बठिंडा में गेहूं खरीद केंद्र पर बैठे किसान…
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देश में कुल गेहूं उत्पादन का तीन चौथाई हिस्सा पैदा करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के करोड़ों किसान परेशान हैं। मौसम की मार, मजदूरों की कमी के कारण एक तो फसल कटने में देरी हुई, दूसरे मंडियों में मुनासिब रेट न मिलना कोढ़ में खाज बन गया है। ऊपर से खरीद केंद्रों पर सरकारी नुमाइंदों का रवैया किसानों को नाकों चने चबवा रहा है। गेहूं की खरीद लंबी खिंचने से अगली फसल की शुरूआत में भी देरी का संकट मंडरा रहा है। पेश है मनीष मिश्र की रिपोर्ट…
अपर खाद्य आयुक्त सुनील कुमार बताते हैं, गेहूं खरीद के लिए 5189 केंद्र बनाए गए हैं, 21 अप्रैल तक कुल 1,03,196 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। पीलीभीत के किसान लालू मिश्रा ने अपना गेहूं सरकारी खरीद केन्द्रों पर न बेच कर एक फ्लोर मिल को बेच दिया, वो भी उधार। लालू कहते हैं, इस समय मंडी का रेट 1700 रुपये प्रति क्विंटल है, ऊपर से प्रति क्विंटल पर एक किलो कर्दा उसके बाद एक प्रतिशत मुद्दत देनी पड़ती है, ये सब किसान के पास से जाता है।
खुले बाजार में गेहूं का भाव कम होने का बड़ा कारण है इसकी डिमांड न होना है। इसे समझाते हुए सीतापुर की नवीन गल्ला मंडी में पसरे सन्नाटे को दिखाते हुए आढ़ती और यूपी राइस मिलर्स एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष विनय गुप्ता कहते हैं, पिछले साल इस समय तक मंडी में हर रोज 30,000 क्विंटल तक गेहूं का करोबार होता था, जबकि इस साल मात्र 10 प्रतिशत ही आवक है। छोटे व्यापारी किसान से खरीद कर माल ला नहीं पा रहे, उन्हें पुलिस परेशान करती है।
विनय गुप्ता आगे बताते हैं, अधिकतर फ्लोर मिलें बंद होने से मंडी में गेहूं की मांग भी कम है, इससे रेट भी थोड़ा कम है। लॉकडाउन के चलते मैदा की खपत करने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां, होटल और दुकानें बंद चल रही हैं, बाजार में मैदे की खपत कम होने से गेहूं की मांग भी नहीं है, दूसरे यह भी कि इन आटा मिलों को चलाने वाले दिहाडी मजदूर भी गाँवों को वापस चले गए हैं, वो भी नहीं आ पा रहे। बिस्किट बनाने वाली कंपनियां, होटलों आदि के बंद होने से मैदे की मांग कम आ रही, इसलिए मिलें नहीं चल रही हैं। इसका नुकसान किसानों को झेलना पड़ रहा है।
सीतापुर में रहने वाले मिल मालिक उमेश अग्रवाल कहते है, सरकार ने लॉकडाउन के समय कृषि उत्पादों को मंडियों में ले जाने पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन पुलिस की दहशत और झंझट से बचने के लिए ये छोटे व्यापारी गांवों में किसानों का माल ही नहीं खरीद रहे हैं। धंधा बिल्कुल मंदा चल रहा है, बंदी की वजह से माल कोई गाड़ी वाला ले जाने को तैयार ही नहीं होता।
