Opposition Is Pressurizing Central Government To Take Back The Decision Of Reduction In Salary And Allowance Of Central Employees – वेतन-भत्तों में कटौती : बढ़ते विरोध के चलते केंद्र सरकार पर कदम वापसी का दबाव




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आने वाले दिनों में विभिन्न राज्यों के कर्मचारी संगठनों के साथ साथ एक्स सर्विस मैन एसोसिएशन भी इसके खिलाफ आवाज उठाने की तैयारी कर रही है। इस बढ़ते दबाव में हो सकता है कि सरकार इस फैसले को वापस ले ले या उसमें संशोधन कर दे। सूत्र बताते हैं कि वित्त मंत्रालय इस बाबत जल्द ही नई गाइडलाइन जारी कर सकता है। वजह, वेतन-भत्तों के मामले में अधिकांश राज्य केंद्र को फॉलो करते हैं। खासतौर से भाजपा शासित प्रदेश अपने कर्मियों के वेतन-भत्तों में केंद्र की तरह कैंची चलाने के लिए तैयार हैं।

‘वेतन-भत्तों पर कैंची चलाने से पहले कर्मियों से सलाह लेनी चाहिए थी’

ज्वाइंट कंसल्टेशन मशीनरी फॉर सेंटर गवर्नमेंट इम्प्लाई के सचिव शिव गोपाल मिश्रा के अनुसार, देश का हर सरकारी कर्मचारी आज कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान दे रहा है। केंद्र सरकार को कर्मियों के वेतन-भत्तों पर कैंची चलाने से पहले उन्हें विश्वास में लेना चाहिए था। कैबिनेट सचिव को लिखे अपने पत्र में मिश्रा ने कहा है कि 48 लाख कर्मी, जिनमें सेना और रेल कर्मचारी भी शामिल हैं, इन सबने एक दिन का वेतन पीएम केयर्स फंड में जमा कराया है। कई विभागों में कर्मियों ने अपनी इच्छानुसार इससे ज्यादा राशि भी दान की है। अब इनकी सेलरी या भत्ते काटकर इन्हें परेशान नहीं करना चाहिए। 

कई विभागों के कर्मियों ने अपने अपने तरीके से जरूरतमंद लोगों की मदद की है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अब एचआरए की दरें शहरों की स्थिति के अनुसार बढ़नी चाहिए थीं। इनमें एक्स श्रेणी के शहरों में 24 फीसदी से 27 और वाई में 16 से 18 फीसदी व जेड में आठ से नौ फीसदी दरें बढ़ाना शामिल था। अब जरूरत की वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं तो ऐसे में एक जुलाई 2020 तक महंगाई भत्ते के 25 फीसदी से अधिक बढ़ने की उम्मीद थी। अब महंगाई भत्ते की बढ़ोतरी पर लगाई गई रोक का असर मकान किराये भत्ते पर भी पड़ेगा।मार्च में सरकार ने डीए 17 से 21 फीसदी करने की घोषणा की थी।

‘सुरक्षा बलों को इस कटौती से छूट मिलनी चाहिए थी’

कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह का कहना है कि सरकार के इस फैसले का असर 20 लाख सेवारत एवं सेवानिवृत परिवारों पर पड़ेगा। सरहदों, आतंकियों और नक्सल प्रभावित इलाकों में बहादुरी दिखा रहे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों को इस कटौती से छूट मिलनी चाहिए थी। 

कोरोना की लड़ाई में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी व अन्य अर्धसैनिक बलों के जवानों को गली मुहल्लों में आम जनता को मुफ्त राशन, फ्री मास्क व पीपीई किट और दवाइयां बांटते हुए देखा जा सकता है। कामगारों और मजदूरों की मदद करने के लिए इन सुरक्षा बलों की जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम है।

अर्धसैनिक बलों ने सबसे पहले एक कदम आगे रखकर पीएम केयर्स फंड में 116 करोड़ रुपए की राशि जमा कराई थी। आईटीबीपी व बीएसएफ ने बड़े क्वारंटीन सेंटर बनाए हैं। इसके बावजूद सुरक्षा बलों के भत्तों पर कैंची चला दी गई। केंद्र सरकार का यह फैसला पूरी तरह गलत है। सरकार को समय रहते वेतन भत्तों में कटौती की घोषणा वापस लेनी चाहिए।

राज्यों के कर्मचारी संगठन भी होने लगे हैं लामबंद

केंद्र सरकार की तर्ज पर राज्य सरकारें भी देर सवेर अपने कर्मियों के वेतन भत्तों में कटौती करने की तैयारी कर रही हैं। पंजाब के कर्मचारी संगठन ‘सांझा मुलाजिम मंच’ के कनवीनर सुखचैन सिंह खैरा का कहना है कि यह फैसला गलत है। कर्मचारियों व पेंशनरों के महंगाई भत्ते पर जून 2021 तक रोक लगाने का फैसला उचित नहीं कहा जा सकता। 

