Special Celestial Bodies Pass Through The Earth In Gorakhpur – आज पृथ्वी के पास से गुजरेगा खगोलीय पिंड, 59 साल बाद दोबारा होगा ऐसा




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खगोलीय घटनाओं में रुचि रखने वाले लोगों के लिए आज का दिन बेहद यादगार होगा। बुधवार को पृथ्वी के करीब से माउंट एवरेस्ट की आधी ऊंचाई के बराबर एक बड़ा खगोलीय पिंड गुजरेगा।

4.1 किलोमीटर (व्यास) जितना चौड़ा ये पिंड दोपहर 3:30 बजे 31320 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से पृथ्वी के पास से गुजरेगा। इस खगोलीय घटना को आने वाले 59 साल बाद यानि 2079 में ही फिर देखा जा सकेगा, जब इस पिंड की दूरी धरती से इतनी करीब होगी।

वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला के खगोलविद् अमर पाल सिंह ने बताया कि ये पिंड धरती से 3.9 मिलियन माइल्स की दूरी से गुजरेगा जो पृथ्वी और चंद्रमा के बीच स्थित 3.84 लाख किलोमीटर दूरी से 16 गुना अधिक होगा।

अमेरिका की अंतरिक्ष शोध अनुसंधान एजेंसी (नासा) को इस एस्टोरॉयड के बारे में साल 1998 में ही सब कुछ पता चल गया था। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इसका नाम 52768 और 1998 ओआर-2 दिया है।
 
भारतीय समयानुसार ये खगोलीय घटना दोपहर 3:30 बजे होगी। दिन में घटित होने की वजह से इसे टेलीस्कोप की मदद से ही देख सकेंगे। जिनके पास टेलीस्कोप नहीं है, वे वर्चुअल टेलीस्कोप की वेबसाइट पर जाकर इस अनोखी घटना को सजीव देख सकते हैं।  

पृथ्वी के करीब क्यों बता रहे वैज्ञानिक
ब्रह्मांड की दूरियों को खगोलीय इकाई में मापा जाता है। एक खगोलीय इकाई पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी यानी 150 मिलियन माइल्स के बराबर होती है। 29 अप्रैल को होने वाली घटना की दूरी पृथ्वी से 3.9 मिलियन माइल्स ही है जो खगोलीय इकाई के मुताबिक काफी कम है।

खगोलीय घटनाओं में रुचि रखने वाले लोगों के लिए आज का दिन बेहद यादगार होगा। बुधवार को पृथ्वी के करीब से माउंट एवरेस्ट की आधी ऊंचाई के बराबर एक बड़ा खगोलीय पिंड गुजरेगा।

4.1 किलोमीटर (व्यास) जितना चौड़ा ये पिंड दोपहर 3:30 बजे 31320 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से पृथ्वी के पास से गुजरेगा। इस खगोलीय घटना को आने वाले 59 साल बाद यानि 2079 में ही फिर देखा जा सकेगा, जब इस पिंड की दूरी धरती से इतनी करीब होगी।
वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला के खगोलविद् अमर पाल सिंह ने बताया कि ये पिंड धरती से 3.9 मिलियन माइल्स की दूरी से गुजरेगा जो पृथ्वी और चंद्रमा के बीच स्थित 3.84 लाख किलोमीटर दूरी से 16 गुना अधिक होगा।

अमेरिका की अंतरिक्ष शोध अनुसंधान एजेंसी (नासा) को इस एस्टोरॉयड के बारे में साल 1998 में ही सब कुछ पता चल गया था। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इसका नाम 52768 और 1998 ओआर-2 दिया है।
 


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टेलीस्कोप से देख सकेंगे




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