West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee Restricted The Permissions To Central Govt Team – अमित शाह की टीम को बांध कर रख दिया था ममता बनर्जी ने, अगर बीएसएफ न होती तो…




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पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस को लेकर जो स्थिति पैदा हुई, उसका जायजा लेने के लिए जब केंद्र सरकार की टीम (आईएमसीटी) वहां पहुंची, तो उसे एकदम बांधकर रखने का प्रयास हुआ था। इस टीम के लीडर एवं वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अपूर्व चंद्रा के पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को लिखे पत्र कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं।

केंद्र की टीम कोलकाता में थी, मगर उसे पुलिस एस्कोर्ट तक नहीं दी गई। हर जगह बीएसएफ को मोर्चा संभालना पड़ा। बल्कि हालात यह थे कि केंद्र की इस टीम को बांधने के लिए कोलकाता के एक डीसीपी ने बीएसएफ को कहा, उनकी इजाजत के बिना ये लोग कहीं न जाने पाएं।

अगर एयरपोर्ट जाते हैं तो ठीक, अन्यथा उन्हें वहीं रोका जाए। एमआर बांगुर अस्पताल में 354 कोविड मरीज थे, जबकि वेंटिलेटर केवल एक दर्जन। इस बाबत जब स्थानीय अधिकारियों से पूछा तो जवाब मिला, दिक्कत हुई तो उन्हें दूसरी सुविधा के लिए ट्रांसफर कर देंगे। इन सब बातों को लेकर अपूर्व चंद्रा ने शनिवार 25 अप्रैल को एक पत्र पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को लिखा है।

टीम के सदस्यों पर सख्त पहरा बैठाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी

रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ नौकरशाह अपूर्व चंद्रा ने केंद्र सरकार की अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम (आइएमसीटी) का नेतृत्व किया है। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कई रहस्यों से पर्दा उठाया है। उनके मुताबिक, किसी भी राज्य में केंद्र की टीम जाती है, तो सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस उठाती है।

एयरपोर्ट से लेकर टीम को कहां-कहां पर जाना है, ये सब रूट प्लान लोकल पुलिस को पहले ही दे दिया गया था। हैरानी हुई कि ये सारे काम बीएसएफ को करने पड़े। यहां तक कि किस अस्पताल का रास्ता कौन सा है, ऐसी जानकारियां भी नहीं दी गईं।

सहयोग के उलट डीसीपी की तरफ से बीएसएफ को आदेश दिए जाते हैं कि उनकी मंजूरी के बिना टीम के सदस्य कहीं बाहर न जाने पाएं। हां, यदि वे एयरपोर्ट जाते हैं तो उन्हें न रोका जाए। टीम के सदस्यों पर सख्त पहरा बैठाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई।

अस्पतालों का दौरा किया तो मिले ऐसे जवाब

चंद्रा के अनुसार, केंद्रीय अधिकारियों ने पूछा कि किसी कोविड मरीज की मौत सड़क हादसे में हो जाती है, तो उसे किस श्रेणी में रखेंगे। जवाब मिलता है कि यह तय करने के लिए डॉक्टरों की एक कमेटी गठित की गई है। बाद में मुख्य सचिव हेल्थ ने टीम को बताया कि कोई सड़क हादसे में मरा है, तो उसे कोविड मरीजों की श्रेणी में कैसे शामिल करेंगे।

इस मामले में मरीज की केस हिस्ट्री और आईसीएमआर की गाइडलाइंस को लेकर पूछा गया, तो संतोषजनक जवाब नहीं मिला। एमआर बांगुर अस्पताल में टेस्ट रिपोर्ट लेने के लिए पांच दिन से लोग इंतजार कर रहे थे। चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (सीएनसीआई) में ऐसे कई मरीज देखे गए, जिनका टेस्ट 17 और 18 अप्रैल को हुआ था, मगर रिपोर्ट 23 अप्रैल तक नहीं मिली।

डेथ सर्टिफिकेट के इंतजार में चार घंटे तक शवों को मरीजों के बीच रखा गया। टीम ने बताया कि ये खबर सोशल मीडिया पर चल रही थी, तो इसका कोई जवाब नहीं मिला। केवल यह कहा गया है कि सर्टिफिकेट तैयार हो रहा था, इसलिए शवगृह में नहीं रखे गए। हम प्रमाण पत्र जारी होने का इंतजार कर रहे थे।

फाइलों में और वस्तुस्थिति के बीच बहुत अंतर

राज्य के स्वास्थ्य महकमे ने लिखित में बताया कि रोजाना 1.25 लाख से दो लाख लोगों की जांच हो रही है। दौरे के वक्त बताया गया कि 400 से 900 लोगों के टेस्ट रोजाना हो रहे हैं। टीम ने पूछा कि दोबारा टेस्ट कितने हैं, किसी को नहीं मालूम था।

