About 14 Crore People Will Be Unemployed In A Month, Workers And Economy Will Be Saved Only By Allowing Agriculture-construction Sector – लॉकडाउन में लगभग 14 करोड़ लोग बेरोजगार, कृषि-निर्माण क्षेत्र से ही बचेंगे मजदूर और अर्थव्यवस्था




लॉकडाउन ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के सामने विकट परिस्थिति पैदा कर दी है। शहरों में निर्माण गतिविधियां और फैक्ट्रियों में कामकाज ठप होने से उनका रोजगार खत्म हो गया है, तो गांवों में भी अब उनके पास ज्यादा मौके नहीं रह गए हैं।

लॉकडाउन के समय में लगभग 14 करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इन श्रमिकों को भोजन मुहैया कराने के लिए सरकारों को सीधे तौर पर इनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए।

लेकिन यह विकल्प लंबे समय तक नहीं अपनाया जा सकता, इसलिए आवश्यक प्रतिबंधों के साथ उन क्षेत्रों में कामकाज की इजाजत देनी चाहिए, जिनमें कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा कम किया जा सकता है। इससे मजदूरों को काम मिल सकेगा और साथ ही अर्थव्यवस्था में भी सुधार आएगा।

आर्थिक विशेषज्ञ और कांग्रेस से जुड़े प्रो. गौरव वल्लभ के मुताबिक, लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं है। यह एक पॉज बटन की तरह है, जो सरकारों को कोरोना से लड़ने की तैयारी के लिए कुछ अतिरिक्त समय देता है।

उनका आरोप है कि सरकार ने इस समय को बेहतर ढंग से इस्तेमाल नहीं किया है। देश में प्रतिदिन 20 लाख कोरोना टेस्टिंग की आवश्यकता है, जबकि अब तक के लगभग सवा महीनों में हम केवल आठ लाख टेस्ट ही कर सके हैं।

अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए क्या करें

प्रो. गौरव वल्लभ के अनुसार कोरोना काल में लगभग 14 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी हैं। अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए चुने क्षेत्रों को धीरे-धीरे खोलना चाहिए।

यहां कोरोना संक्रमण रोकने के लिए उचित इंतजाम करना चाहिए। इसके अलावा असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे मजदूरों के लिए कम से कम तीन महीने का अग्रिम भुगतान कर उनकी स्थिति संभालनी चाहिए।

मध्यम और लघु उद्योग क्षेत्र में लगभग 6.3 करोड़ इकाइयां काम करती हैं, जिनमें लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। अगर इनके सुधार की कोई योजना नहीं लाई जाती है, तो ये अपने कामगारों को वेतन देने की स्थिति में नहीं होंगे, जिससे देश में बेतहाशा बेरोजगारी बढ़ेगी।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक 26 अप्रैल को समाप्त हुए सप्ताह में भारत में बेरोजगारी दर 21.1 फीसदी थी। इसके पहले यह दर 26 फीसदी तक पहुंच गई थी।

कृषि गतिविधियों में शुरुआत और कुछ क्षेत्रों में आंशिक कामकाज शुरू होने के कारण इसमें सुधार दर्ज किया गया है। जबकि मार्च 2020 में भारत में रोजगार दर गिरकर 38.2 फीसदी हो गई थी।

जबकि इसी दौरान लेबर पार्टिसिपेशन रेट (LPR) 41.9 फीसद था। फरवरी 2019 में लेबर पार्टिसिपेशन रेट 42.6 फीसद और मार्च 2019 में 42.7 फीसदी था।

आईएलओ ने चेताया

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन या इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) ने बताया है कि कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में लोगों को बेरोजगार होना पड़ा है। वैश्विक स्तर पर रोजगार क्षेत्र में लगभग 10.5 फीसदी की कमी आ सकती है।

यह 30.5 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर हो सकता है। कोरोना वायरस का प्रभाव लंबा खिंचने पर यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है।

पूरी दुनिया में 330 करोड़ के लगभग कामगार हैं। इसमें से लगभग दो अरब श्रमिक अनौपचारिक सेक्टर में काम करते हैं। अर्थव्यवस्था ठप होने का सबसे बड़ा असर इसी सेक्टर पर पड़ता है। सबसे ज्यादा नुकसान उन देशों को भुगतना पड़ सकता है जहां कोरोना वायरस के कारण कामबंदी की स्थिति पैदा हुई है।     




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