जब से लॉकडाउन शुरु हुआ है खरीदारी बंद है, बाराबंकी जिले के देवरा गाँव में रहने वाले छोटे व्यापारी मोहित बाजपेई अपनी समस्या रखते हैं। शाहजहांपुर की गल्ला मंडी के कोषाध्यक्ष कुलदीप गुप्ता बताते हैं, अब सब कुछ बंद चल रहा है, तो बाजार में मंदी आ गई है। हम यहां से मालगाडप़र गेहूं लादकर दूसरे राज्यों को गेहूं भेजते थे, लेकिन कहीं से कोई डिमांड ही नहीं आ रही।
सरकार ने खरीद केन्द्र तो शुरू कर दिए हैं, लेकिन मजदूर न होने की बात कह कर मंडियों में किसानों से गेहूं की खरीद रुकी हुई थी। सिरसा जिले गोदीकां गांव में रहने वाले राकेश कुमार सहारन ने बताया कि अभी उनके यहां गेहूं की कोई खरीद नहीं हो रही, आढ़ती कहते हैं कि उनके पास मजदूर नहीं हैं, उन्हें दस से पंद्रह दिन का समय और चाहिए। कपास बोने का समय है, किसान का गेहूं घरों में या खेतों में पड़ा है, जेब में पैसा नहीं, आगे के काम रुके पड़े हैं।
राकेश कुमार के पास कुल 71 क्विंटल सरसों है, लेकिन वो तीन बार में सिर्फ 33 क्विंटल ही बेच पाएं हैं, बार-बार ले जाने का भाड़़ा पड़ा सो अलग। वह कहते हैं, “नमी के नाम पर धांधली हो रही है, तौल के नाम पर तीस रुपये से लेकर पचास रुपये तक ले रहे हैं।” उधर, 23 अप्रैल से सरकार से बातचीत के बाद आढ़तियों ने खरीदारी शुरू की लेकिन देरी से शुरू होने से किसानों को काफी नुकसान हुआ है।
जब किसान सोसाइटी को गेहूं बेचते हैं तो उनके कर्ज का पैसा काट कर ही उनकी अदायगी की जा रही है। कमलनाथ सरकार ने कर्जमाफी की जो घोषणा की थी, वह पूरी नहीं हुई, अब किसानों से वसूली की जा रही है। दूसरे किसानों के पास नकदी की दिक्कत है, इसलिए किसान मंडियों में कम रेट पर गेहूं बेच दे रहा है। मध्य प्रदेश के सिहोर जिले के गांव बांकोट में रहने वाले भगवान मीना बताते हैं। गेहूं की बंपर पैदावार से उत्पादन के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर है। एपीडा वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार भारत ने वर्ष 2018-19 में 424.9 करोड़ रुपये का गेहूं निर्यात किया।
गेंहू बिका नहीं, आगे की खेती पर संकट
हरियाणा में गेहूं खरीद केन्द्र तो शुरू हो गए हैं लेकिन यूपी और बिहार के मजदूरों के पलायन कर जाने से खरीद ठप है। गेहूं की फसल न बिक पाने से आगे की बुआई में भी देर हो रही है। किसानों को आ रही दिक्कतों के बारे में कृषि विशेषज्ञ रमनदीप सिंह मान कहते हैं कि किसान अनिश्चितता में हैं। पंजाब-हरियाणा के किसान अपना पूरा गेहूं सरकारी सेंटरों पर ही बेचते हैं, अब कटाई और बेचने में देरी से किसान की समस्या और बढ़ गई है। अगर किसान फसल को जैसे-तैसे काट भी लेता है, फिर भी इस स्थिति में गेहूं को सुरक्षित रखने में भी खर्च बढ़ जाएगा।
अगर गेहूं में नमी की मात्रा ज्यादा होती है तो किसान को उसे वापस लेकर जाना पड़ता है। पंजाब का तापमान 35 डिग्री से ऊपर बढ़ ही नहीं रहा, पंजाब के फजिल्का में आढ़ती और फेडरेशन ऑफ आढ़ती पंजाब के सचिव संजीव कुमार बताते हैं। बेच न पाने के कारण खेतों में खुले पड़े गेहूं को सहेजने को लेकर चिंतित पंजाब के किसान और भारतीय किसान यूनियन के सदस्य बलिविंदर सिंह बाजवा कहते हैं, खेतों में गेहूं काट कर बैठे हैं, परमिशन नहीं आ रही, अमूमन हर रोज बारिश हो रही है, सरकार हमें गेहूं को संभालने की आजादी दे।
