न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Tue, 12 May 2020 05:54 AM IST
कोरोना के सामुदायिक संक्रमण की पड़ताल करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए हर जिले में साप्ताहिक आधार पर 200 नमूनों की जांच की जाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकारों के जरिेए जिला प्रशासनों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हर सप्ताह एक जिले से कम से कम 200 नमूने एकत्रित किए जाएंगे, जिनमें 50 फीसदी सैंपल स्वास्थ्य कर्मचारियों के होंगे। एक महीने में एक जिले से 800 सैंपल लेकर जांच की जाएगी। इस दौरान पूलिंग सिस्टम से सैंपल लिए जा सकेंगे। इनकी आरटी पीसीआर जांच के साथ रिपोर्ट केंद्र को भी भेजी जाएगी, ताकि पता लगाया जा सके कि संक्रमण का स्तर जिलावार किस स्थिति में है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, वायरस को लेकर देश में सुव्यवस्थित ढंग से निगरानी या सर्विलांस की जरूरत है। यह निगरानी प्रतिदिन होने वाली जांच और उपचार से एकदम अलग होगी। स्वास्थ्य कर्मचारियों के अलावा आबादी के एक हिस्से को भी इसमें शामिल किया जाएगा। पूरा अध्ययन दो समूह में चलेगा। हालांकि यह आबादी का सर्विलांस देश के कुछ ही जिलों में किया जाएगा। जबकि स्वास्थ्य कर्मचारियों को लेकर हर जिले में सर्विलांस होगा।
अस्पताल और आबादी के समूह
इस सर्विलांस को दो समूह में बांटा गया है। पहला सर्विलांस यूनिट, जिसके तहत हर जिले से कम से कम 10 अस्पताल (6 सरकारी, 4 प्राइवेट अस्पताल) का चयन किया जाएगा और वहां के स्वास्थ्य कर्मचारियों की जांच होगी। दूसरा समूह आबादी से जुड़ा है। इसमें भी कम और अधिक रिस्क आबादी के दो अलग समूह बनाए हैं। कम रिस्क आबादी के तहत ऐसे मरीजों की जांच की जाएगी जो आईएलआई (एक प्रकार से फ्लू ग्रस्त) तो नहीं है लेकिन वे अन्य रोग से पीड़ित हैं। इसी समूह में गर्भवती महिलाओं को भी शामिल किया है। हाई रिस्क आबादी के समूह में स्वास्थ्य कर्मचारियों को रखा गया है।
जांच का इस्तेमाल इलाज के लिए नहीं
सैंपल पूलिंग सिस्टम के तहत जो भी परिणाम सामने आएंगे उनका इस्तेमाल सिर्फ सर्विलांस के लिए किया जाएगा न कि उपचार के लिए। इसी अध्ययन के दौरान एलाइजा किट का इस्तेमाल भी किया जाएगा जिसमें रक्त की जांच के जरिए एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है। सभी जिलों से यह पूरा डाटा केंद्र तक पहुंचेगा जिसके बाद आगे की नीति पर काम किया जाएगा। इसके आधार पर ही सामुदायिक फैलाव की स्थिति के बारे में पता चल सकता है।
घर में संक्रमित, तो बाकी की भी जांच
सैंपल पूलिंग का मतलब यह होता है कि अगर किसी इमारत में 10 परिवार रहते हैं और हर परिवार में 5-5 लोग रहते हैं तो एक-एक घर से 10 सैंपल लेकर जांच की जाती है इसमें से अगर 2 या 3 भी संक्रमित मिलते हैं तो उनके घर के बाकी सदस्यों की जांच होती है। ऐसा होने से 10 या 15 सैंपल की जांच हो जाती है। अन्य 35 सैंपल की बेवजह जांच की जरूरत नहीं पड़ती।
…तो इसलिए महिलाओं से ज्यादा पुरुषों में संक्रमण
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक संक्रमण की एक और वजह हो सकती है। यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, रक्त में महिलाओं से ज्यादा मॉलीक्यूल्स के कारण पुरुष चपेट में आते हैं। एस रिसेप्टरर्स ब्लॉक करने की दवा लेने वाले मरीजों में मौजूद एस रिसेप्टर्स से भी वायरस शरीर में पहुंचता है। नीदरलैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रोनिगेन के शोधकर्ता एड्रियन वूर्स बताते हैं, पहले दावा था कि रक्त में मौजूद प्लाज्मा में एस-2 की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक है। एड्रियन का कहना है, एस-2 प्लाज्मा में मिलता है न की कोशिकाओं और उत्तकों में।
समूहों पर किया अध्ययन
ग्यारह यूरोपीय देशों के हृदय रोगियों के दो समूह पर अध्ययन किया गया। पहले समूह में 1485 पुरुष व 538 महिलाएं थीं। दूसरे में 1123 पुरुष व 575 महिलाएं थीं। अध्ययन में पता चला कि पुरुषों में एस-2 रिसेप्टर महिलाओं की तुलना में अधिक थे जो जिससे वायरस शरीर में पहुंचता है।