रिपोर्ट बता रही थी कि टेस्ट क्षमता उच्चस्तर पर है, जबकि जमीनी हकीकत के अनुसार, दूसरे राज्यों के मुकाबले यह प्रारंभिक स्तर पर है। सोशल मीडिया में आई इस खबर के बारे में पूछा कि यहां मेडिकल स्टाफ अपनी जांच खुद ही करता है तो बोले हां, इसमें क्या हर्ज है।

टीम ने कहा, ऐसे केस में प्रोफेशनल की जरूरत होती है। वहां मौजूद मेडिकल कर्मियों से पूछा गया कि वे राज्य की बीमा स्कीम जो दस लाख रुपये देती है, दूसरी ओर केंद्र की योजना, जिसमें 50 लाख मिलेंगे, उनका कहना था कि राज्य सरकार ने हिदायत दी है कि तुम्हारी मर्जी, कोई भी स्कीम ले लो। यानी कुछ भी पक्का नहीं था।

टीम के समक्ष जूनियर अफसरों को खड़ा कर किया

ये कहा गया था कि राज्य सरकार के सीनियर अफसर केंद्र की टीम के साथ रहेंगे। ऐसा कुछ नहीं हुआ। अपूर्वा चंद्रा के अनुसार, वहां जूनियर अफसरों को टीम के साथ भेज दिया। उन्हें कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी। यदि टीम के सदस्य किसी अस्पताल का दौरा करते हैं, तो उनको पीपीई किट मुहैया कराई जानी थी, इस पर अमल नहीं हुआ।

राज्य सरकार से कोरोना की लड़ाई के संदर्भ में दस सूचनाएं मांगी गई थीं। इनमें कोरोना पीड़ित लोगों का इलाज कैसे हो रहा है, क्वारंटीन सेंटर, रिलीफ कैंप में जरूरी वस्तुओं की सप्लाई और लॉकडाउन का तरीका क्या है, आदि सवाल थे।

जब वहां की सरकार ने रिपोर्ट सौंपी, तो उसमें दस सवालों का जवाब नहीं था। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए राज्य सरकार ने जो तैयारियां की हैं, उन्हें देखने के लिए केंद्र की तरफ से गठित इंटर मिनिस्टीरियल सेंट्रल टीम (आइएमसीटी) की दो टीमें सोमवार को पश्चिम बंगाल पहुंची थीं।

सार

  • अपूर्व चंद्रा ने शनिवार 25 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को फिर लिखा पत्र
  • टीम के सदस्यों पर सख्त पहरा बैठाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी… 
  • अस्पतालों का दौरा किया तो नहीं मिले संतोषजनक जवाब
  • फाइलों में और वस्तुस्थिति के बीच था बहुत अंतर  

विस्तार

पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस को लेकर जो स्थिति पैदा हुई, उसका जायजा लेने के लिए जब केंद्र सरकार की टीम (आईएमसीटी) वहां पहुंची, तो उसे एकदम बांधकर रखने का प्रयास हुआ था। इस टीम के लीडर एवं वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अपूर्व चंद्रा के पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को लिखे पत्र कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं।

केंद्र की टीम कोलकाता में थी, मगर उसे पुलिस एस्कोर्ट तक नहीं दी गई। हर जगह बीएसएफ को मोर्चा संभालना पड़ा। बल्कि हालात यह थे कि केंद्र की इस टीम को बांधने के लिए कोलकाता के एक डीसीपी ने बीएसएफ को कहा, उनकी इजाजत के बिना ये लोग कहीं न जाने पाएं।

अगर एयरपोर्ट जाते हैं तो ठीक, अन्यथा उन्हें वहीं रोका जाए। एमआर बांगुर अस्पताल में 354 कोविड मरीज थे, जबकि वेंटिलेटर केवल एक दर्जन। इस बाबत जब स्थानीय अधिकारियों से पूछा तो जवाब मिला, दिक्कत हुई तो उन्हें दूसरी सुविधा के लिए ट्रांसफर कर देंगे। इन सब बातों को लेकर अपूर्व चंद्रा ने शनिवार 25 अप्रैल को एक पत्र पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को लिखा है।

टीम के सदस्यों पर सख्त पहरा बैठाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी

रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ नौकरशाह अपूर्व चंद्रा ने केंद्र सरकार की अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम (आइएमसीटी) का नेतृत्व किया है। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कई रहस्यों से पर्दा उठाया है। उनके मुताबिक, किसी भी राज्य में केंद्र की टीम जाती है, तो सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस उठाती है।

एयरपोर्ट से लेकर टीम को कहां-कहां पर जाना है, ये सब रूट प्लान लोकल पुलिस को पहले ही दे दिया गया था। हैरानी हुई कि ये सारे काम बीएसएफ को करने पड़े। यहां तक कि किस अस्पताल का रास्ता कौन सा है, ऐसी जानकारियां भी नहीं दी गईं।