बिगड़े मौसम के मिजाज से गेहूं में नमी पर पंजाब के एग्रीकल्चर कमिश्नर डॉ. बलविंदर सिंह सिद्धू कहते हैं, हम चाहते हैं कि जितना गेहूं आए वो तुरंत चला जाए। गेहूं में 12 प्रतिशत से अधिक नमी पर उसे स्टोर नहीं किया जा सकता। पहले खरीद केन्द्रों पर एक दिन में आठ लाख टन गेहूं आ जाता था, इस बार पांच दिन में आठ लाख टन गेहूं आया है। कोरोना की दहशत के बीच खरीद केन्द्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए सरकार ने खरीद केन्द्रों पर एक दिन में छह किसानों के आने की संख्या निर्धारित कर दी है।
इस पर फजिल्का के किसान नृपेन्द्र सिंह कहते हैं, सरकार ने जो ये व्यवस्था की है कि किसान एक बार में पचास क्विंटल लाएगा उससे ज्यादा दिक्कत हो रही है। हम कंबाइन मशीन से ज्यादा कटाई करते हैं, हमें टोकन पचास कुंतल का ही दिया जाता है, अब जो बचेगा वो या तो खेत में रखें या घर में रखें। दो दिन पहले बरसात भी हुई, नमी आ जाएगी और रंग बदल जाएगा, इसका भी डर है। किसान नृपेन्द्र सिंह आगे कहते हैं, जहां एक बार किसानों को अपना माल बेचने के लिए सरकारी खरीद केन्द्र जाना होता था वहां चार चक्कर लेगेंगे।
धान की पौध के साथ हरे चारे को बोना है। किसान के हर काम लटक जाएंगे। किसान जब अपना अनाज लेकर आढ़ती के पास जाते हैं तो आढ़ती को गेहूं तुलवाकर किसान के खाते में 48 घंटे में ही पैसा ट्रांसफर करना होता है। इसके लिए उसे सरकार से 2.5 प्रतिशत कमीशन मिलता है। फजिल्का में आढ़त चलाने वाले संजीव बताते हैं, पहले दो-दो हजार बैग की खरीद करते थे, पर आज पांच सौ बैग देते हैं।
उत्तर प्रदेश : कर्मचारियों की बेरुखी से खरीद केंद्रों पर नहीं आ रहे किसान

गेहूं
अपर खाद्य आयुक्त सुनील कुमार बताते हैं, गेहूं खरीद के लिए 5189 केंद्र बनाए गए हैं, 21 अप्रैल तक कुल 1,03,196 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। पीलीभीत के किसान लालू मिश्रा ने अपना गेहूं सरकारी खरीद केन्द्रों पर न बेच कर एक फ्लोर मिल को बेच दिया, वो भी उधार। लालू कहते हैं, इस समय मंडी का रेट 1700 रुपये प्रति क्विंटल है, ऊपर से प्रति क्विंटल पर एक किलो कर्दा उसके बाद एक प्रतिशत मुद्दत देनी पड़ती है, ये सब किसान के पास से जाता है।
खुले बाजार में गेहूं का भाव कम होने का बड़ा कारण है इसकी डिमांड न होना है। इसे समझाते हुए सीतापुर की नवीन गल्ला मंडी में पसरे सन्नाटे को दिखाते हुए आढ़ती और यूपी राइस मिलर्स एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष विनय गुप्ता कहते हैं, पिछले साल इस समय तक मंडी में हर रोज 30,000 क्विंटल तक गेहूं का करोबार होता था, जबकि इस साल मात्र 10 प्रतिशत ही आवक है। छोटे व्यापारी किसान से खरीद कर माल ला नहीं पा रहे, उन्हें पुलिस परेशान करती है।
