले ‘स्पाइक प्रोटीन’ में 14वां म्यूटेशन देखा गया है। ऐसे में इससे अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। पहले की तुलना में ये और अधिक खतरनाक हो सकता है। सावधानी ही सरल बचाव है।
डॉ. बेट्ट कॉबर्र ने 33 पन्ने की रिपोर्ट में कहा है कि ये खतरनाक क्षण है। हमने देखा है कि वायरस तेजी के साथ खतरनाक रूप के साथ म्यूटेट हो रहा है। महामारी फैलने के शुरुआती दिनों की तुलना में ये पूरी तरह अलग है। इसे देखकर ये कहा जा सकता है कि मार्च में जो वायरस का स्टेन था उससे वो अधिक खतरनाक हो गया है।
वायरस जितनी अधिक आबादी के बीच फैलेगा स्थानीय स्तर पर संक्रमण का दायरा बढ़ेगा और इसके फैलने की रफ्तार भी पहले की तुलना में अधिक तेज होगी। हालांकि ये स्पष्ट नहीं किया है कि वायरस पहले से अधिक जानलेवा होगा या पुराने स्टेन की तरह ही जान पर भारी पड़ेगा। हां इतना जरूर है कि वायरस का पुराना रूप खत्म होगा और लोग नए तरह के संक्रमण की चपेट में आएंगे।
टीका बनाने के करीब पहुंचीं टीमों में निराशा
दुनियाभर से लिए गए छह हजार सैंपल की जेनेटिक सीक्वेसिंग का विश्लेषण करने के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। वायरस अगर इसी तरह से स्टेन बदलता रहा तो जो वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन बनाने के आखिरी चरण में हैं उन्हें निराशा हो सकती है। संभव है कि वायरस के स्टेन बदलने के कारण मरीजों पर उसका असर न हो। ऐसी स्थिति में वायरस के म्यूटेशन के साथ उसके इलाज और रोकथाम के तौर तरीकों पर विचार करना होगा।
पर यहां पर दावा कमजोर हो रहा वायरस: अमेरिका के एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी का दावा है कि वायरस समय के साथ कमजोर होगा और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता उसका मुकाबला कर सकेगी। 382 मरीजों के सैंपल के अध्ययन में वैज्ञानिकों को पता चला है कि एक सैंपल में बड़ी संख्या में वायरस का जेनेटिक मैटेरियल गायब था।
2003 के सार्स वायरस में भी ऐसा ही बदलाव देखने को मिला था जिसके बाद वो कमजोर हो गया था। कोरोना में अगर ऐसा है तो वो जल्द कमजोर होने के साथ खत्म हो जाएगा।
ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कोविड-19 (कोरोना वायरस) के लिए जिम्मेदार सार्स-कोव-2 अब तक करीब 200 बार जेनेटिक बदलाव कर चुका है और यह लगातार मानव शरीर के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए तेजी से अपने जींस में बदलाव कर रहा है। यह दावा वैश्विक स्तर पर 7500 से ज्यादा संक्रमित मरीजों के सैंपलों में मिले वायरस के जींस का विश्लेषण करने के बाद किया गया है।
माना जा रहा है कि यह खोज इस जानलेवा महामारी की दवा और वैक्सीन बनाने में अहम मदद दे सकती है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन का यह अध्ययन साइंस जर्नल ‘इंफेक्शन, जेनेटिक्स एंड इवोल्यूशन’ में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन में वायरस के जीनोम की विविधता के पैटर्न की विशेषता को चिह्नित किया गया है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि सार्स-कोव-2 की वैश्विक जेनेटिक विविधता का बड़ा हिस्सा कोरोना से बुरी तरह प्रभावित देशों में मौजूद था। यह फैलाव इन देशों में एक भी ‘पेशेंट-0 (वह मरीज, जिससे महामारी की शुरुआत हुई)’ की अनुपस्थिति के बावजूद हो रहा था।
कम म्यूटेशन वाले जीनोम से बन सकती है वैक्सीन
वैज्ञानिकों ने 198 म्यूटेशन की पहचान की है, जो स्वतंत्र रूप से एक से अधिक बार दिखाई दिए हैं। इनसे यह पता लग सकता है कि वायरस कैसे फैल रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि जिन जीनोम के कुछ हिस्सों में बहुत कम म्यूटेशन हुआ है। उन्हें वैक्सीन बनाने के काम में लिया जा सकता है। बालोक्स ने कहा कि चुनौती यह है कि उसे रोकने वाला टीका या दवा क्या लंबे समय तक प्रभावी हो सकते हैं?
