इस मामले में एक बड़ी चूक सामने आई है। वो ये है कि जवानों का कोरोना टेस्ट कराने में अनावश्यक देरी की गई। फरवरी, मार्च में न के बराबर और अप्रैल में गिने चुने कर्मियों के टेस्ट कराए गए। जो भी कर्मी हल्के फुल्के लक्षण लेकर सामने आता तो उसे क्वारंटीन सेंटर में भेज दिया जाता था। सूत्रों के अनुसार, सीआरपीएफ में कई जगहों पर क्वारंटीन सेंटर की अवधि 14 दिन से कम रखी गई। इसी तरह दूसरे बलों में अनेक कर्मियों की यह शिकायत रही है कि मेस और बैरक में कोरोना से बचाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई। केवल आदेश आते रहे, लेकिन उसके लिए पर्याप्त संसाधन मुहैया नहीं कराए गए।
सीएपीएफ के एक अधिकारी जो कि दिल्ली में तैनात हैं, उन्होंने बड़े स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर शुरू में टेस्ट हो जाते तो आज कोरोना पॉजिटिव केसों का आंकड़ा इतना ज्यादा नहीं होता।सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी की कई बटालियन दिल्ली में तैनात हैं। इन्हें दिल्ली पुलिस के साथ ड्यूटी दी जाती है। मरकज को खाली कराने के दौरान और उसके बाद भी दस दिन तक सीआरपीएफ की एक प्लाटून वहां तैनात रही है। यहां तक कि बल कर्मियों ने यह बात भी कही थी कि जमातियों ने कथित तौर से उन पर थूकने का प्रयास किया।
जब उन्हें क्वारंटीन सेंटर ले जाया गया, तब भी उनके साथ सोशल डिस्टेंसिंग को जानबूझकर खत्म करने का प्रयास हुआ। जवानों की ड्यूटी इतनी मुश्किल थी कि उन्हें वापस आकर खुद को सैनिटाइज करने में काफी देर लग जाती थी। उन्हें अपने कपड़े और जूते सामान्य डिटरजेंट में साफ करने पड़ते थे। अगर किसी जवान को बहुत ज्यादा दिक्कत होती तो ही उसका टेस्ट कराया गया। टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आती तो उसके संपर्क वाले कर्मियों को क्वारंटीन में भेजते थे, लेकिन वहां टेस्ट बहुत कम होते थे। साथ ही उस जवान की क्वारंटीन अवधि भी कम कर दी जाती, जो सामान्य स्थिति में होता।
आदेश पर आदेश आते रहे, मगर संसाधनों को लेकर चुप रहे
केंद्रीय सुरक्षा बलों में जवानों के लिए आदेश तो बहुत आते रहे, मगर संसाधनों को लेकर सब चुप रहे। मेस और बैरक में सोशल डिस्टेंसिंग न के बराबर रही। नई दिल्ली में स्थित कुछ बैरक तो ऐसे रहे, जिनमें जवानों के सोने के बेड ऊपर नीचे व बिल्कुल साथ साथ लगे हुए थे। बल कर्मियों को हाथ साफ करने, दस्ताने पहनने, पर्स घड़ी आदि को 70 फीसदी एल्कोहल वाले सैनिटाइजर से साफ करने के लिए कहा गया।
बहुत सी बटालियन ऐसी थी, जिनमें ये संसाधन जवानों को मुहैया नहीं कराए गए। जवान अपने स्तर पर ही कुछ इंतजाम करते थे। वस्त्रों को खास तरह के डिटरजेंट सॉल्यूशन में डालने का आदेश आया, लेकिन सॉल्यूशन नहीं मुहैया कराया गया। जवानों के पास खुद से टेस्ट कराने का कोई साधन नहीं था। उन्हें अपनी जेब से 4500 रुपये देने पड़ते थे।
उस वक्त किसी को यह नहीं बताया गया कि इस टेस्ट के पैसे वापस कैसे होंगे। किसी भी सामान्य स्थिति वाले जवान के लिए टेस्ट निशुल्क नहीं था। बहुत से जवान ऐसे भी थे, जिनमें हल्के लक्षण दिखे और वे खुद ठीक भी हो गए। सीआरपीएफ के नरेला और मंडोली स्थित क्वारंटीन सेंटर में रह रहे कर्मियों ने बताया कि हम लोग टेस्ट के प्रति सचेत तो रहे, लेकिन कहां कराना है और उसके पैसे कौन देगा, वापस कब मिलेंगे, ये सब सवाल दिमाग में घूमते रहे।
अप्रैल के अंत में कुछ जवानों के टेस्ट हुए थे। अगर फरवरी और मार्च में रेंडम आधार पर टेस्ट हो जाते तो आज कोरोना इतनी तेजी से नहीं फैलता। अधिकारियों को मालूम था कि ये जवान मरकज, विभिन्न अस्पताल, मार्ग और रेड जोन में ड्यूटी दे रहे हैं तो भी उनके नहीं टेस्ट नहीं कराए गए।
दिल्ली से कोरोना का संक्रमण दूसरी बटालियनों में पहुंच गया
राज्यस्थान के जोधपुर में बीएसएफ के 30 जवान कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए हैं। ये जवान दिल्ली में तैनात थे। उन्हें जोधपुर स्थित क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया था। बीएसएफ की एक कंपनी, जिसमें 65 जवान शामिल थे, उन्हें आंतरिक सुरक्षा ड्यूटी पर जयपुर से दिल्ली में तैनात किया गया था। कई जवान जामा मस्जिद में भी तैनात रहे हैं। बीएसएफ में कोरोना के चलते दो कर्मियों की मौत हो गई। इस बल में अभी तक दो सौ से ज्यादा जवान संक्रमित हो चुके हैं।सीआरपीएफ को भी अपना एक एसआई खोना पड़ा। इस बल में कोरोना से पीड़ित कर्मियों की संख्या दो सौ के पार हो गई है।
त्रिपुरा में बीएसएफ के 62 जवान संक्रमित मिले हैं। त्रिपुरा का धलाई जिला जो कि पिछले सप्ताह तक ग्रीन जोन में था, अब वह बीएसएफ जवानों के कारण रेड जोन में तब्दील हो गया है।आईटीबीपी में 100 केस पॉजिटिव मिले हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को सभी बलों के महानिदेशकों की बैठक में कोरोना संक्रमण बाबत विभिन्न सावधानियां बरतने की हिदायत दी है।अगर जरूरत है तो इसके लिए प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाए। उन्होंने मेस में खाने पीने की व्यवस्थाएं बदलना और बैरक में रहने की सुविधा को बेहतर बनाना, जैसे कई सुझाव दिए हैं।