कोरोना के सामुदायिक संक्रमण की पड़ताल करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए हर जिले में साप्ताहिक आधार पर 200 नमूनों की जांच की जाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकारों के जरिेए जिला प्रशासनों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हर सप्ताह एक जिले से कम से कम 200 नमूने एकत्रित किए जाएंगे, जिनमें 50 फीसदी सैंपल स्वास्थ्य कर्मचारियों के होंगे। एक महीने में एक जिले से 800 सैंपल लेकर जांच की जाएगी। इस दौरान पूलिंग सिस्टम से सैंपल लिए जा सकेंगे। इनकी आरटी पीसीआर जांच के साथ रिपोर्ट केंद्र को भी भेजी जाएगी, ताकि पता लगाया जा सके कि संक्रमण का स्तर जिलावार किस स्थिति में है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, वायरस को लेकर देश में सुव्यवस्थित ढंग से निगरानी या सर्विलांस की जरूरत है। यह निगरानी प्रतिदिन होने वाली जांच और उपचार से एकदम अलग होगी। स्वास्थ्य कर्मचारियों के अलावा आबादी के एक हिस्से को भी इसमें शामिल किया जाएगा। पूरा अध्ययन दो समूह में चलेगा। हालांकि यह आबादी का सर्विलांस देश के कुछ ही जिलों में किया जाएगा। जबकि स्वास्थ्य कर्मचारियों को लेकर हर जिले में सर्विलांस होगा।
अस्पताल और आबादी के समूह
इस सर्विलांस को दो समूह में बांटा गया है। पहला सर्विलांस यूनिट, जिसके तहत हर जिले से कम से कम 10 अस्पताल (6 सरकारी, 4 प्राइवेट अस्पताल) का चयन किया जाएगा और वहां के स्वास्थ्य कर्मचारियों की जांच होगी। दूसरा समूह आबादी से जुड़ा है। इसमें भी कम और अधिक रिस्क आबादी के दो अलग समूह बनाए हैं। कम रिस्क आबादी के तहत ऐसे मरीजों की जांच की जाएगी जो आईएलआई (एक प्रकार से फ्लू ग्रस्त) तो नहीं है लेकिन वे अन्य रोग से पीड़ित हैं। इसी समूह में गर्भवती महिलाओं को भी शामिल किया है। हाई रिस्क आबादी के समूह में स्वास्थ्य कर्मचारियों को रखा गया है।
जांच का इस्तेमाल इलाज के लिए नहीं
सैंपल पूलिंग सिस्टम के तहत जो भी परिणाम सामने आएंगे उनका इस्तेमाल सिर्फ सर्विलांस के लिए किया जाएगा न कि उपचार के लिए। इसी अध्ययन के दौरान एलाइजा किट का इस्तेमाल भी किया जाएगा जिसमें रक्त की जांच के जरिए एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है। सभी जिलों से यह पूरा डाटा केंद्र तक पहुंचेगा जिसके बाद आगे की नीति पर काम किया जाएगा। इसके आधार पर ही सामुदायिक फैलाव की स्थिति के बारे में पता चल सकता है।
घर में संक्रमित, तो बाकी की भी जांच
सैंपल पूलिंग का मतलब यह होता है कि अगर किसी इमारत में 10 परिवार रहते हैं और हर परिवार में 5-5 लोग रहते हैं तो एक-एक घर से 10 सैंपल लेकर जांच की जाती है इसमें से अगर 2 या 3 भी संक्रमित मिलते हैं तो उनके घर के बाकी सदस्यों की जांच होती है। ऐसा होने से 10 या 15 सैंपल की जांच हो जाती है। अन्य 35 सैंपल की बेवजह जांच की जरूरत नहीं पड़ती।
…तो इसलिए महिलाओं से ज्यादा पुरुषों में संक्रमण
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक संक्रमण की एक और वजह हो सकती है। यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, रक्त में महिलाओं से ज्यादा मॉलीक्यूल्स के कारण पुरुष चपेट में आते हैं। एस रिसेप्टरर्स ब्लॉक करने की दवा लेने वाले मरीजों में मौजूद एस रिसेप्टर्स से भी वायरस शरीर में पहुंचता है। नीदरलैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रोनिगेन के शोधकर्ता एड्रियन वूर्स बताते हैं, पहले दावा था कि रक्त में मौजूद प्लाज्मा में एस-2 की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक है। एड्रियन का कहना है, एस-2 प्लाज्मा में मिलता है न की कोशिकाओं और उत्तकों में।
समूहों पर किया अध्ययन
ग्यारह यूरोपीय देशों के हृदय रोगियों के दो समूह पर अध्ययन किया गया। पहले समूह में 1485 पुरुष व 538 महिलाएं थीं। दूसरे में 1123 पुरुष व 575 महिलाएं थीं। अध्ययन में पता चला कि पुरुषों में एस-2 रिसेप्टर महिलाओं की तुलना में अधिक थे जो जिससे वायरस शरीर में पहुंचता है।
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