न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Sun, 19 Apr 2020 08:16 AM IST
कोरोना जांच करता स्वास्थ्यकर्मी (फाइल फोटो)
– फोटो : PTI
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एक निजी समाचार पत्र ने जब उनसे पूछा कि लॉकडाउन को किस तरह से हटाना चाहिए तो उन्होंने कहा कि इसे धीरे-धीरे हटाना चाहिए जब छह मापदंड पूरे हो जाएं। जिसमें वायरस प्रसार का नियंत्रित होना, स्वास्थ्य प्रणाली की क्षमताओं का पता लगाना, परीक्षण, आइसोलेट, मामलों का पता लगाना और संपर्कों को ट्रेस करना, प्रकोप जोखिमों को कम करना, निवारक उपायों को लागू करना, आयात जोखिम का प्रबंधन करना और समुदाय को पूरी तरह से शिक्षित और नए मानदंड को समायोजित करने के लिए सशक्त बनाना शामिल है।
जब डॉक्टर पूनम से पूछा गया कि वह वायरस के फैलाव को धीमा करने के भारत के प्रयास को वह किस तरह से आंकती हैं तो उन्होंने कहा, ‘अभी तक दूसरे देशों की तुलना में भारत में कम मामले सामने आए हैं। क्योंकि यहां शुरुआती और आक्रामक कदम उठाए गए। महामारी से निपटने के लिए शीर्ष नेतृत्व को सरकार और समाज का पूरा साथ मिल रहा है।’
क्षेत्रीय निदेशक से जब पूछा गया कि क्या पूल टेस्टिंग एक प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य उपकरण है तो उन्होंने कहा, ‘डब्ल्यूएचओ को पता है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद कुछ राज्यों में पूल परीक्षण (बड़ी संख्या में) कर रहा है। खासतौर से नॉन हॉटस्पॉट क्षेत्रों में। जहां डब्ल्यूएचओ व्यापक दिशा-निर्देश बनाने पर काम कर रहा है, हम परीक्षण बढ़ाने के उपायों का स्वागत करते हैं।’
किट की कमी होते हुए टेस्ट को कैसे बढ़ाया जा सकता है। इसके जवाब में डॉक्टर खेत्रपाल ने कहा कि अच्छे प्रयोगशाला अभ्यास जो सटीक परिणाम देते हैं वे प्रमुख कारक हैं। जब परीक्षण क्षमता की मांग बढ़ती है तो समय पर और सटीक परिणाम की उपलब्धता के लिए खतरा हो सकता है। जैसे जब परीक्षण का दबाव बढ़ता है और 24 से 48 घंटों के अंदर परिणाम सामने नहीं आते हैं तो प्रयोगशाला अभिकर्मकों (रीजेंट) की मांग आपूर्ति क्षमता से ज्यादा बढ़ जाती है और कर्मचारी कम पड़ जाते हैं। इनमें से कुछ बाधाओं को उचित जोखिम मूल्यांकन द्वारा दूर किया जा सकता है।