राजीव सिन्हा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Wed, 06 May 2020 03:03 AM IST
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शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें कोरोना महामारी से लड़ रहे पुलिसकर्मियों के वेतन में कटौती को चुनौती दी गई थी। जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस वीआर गवई की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को सरकार के पास ही जाने का निर्देश दिया। यह याचिका पूर्व आईपीएस अधिकारी भानुप्रताप बरगे ने दायर की थी।
याचिका में यह भी कहा गया था कि अपनी जान जोखिम में लगाकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे पुलिसकर्मियों को इस काम के लिए अतिरिक्त भत्ता दिया जाना चाहिए। लेकिन पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-32 के तहत नीतिगत फैसले से संबंधित होने के चलते ऐसी याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
बरगे की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत कामत ने पीठ से कहा कि एक समान नीति होने के बावजूद कई राज्य पुलिस अधिकारियों का वेतन काट रहे हैं। इस पर पीठ ने कहा कि यह नीतिगत मामला है। पीठ ने कहा कि यह सरकार पर निर्भर है कि वह इस पर विचार करे या न करे। पीठ के सदस्य जस्टिस कौल ने सवाल पूछा, क्या अनुच्छेद-32 के तहत ऐसी याचिका दायर की जा सकती है।
समस्या इस बात की है कि सभी लोग कोरोना मामले में विशेषज्ञ बन गए है। कोरोना समस्या को छोड़ अन्य याचिकाएं नहीं आ रही हैं। जस्टिस कौल ने यह भी कहा कि सभी लोग कठिन वक्त से गुजर रहे हैं। सरकार स्थिति से अच्छी तरह अवगत है। बेहतर होगा कि सरकार को अपना काम करने दिया जाए।
सरकार के ऊपर कोई सरकार नहीं होनी चाहिए। जस्टिस कौल ने कहा, लोगों के पास कोई काम नहीं है तो वह ऐसी याचिका दायर कर काम को ईजाद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की याचिका देखकर हमें दुख होता है। इसके बाद याचिका को खारिज कर दिया गया।
हम केंद्र सरकार को सुझाव ही दे सकते हैं