Csir Demands From Who To Lift Ban On Hydroxychloroquine Tests – सीएसआईआर ने डब्ल्यूएचओ से की हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के परीक्षणों पर लगी रोक को हटाने की मांग




न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Sat, 30 May 2020 02:15 AM IST

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डब्ल्यूएचओ द्वारा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के परीक्षण पर रोक  लगाए जाने के बाद  वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद( सीएसआईआर) के महानिदेशक शेखर मंडे ने कहा है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के परीक्षण को अस्थायी रूप से रोकने का निर्णय सही नहीं है और हम डब्ल्यूएचओ से अनुरोध करते हैं कि कोरोना मामलों में इसके उपयोग के लिए परीक्षणों को जल्द से जल्द फिर से शुरू करने की अनुमति दें।  
 

वहीं काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च(सीएसआईआर), इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी और चेन्नई मैथमेटिकल इंस्टीट्यूट ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की प्रभावशीलता पर सवाल उठाने वाली साइंस जर्नल ‘लैंसेट’ को पत्र लिखा है।

साइंस जर्नल ‘लैंसेट के स्टडी में पाया गया है कि मलेरिया की इस दवाई से कोरोना मरीजों को किसी तरह का स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है। द लैंसेट के अध्ययन में कोरोना वायरस से संक्रमित 96 हजार मरीजों को शामिल किया गया। इनमें से 15 हजार लोगों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन या फिर कोई दूसरी दवाई दी गई। बाद में पता चला कि दूसरे मरीजों की तुलना में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन खाने वाले वर्ग में ज्यादा मौतें हुईं। इन मरीजों में हृदय रोग की समस्या भी देखी गई। जिन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दी गई उनमें मृत्यु दर 18 फीसदी रही।   

डब्ल्यूएचओ द्वारा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के परीक्षण पर रोक  लगाए जाने के बाद  वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद( सीएसआईआर) के महानिदेशक शेखर मंडे ने कहा है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के परीक्षण को अस्थायी रूप से रोकने का निर्णय सही नहीं है और हम डब्ल्यूएचओ से अनुरोध करते हैं कि कोरोना मामलों में इसके उपयोग के लिए परीक्षणों को जल्द से जल्द फिर से शुरू करने की अनुमति दें।  

 

वहीं काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च(सीएसआईआर), इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी और चेन्नई मैथमेटिकल इंस्टीट्यूट ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की प्रभावशीलता पर सवाल उठाने वाली साइंस जर्नल ‘लैंसेट’ को पत्र लिखा है।

साइंस जर्नल ‘लैंसेट के स्टडी में पाया गया है कि मलेरिया की इस दवाई से कोरोना मरीजों को किसी तरह का स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है। द लैंसेट के अध्ययन में कोरोना वायरस से संक्रमित 96 हजार मरीजों को शामिल किया गया। इनमें से 15 हजार लोगों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन या फिर कोई दूसरी दवाई दी गई। बाद में पता चला कि दूसरे मरीजों की तुलना में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन खाने वाले वर्ग में ज्यादा मौतें हुईं। इन मरीजों में हृदय रोग की समस्या भी देखी गई। जिन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दी गई उनमें मृत्यु दर 18 फीसदी रही।   






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