हरियाणा रोडवेज संयुक्त कर्मचारी संघ के राज्य प्रधान दलबीर किरमारा ने कहा, सरकार को अपने अनावश्यक खर्चों में कटौती करनी चाहिए। सरकार पहले तो विधायकों का मकान भत्ता 50 हजार रुपए से बढ़ा कर एक लाख रुपए करने का फैसला कर लेती है और उसके बाद दिखावे के लिए कोरोना के नाम पर 30 फीसदी की कटौती का ढोंग करती है। 

सर्व कर्मचारी संघ के नेता नरेश गौतम, सुरेंद्र मान, छबील दास मौलिया व सुभाष गुज्जर आदि कर्मचारी नेताओं ने कहा कि सरकार को यह फैसला तुरंत वापस लेना चाहिए। विभिन्न राज्यों में कर्मचारियों की श्रेणी के अनुसार वेतनमान में 10, 20 और 30 फीसदी कटौती का प्रस्ताव लाया जा रहा है। यूपी में डीए रोका गया है, जबकि केरल में मुख्यमंत्री पी विजयन ने अगले पांच महीनों में हर माह छह दिन की वेतन कटौती की घोषणा कर दी है।

मुश्किल वक्त में केंद्रीय कर्मचारियों और सैनिकों पर डीए कटौती का फैसला गैरजरूरी

पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह तो पहले ही सरकार के इस फैसले की आलोचना कर चुके हैं। उन्होंने मोदी सरकार से फिजूलखर्ची रोकने का आग्रह किया है। कोरोना जैसी महामारी के मुश्किल वक्त में केंद्रीय कर्मचारियों और सैनिकों पर डीए कटौती का फैसला थोपना आवश्यक नहीं है। सरकार को वेतन भत्ते में कटौती से परे बुलेट ट्रेन और अन्य फिजूलखर्ची वाली योजनाओं पर रोक लगानी चाहिए। 

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बुलेट ट्रेन और सेंट्रल विस्टा सौंदर्यीकरण परियोजना में फालतू के खर्चे किए जा रहे हैं। इन्हें रोकने के बजाए सरकार आम वर्ग से पैसा वसूल रही है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी मोदी सरकार के इस फैसले की आलोचना की है। बता दें कि कांग्रेस ने लॉकडाउन और कोरोना महामारी को देखते हुए एक सलाहकार समिति का गठन किया है। इस कमेटी में 11 सदस्य हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसकी अध्यक्षता कर रहे हैं।

सार

कोरोना की लड़ाई के नाम पर केंद्रीय कर्मियों के वेतन-भत्तों में भारी कटौती करने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध बढ़ता जा रहा है। इस लड़ाई में अब प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी कूद गई है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के अलावा ज्वाइंट कंसल्टेशन मशीनरी फॉर सेंटर गवर्नमेंट इम्प्लाई, कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन, भारतीय मजदूर संघ, सांझा मुलाजिम मंच पंजाब और सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा ने भी सरकार का विरोध किया है।

विस्तार

आने वाले दिनों में विभिन्न राज्यों के कर्मचारी संगठनों के साथ साथ एक्स सर्विस मैन एसोसिएशन भी इसके खिलाफ आवाज उठाने की तैयारी कर रही है। इस बढ़ते दबाव में हो सकता है कि सरकार इस फैसले को वापस ले ले या उसमें संशोधन कर दे। सूत्र बताते हैं कि वित्त मंत्रालय इस बाबत जल्द ही नई गाइडलाइन जारी कर सकता है। वजह, वेतन-भत्तों के मामले में अधिकांश राज्य केंद्र को फॉलो करते हैं। खासतौर से भाजपा शासित प्रदेश अपने कर्मियों के वेतन-भत्तों में केंद्र की तरह कैंची चलाने के लिए तैयार हैं।

‘वेतन-भत्तों पर कैंची चलाने से पहले कर्मियों से सलाह लेनी चाहिए थी’

ज्वाइंट कंसल्टेशन मशीनरी फॉर सेंटर गवर्नमेंट इम्प्लाई के सचिव शिव गोपाल मिश्रा के अनुसार, देश का हर सरकारी कर्मचारी आज कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान दे रहा है। केंद्र सरकार को कर्मियों के वेतन-भत्तों पर कैंची चलाने से पहले उन्हें विश्वास में लेना चाहिए था। कैबिनेट सचिव को लिखे अपने पत्र में मिश्रा ने कहा है कि 48 लाख कर्मी, जिनमें सेना और रेल कर्मचारी भी शामिल हैं, इन सबने एक दिन का वेतन पीएम केयर्स फंड में जमा कराया है। कई विभागों में कर्मियों ने अपनी इच्छानुसार इससे ज्यादा राशि भी दान की है। अब इनकी सेलरी या भत्ते काटकर इन्हें परेशान नहीं करना चाहिए। 