सार
- वायरस के बदले रूप के मुताबिक वैक्सीन, नहीं तो नहीं होगा असर
- फैलने की रफ्तार पहले की तुलना में हो सकती है तेज
विस्तार
कोरोना वायरस दुनियाभर में अपना संक्रमण फैलाने की हर संभव कोशिश कर रहा है। अमेरिका के लॉस अलामॉस नेशनल लैबोरेटरी के वैज्ञानिकों को पता चला है कि कोरोना के वायरस वाले ‘स्पाइक प्रोटीन’ में 14वां म्यूटेशन देखा गया है। ऐसे में इससे अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। पहले की तुलना में ये और अधिक खतरनाक हो सकता है। सावधानी ही सरल बचाव है।
डॉ. बेट्ट कॉबर्र ने 33 पन्ने की रिपोर्ट में कहा है कि ये खतरनाक क्षण है। हमने देखा है कि वायरस तेजी के साथ खतरनाक रूप के साथ म्यूटेट हो रहा है। महामारी फैलने के शुरुआती दिनों की तुलना में ये पूरी तरह अलग है। इसे देखकर ये कहा जा सकता है कि मार्च में जो वायरस का स्टेन था उससे वो अधिक खतरनाक हो गया है।
वायरस जितनी अधिक आबादी के बीच फैलेगा स्थानीय स्तर पर संक्रमण का दायरा बढ़ेगा और इसके फैलने की रफ्तार भी पहले की तुलना में अधिक तेज होगी। हालांकि ये स्पष्ट नहीं किया है कि वायरस पहले से अधिक जानलेवा होगा या पुराने स्टेन की तरह ही जान पर भारी पड़ेगा। हां इतना जरूर है कि वायरस का पुराना रूप खत्म होगा और लोग नए तरह के संक्रमण की चपेट में आएंगे।
टीका बनाने के करीब पहुंचीं टीमों में निराशा
दुनियाभर से लिए गए छह हजार सैंपल की जेनेटिक सीक्वेसिंग का विश्लेषण करने के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। वायरस अगर इसी तरह से स्टेन बदलता रहा तो जो वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन बनाने के आखिरी चरण में हैं उन्हें निराशा हो सकती है। संभव है कि वायरस के स्टेन बदलने के कारण मरीजों पर उसका असर न हो। ऐसी स्थिति में वायरस के म्यूटेशन के साथ उसके इलाज और रोकथाम के तौर तरीकों पर विचार करना होगा।
पर यहां पर दावा कमजोर हो रहा वायरस: अमेरिका के एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी का दावा है कि वायरस समय के साथ कमजोर होगा और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता उसका मुकाबला कर सकेगी। 382 मरीजों के सैंपल के अध्ययन में वैज्ञानिकों को पता चला है कि एक सैंपल में बड़ी संख्या में वायरस का जेनेटिक मैटेरियल गायब था।
2003 के सार्स वायरस में भी ऐसा ही बदलाव देखने को मिला था जिसके बाद वो कमजोर हो गया था। कोरोना में अगर ऐसा है तो वो जल्द कमजोर होने के साथ खत्म हो जाएगा।
अब तक 200 बार जेनेटिक बदलाव
ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कोविड-19 (कोरोना वायरस) के लिए जिम्मेदार सार्स-कोव-2 अब तक करीब 200 बार जेनेटिक बदलाव कर चुका है और यह लगातार मानव शरीर के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए तेजी से अपने जींस में बदलाव कर रहा है। यह दावा वैश्विक स्तर पर 7500 से ज्यादा संक्रमित मरीजों के सैंपलों में मिले वायरस के जींस का विश्लेषण करने के बाद किया गया है।
माना जा रहा है कि यह खोज इस जानलेवा महामारी की दवा और वैक्सीन बनाने में अहम मदद दे सकती है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन का यह अध्ययन साइंस जर्नल ‘इंफेक्शन, जेनेटिक्स एंड इवोल्यूशन’ में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन में वायरस के जीनोम की विविधता के पैटर्न की विशेषता को चिह्नित किया गया है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि सार्स-कोव-2 की वैश्विक जेनेटिक विविधता का बड़ा हिस्सा कोरोना से बुरी तरह प्रभावित देशों में मौजूद था। यह फैलाव इन देशों में एक भी ‘पेशेंट-0 (वह मरीज, जिससे महामारी की शुरुआत हुई)’ की अनुपस्थिति के बावजूद हो रहा था।
कम म्यूटेशन वाले जीनोम से बन सकती है वैक्सीन
वैज्ञानिकों ने 198 म्यूटेशन की पहचान की है, जो स्वतंत्र रूप से एक से अधिक बार दिखाई दिए हैं। इनसे यह पता लग सकता है कि वायरस कैसे फैल रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि जिन जीनोम के कुछ हिस्सों में बहुत कम म्यूटेशन हुआ है। उन्हें वैक्सीन बनाने के काम में लिया जा सकता है। बालोक्स ने कहा कि चुनौती यह है कि उसे रोकने वाला टीका या दवा क्या लंबे समय तक प्रभावी हो सकते हैं?
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