सहयोग के उलट डीसीपी की तरफ से बीएसएफ को आदेश दिए जाते हैं कि उनकी मंजूरी के बिना टीम के सदस्य कहीं बाहर न जाने पाएं। हां, यदि वे एयरपोर्ट जाते हैं तो उन्हें न रोका जाए। टीम के सदस्यों पर सख्त पहरा बैठाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई।

अस्पतालों का दौरा किया तो मिले ऐसे जवाब

चंद्रा के अनुसार, केंद्रीय अधिकारियों ने पूछा कि किसी कोविड मरीज की मौत सड़क हादसे में हो जाती है, तो उसे किस श्रेणी में रखेंगे। जवाब मिलता है कि यह तय करने के लिए डॉक्टरों की एक कमेटी गठित की गई है। बाद में मुख्य सचिव हेल्थ ने टीम को बताया कि कोई सड़क हादसे में मरा है, तो उसे कोविड मरीजों की श्रेणी में कैसे शामिल करेंगे।

इस मामले में मरीज की केस हिस्ट्री और आईसीएमआर की गाइडलाइंस को लेकर पूछा गया, तो संतोषजनक जवाब नहीं मिला। एमआर बांगुर अस्पताल में टेस्ट रिपोर्ट लेने के लिए पांच दिन से लोग इंतजार कर रहे थे। चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (सीएनसीआई) में ऐसे कई मरीज देखे गए, जिनका टेस्ट 17 और 18 अप्रैल को हुआ था, मगर रिपोर्ट 23 अप्रैल तक नहीं मिली।

डेथ सर्टिफिकेट के इंतजार में चार घंटे तक शवों को मरीजों के बीच रखा गया। टीम ने बताया कि ये खबर सोशल मीडिया पर चल रही थी, तो इसका कोई जवाब नहीं मिला। केवल यह कहा गया है कि सर्टिफिकेट तैयार हो रहा था, इसलिए शवगृह में नहीं रखे गए। हम प्रमाण पत्र जारी होने का इंतजार कर रहे थे।

फाइलों में और वस्तुस्थिति के बीच बहुत अंतर

राज्य के स्वास्थ्य महकमे ने लिखित में बताया कि रोजाना 1.25 लाख से दो लाख लोगों की जांच हो रही है। दौरे के वक्त बताया गया कि 400 से 900 लोगों के टेस्ट रोजाना हो रहे हैं। टीम ने पूछा कि दोबारा टेस्ट कितने हैं, किसी को नहीं मालूम था।

रिपोर्ट बता रही थी कि टेस्ट क्षमता उच्चस्तर पर है, जबकि जमीनी हकीकत के अनुसार, दूसरे राज्यों के मुकाबले यह प्रारंभिक स्तर पर है। सोशल मीडिया में आई इस खबर के बारे में पूछा कि यहां मेडिकल स्टाफ अपनी जांच खुद ही करता है तो बोले हां, इसमें क्या हर्ज है।

टीम ने कहा, ऐसे केस में प्रोफेशनल की जरूरत होती है। वहां मौजूद मेडिकल कर्मियों से पूछा गया कि वे राज्य की बीमा स्कीम जो दस लाख रुपये देती है, दूसरी ओर केंद्र की योजना, जिसमें 50 लाख मिलेंगे, उनका कहना था कि राज्य सरकार ने हिदायत दी है कि तुम्हारी मर्जी, कोई भी स्कीम ले लो। यानी कुछ भी पक्का नहीं था।

टीम के समक्ष जूनियर अफसरों को खड़ा कर किया

ये कहा गया था कि राज्य सरकार के सीनियर अफसर केंद्र की टीम के साथ रहेंगे। ऐसा कुछ नहीं हुआ। अपूर्वा चंद्रा के अनुसार, वहां जूनियर अफसरों को टीम के साथ भेज दिया। उन्हें कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी। यदि टीम के सदस्य किसी अस्पताल का दौरा करते हैं, तो उनको पीपीई किट मुहैया कराई जानी थी, इस पर अमल नहीं हुआ।

राज्य सरकार से कोरोना की लड़ाई के संदर्भ में दस सूचनाएं मांगी गई थीं। इनमें कोरोना पीड़ित लोगों का इलाज कैसे हो रहा है, क्वारंटीन सेंटर, रिलीफ कैंप में जरूरी वस्तुओं की सप्लाई और लॉकडाउन का तरीका क्या है, आदि सवाल थे।

जब वहां की सरकार ने रिपोर्ट सौंपी, तो उसमें दस सवालों का जवाब नहीं था। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए राज्य सरकार ने जो तैयारियां की हैं, उन्हें देखने के लिए केंद्र की तरफ से गठित इंटर मिनिस्टीरियल सेंट्रल टीम (आइएमसीटी) की दो टीमें सोमवार को पश्चिम बंगाल पहुंची थीं।




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