कई विभागों के कर्मियों ने अपने अपने तरीके से जरूरतमंद लोगों की मदद की है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अब एचआरए की दरें शहरों की स्थिति के अनुसार बढ़नी चाहिए थीं। इनमें एक्स श्रेणी के शहरों में 24 फीसदी से 27 और वाई में 16 से 18 फीसदी व जेड में आठ से नौ फीसदी दरें बढ़ाना शामिल था। अब जरूरत की वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं तो ऐसे में एक जुलाई 2020 तक महंगाई भत्ते के 25 फीसदी से अधिक बढ़ने की उम्मीद थी। अब महंगाई भत्ते की बढ़ोतरी पर लगाई गई रोक का असर मकान किराये भत्ते पर भी पड़ेगा।मार्च में सरकार ने डीए 17 से 21 फीसदी करने की घोषणा की थी।

‘सुरक्षा बलों को इस कटौती से छूट मिलनी चाहिए थी’

कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह का कहना है कि सरकार के इस फैसले का असर 20 लाख सेवारत एवं सेवानिवृत परिवारों पर पड़ेगा। सरहदों, आतंकियों और नक्सल प्रभावित इलाकों में बहादुरी दिखा रहे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों को इस कटौती से छूट मिलनी चाहिए थी। 

कोरोना की लड़ाई में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी व अन्य अर्धसैनिक बलों के जवानों को गली मुहल्लों में आम जनता को मुफ्त राशन, फ्री मास्क व पीपीई किट और दवाइयां बांटते हुए देखा जा सकता है। कामगारों और मजदूरों की मदद करने के लिए इन सुरक्षा बलों की जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम है।

अर्धसैनिक बलों ने सबसे पहले एक कदम आगे रखकर पीएम केयर्स फंड में 116 करोड़ रुपए की राशि जमा कराई थी। आईटीबीपी व बीएसएफ ने बड़े क्वारंटीन सेंटर बनाए हैं। इसके बावजूद सुरक्षा बलों के भत्तों पर कैंची चला दी गई। केंद्र सरकार का यह फैसला पूरी तरह गलत है। सरकार को समय रहते वेतन भत्तों में कटौती की घोषणा वापस लेनी चाहिए।

राज्यों के कर्मचारी संगठन भी होने लगे हैं लामबंद

केंद्र सरकार की तर्ज पर राज्य सरकारें भी देर सवेर अपने कर्मियों के वेतन भत्तों में कटौती करने की तैयारी कर रही हैं। पंजाब के कर्मचारी संगठन ‘सांझा मुलाजिम मंच’ के कनवीनर सुखचैन सिंह खैरा का कहना है कि यह फैसला गलत है। कर्मचारियों व पेंशनरों के महंगाई भत्ते पर जून 2021 तक रोक लगाने का फैसला उचित नहीं कहा जा सकता। 

हरियाणा रोडवेज संयुक्त कर्मचारी संघ के राज्य प्रधान दलबीर किरमारा ने कहा, सरकार को अपने अनावश्यक खर्चों में कटौती करनी चाहिए। सरकार पहले तो विधायकों का मकान भत्ता 50 हजार रुपए से बढ़ा कर एक लाख रुपए करने का फैसला कर लेती है और उसके बाद दिखावे के लिए कोरोना के नाम पर 30 फीसदी की कटौती का ढोंग करती है। 

सर्व कर्मचारी संघ के नेता नरेश गौतम, सुरेंद्र मान, छबील दास मौलिया व सुभाष गुज्जर आदि कर्मचारी नेताओं ने कहा कि सरकार को यह फैसला तुरंत वापस लेना चाहिए। विभिन्न राज्यों में कर्मचारियों की श्रेणी के अनुसार वेतनमान में 10, 20 और 30 फीसदी कटौती का प्रस्ताव लाया जा रहा है। यूपी में डीए रोका गया है, जबकि केरल में मुख्यमंत्री पी विजयन ने अगले पांच महीनों में हर माह छह दिन की वेतन कटौती की घोषणा कर दी है।

मुश्किल वक्त में केंद्रीय कर्मचारियों और सैनिकों पर डीए कटौती का फैसला गैरजरूरी

पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह तो पहले ही सरकार के इस फैसले की आलोचना कर चुके हैं। उन्होंने मोदी सरकार से फिजूलखर्ची रोकने का आग्रह किया है। कोरोना जैसी महामारी के मुश्किल वक्त में केंद्रीय कर्मचारियों और सैनिकों पर डीए कटौती का फैसला थोपना आवश्यक नहीं है। सरकार को वेतन भत्ते में कटौती से परे बुलेट ट्रेन और अन्य फिजूलखर्ची वाली योजनाओं पर रोक लगानी चाहिए। 

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बुलेट ट्रेन और सेंट्रल विस्टा सौंदर्यीकरण परियोजना में फालतू के खर्चे किए जा रहे हैं। इन्हें रोकने के बजाए सरकार आम वर्ग से पैसा वसूल रही है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी मोदी सरकार के इस फैसले की आलोचना की है। बता दें कि कांग्रेस ने लॉकडाउन और कोरोना महामारी को देखते हुए एक सलाहकार समिति का गठन किया है। इस कमेटी में 11 सदस्य हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसकी अध्यक्षता कर रहे हैं।




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