विनय गुप्ता आगे बताते हैं, अधिकतर फ्लोर मिलें बंद होने से मंडी में गेहूं की मांग भी कम है, इससे रेट भी थोड़ा कम है। लॉकडाउन के चलते मैदा की खपत करने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां, होटल और दुकानें बंद चल रही हैं, बाजार में मैदे की खपत कम होने से गेहूं की मांग भी नहीं है, दूसरे यह भी कि इन आटा मिलों को चलाने वाले दिहाडी मजदूर भी गाँवों को वापस चले गए हैं, वो भी नहीं आ पा रहे। बिस्किट बनाने वाली कंपनियां, होटलों आदि के बंद होने से मैदे की मांग कम आ रही, इसलिए मिलें नहीं चल रही हैं। इसका नुकसान किसानों को झेलना पड़ रहा है।
सीतापुर में रहने वाले मिल मालिक उमेश अग्रवाल कहते है, सरकार ने लॉकडाउन के समय कृषि उत्पादों को मंडियों में ले जाने पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन पुलिस की दहशत और झंझट से बचने के लिए ये छोटे व्यापारी गांवों में किसानों का माल ही नहीं खरीद रहे हैं। धंधा बिल्कुल मंदा चल रहा है, बंदी की वजह से माल कोई गाड़ी वाला ले जाने को तैयार ही नहीं होता।
जब से लॉकडाउन शुरु हुआ है खरीदारी बंद है, बाराबंकी जिले के देवरा गाँव में रहने वाले छोटे व्यापारी मोहित बाजपेई अपनी समस्या रखते हैं। शाहजहांपुर की गल्ला मंडी के कोषाध्यक्ष कुलदीप गुप्ता बताते हैं, अब सब कुछ बंद चल रहा है, तो बाजार में मंदी आ गई है। हम यहां से मालगाडप़र गेहूं लादकर दूसरे राज्यों को गेहूं भेजते थे, लेकिन कहीं से कोई डिमांड ही नहीं आ रही।
हरियाणाः खातों में पैसे भेजने को लेकर गतिरोध, देर से शुरू हुईं मंडियां

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राकेश कुमार के पास कुल 71 क्विंटल सरसों है, लेकिन वो तीन बार में सिर्फ 33 क्विंटल ही बेच पाएं हैं, बार-बार ले जाने का भाड़़ा पड़ा सो अलग। वह कहते हैं, “नमी के नाम पर धांधली हो रही है, तौल के नाम पर तीस रुपये से लेकर पचास रुपये तक ले रहे हैं।” उधर, 23 अप्रैल से सरकार से बातचीत के बाद आढ़तियों ने खरीदारी शुरू की लेकिन देरी से शुरू होने से किसानों को काफी नुकसान हुआ है।
मध्य प्रदेश : कर्जमाफी की सिर्फ घोषणा, वसूली अब भी

कर्ज वसूली का नोटिस
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जब किसान सोसाइटी को गेहूं बेचते हैं तो उनके कर्ज का पैसा काट कर ही उनकी अदायगी की जा रही है। कमलनाथ सरकार ने कर्जमाफी की जो घोषणा की थी, वह पूरी नहीं हुई, अब किसानों से वसूली की जा रही है। दूसरे किसानों के पास नकदी की दिक्कत है, इसलिए किसान मंडियों में कम रेट पर गेहूं बेच दे रहा है। मध्य प्रदेश के सिहोर जिले के गांव बांकोट में रहने वाले भगवान मीना बताते हैं। गेहूं की बंपर पैदावार से उत्पादन के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर है। एपीडा वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार भारत ने वर्ष 2018-19 में 424.9 करोड़ रुपये का गेहूं निर्यात किया।
गेंहू बिका नहीं, आगे की खेती पर संकट
