When Nobody Listen To The Doctors, Police, Social Media Became A Support – जब अपनों ने नहीं सुनी डॉक्टरों की बात तो सोशल मीडिया बना सहारा




अप्रैल महीने में दिल्ली पुलिस का एक जवान कोरोना पॉजिटिव पाया गया। उन्हें तिलक नगर के एक क्वारंटीन सेंटर में आइसोलेशन में रखा गया। क्वारंटीन सेंटर में ज्यादा संख्या में लोगों को रखा गया था, जबकि वहां कोरोना संक्रमण रोकने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उन्हें उचित दवा तक नहीं मिल पा रही थी। 

उन्होंने अस्पताल के लोगों से इसकी शिकायत की। अस्पताल प्रशासन ने उनकी एक बात नहीं सुनी। जब किसी ने उनकी बात नहीं सुनी तो जवान ने एक वीडियो बनाकर अपनी पीड़ा सोशल मीडिया में रखी। खबर वायरल होते ही अस्पताल प्रशासन सकते में आ गया और उनकी परेशानी का निवारण किया गया।

दिल्ली के आईटीओ पर बने मौलाना आजाद डेंटल मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों को पीपीई किट्स के बिना काम करना पड़ रहा था। उन्होंने कई बार इसकी शिकायत अपने उच्च अधिकारियों से की। मगर उनको किट्स नहीं उपलब्ध कराए जा रहे थे। अंततः उन्होंने भी इस बात को सोशल मीडिया में शेयर किया। खबर वायरल होते ही अस्पताल प्रशासन ने एक्शन लिया और डॉक्टरों को पीपीई किट्स की सुविधा मिलने लगी।

इसी प्रकार की कई घटनाएं देखने को मिली हैं जहां डॉक्टरों को न्याय नहीं मिल रहा था। लेकिन सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर आते ही उन्हें अपनी समस्या का समाधान मिल गया। विशेषज्ञ कहते हैं कि सोशल मीडिया अपनी तमाम खामियों के बाद भी एक मजबूत टूल बनकर उभरा है, लेकिन इसके बाद भी बेहतर यही होता कि अगर मामले को संस्थाओं के चैनल के स्तर पर ही निपटाया जाता। दीर्घकालिक रूप से यह ट्रेंड किसी भी व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है।

स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश करें

एम्स अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर आदर्श प्रताप ने अमर उजाला से कहा कि सबसे बेहतर व्यवस्था वही हो सकती है जिसमें उचित चैनल से समय रहते किसी समस्या का समाधान निकल जाए। सोशल मीडिया तक बात रखने की स्थिति तभी आती है जबकि सामान्य तरीके से समाधान नहीं मिल पाता है। उन्होंने कहा कि अगर पीपीई किट्स, दवाओं और सुरक्षा जैसे मुद्दे के लिए लोगों को इस तरह के साधन इस्तेमाल करने पड़ रहे हैं तो यह बेहद खराब स्थिति है। सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश कर डॉक्टरों और मरीजों दोनों के हित में काम करना चाहिए।

सभी समस्या जानते हैं, पर समाधान कोई नहीं करता

सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर जॉयत्पुल बिश्वास का कहना है कि आज भी उनके 900 साथियों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली में ड्यूटी करने के बाद गाजियाबाद और गुरुग्राम में उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है। कई जगहों पर उन्हें घरों, कालोनी या अपार्टमेंट्स में रहने नहीं दिया जा रहा है। वे कई बार इसके विषय में मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और अन्य अनेक अधिकारियों से अपनी बात कह चुके हैं, लेकिन अभी तक उनकी समस्याओं का समाधान नहीं मिला है। यह बेहद शर्मनाक है। ऐसी स्थितियों में ही लोग सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं।

सोशल मीडिया में बात रखना उचित नहीं

हालांकि, दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल के डॉक्टर असगर अली कहते हैं कि सोशल मीडिया पर अपनी बात रखना बहुत अच्छा विकल्प नहीं है। उनके अस्पताल में भी शुरुआती दौर में कुछ चीजों की कमी हुई थी। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और अन्य अधिकारियों को अपनी बात लिखी। एक बार में बात नहीं बनी तो उन्होंने दूसरी बार और फिर तीसरी बार अपनी बात रखी। लेकिन अंततः उनकी समस्या का समाधान हुआ और आज उनके अस्पताल के साथियों को जिंजर होटल में रखने की व्यवस्था दी जा रही है।

असगर अली के मुताबिक, जरूरी नहीं कि एक ही बार में आपकी समस्या का समाधान निकाल दिया जाए। आपको प्रशासन को अवसर देना चाहिए। एक-दो बार याद दिलाने की भी आवश्यकता पड़ती है, लेकिन अंततः आपकी समस्या का समाधान होता है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी व्यवस्था में विश्वास बनाए रखना चाहिए। पहले ही दौर में सोशल मीडिया में अपनी बात रखने को वे उचित नहीं मानते हैं।  




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