हरियाणा में गेहूं खरीद केन्द्र तो शुरू हो गए हैं लेकिन यूपी और बिहार के मजदूरों के पलायन कर जाने से खरीद ठप है। गेहूं की फसल न बिक पाने से आगे की बुआई में भी देर हो रही है। किसानों को आ रही दिक्कतों के बारे में कृषि विशेषज्ञ रमनदीप सिंह मान कहते हैं कि किसान अनिश्चितता में हैं। पंजाब-हरियाणा के किसान अपना पूरा गेहूं सरकारी सेंटरों पर ही बेचते हैं, अब कटाई और बेचने में देरी से किसान की समस्या और बढ़ गई है। अगर किसान फसल को जैसे-तैसे काट भी लेता है, फिर भी इस स्थिति में गेहूं को सुरक्षित रखने में भी खर्च बढ़ जाएगा।
पंजाब : गेहूं में नमी ने बढ़ाईं मुश्किलें, ट्राली हो रहीं वापस

फाजिल्का मंडी में खरीद करते आढ़ती…
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अगर गेहूं में नमी की मात्रा ज्यादा होती है तो किसान को उसे वापस लेकर जाना पड़ता है। पंजाब का तापमान 35 डिग्री से ऊपर बढ़ ही नहीं रहा, पंजाब के फजिल्का में आढ़ती और फेडरेशन ऑफ आढ़ती पंजाब के सचिव संजीव कुमार बताते हैं। बेच न पाने के कारण खेतों में खुले पड़े गेहूं को सहेजने को लेकर चिंतित पंजाब के किसान और भारतीय किसान यूनियन के सदस्य बलिविंदर सिंह बाजवा कहते हैं, खेतों में गेहूं काट कर बैठे हैं, परमिशन नहीं आ रही, अमूमन हर रोज बारिश हो रही है, सरकार हमें गेहूं को संभालने की आजादी दे।
बिगड़े मौसम के मिजाज से गेहूं में नमी पर पंजाब के एग्रीकल्चर कमिश्नर डॉ. बलविंदर सिंह सिद्धू कहते हैं, हम चाहते हैं कि जितना गेहूं आए वो तुरंत चला जाए। गेहूं में 12 प्रतिशत से अधिक नमी पर उसे स्टोर नहीं किया जा सकता। पहले खरीद केन्द्रों पर एक दिन में आठ लाख टन गेहूं आ जाता था, इस बार पांच दिन में आठ लाख टन गेहूं आया है। कोरोना की दहशत के बीच खरीद केन्द्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए सरकार ने खरीद केन्द्रों पर एक दिन में छह किसानों के आने की संख्या निर्धारित कर दी है।
इस पर फजिल्का के किसान नृपेन्द्र सिंह कहते हैं, सरकार ने जो ये व्यवस्था की है कि किसान एक बार में पचास क्विंटल लाएगा उससे ज्यादा दिक्कत हो रही है। हम कंबाइन मशीन से ज्यादा कटाई करते हैं, हमें टोकन पचास कुंतल का ही दिया जाता है, अब जो बचेगा वो या तो खेत में रखें या घर में रखें। दो दिन पहले बरसात भी हुई, नमी आ जाएगी और रंग बदल जाएगा, इसका भी डर है। किसान नृपेन्द्र सिंह आगे कहते हैं, जहां एक बार किसानों को अपना माल बेचने के लिए सरकारी खरीद केन्द्र जाना होता था वहां चार चक्कर लेगेंगे।
धान की पौध के साथ हरे चारे को बोना है। किसान के हर काम लटक जाएंगे। किसान जब अपना अनाज लेकर आढ़ती के पास जाते हैं तो आढ़ती को गेहूं तुलवाकर किसान के खाते में 48 घंटे में ही पैसा ट्रांसफर करना होता है। इसके लिए उसे सरकार से 2.5 प्रतिशत कमीशन मिलता है। फजिल्का में आढ़त चलाने वाले संजीव बताते हैं, पहले दो-दो हजार बैग की खरीद करते थे, पर आज पांच सौ बैग देते हैं।