Now Governor Will Decide On Uddhab Thackeray Cm Post , High Court Refuses To Interfere – महाराष्ट्र: ठाकरे के सीएम पद पर गेंद अब राज्यपाल के पाले में, हाईकोर्ट का दखल से इनकार




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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सीएम पद पर बरकरार रहने के मुद्दे पर गेंद अब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पाले में पहुंच गई है। एक भाजपा कार्यकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर राज्य कैबिनेट की तरफ से ठाकरे को विधान परिषद में राज्यपाल कोटे से नामित सदस्य बनाए जाने की सिफारिश का विरोध किया था। इस पर हाईकोर्ट ने याचिका स्थगित करते हुए कहा कि राज्यपाल को ही राज्य कैबिनेट की सिफारिश की वैधता पर निर्णय लेना चाहिए। अब राज्यपाल ही उद्धव ठाकरे को विधान परिषद में अपने कोटे से नामित सदस्य के तौर पर प्रवेश देने या नहीं देने का निर्णय करेंगे।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर पिछले साल 28 नवंबर को शपथ ग्रहण करने वाले उद्धव ठाकरे इस समय महाराष्ट्र विधानसभा में किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। सांविधानिक नियमों के तहत उन्हें 28 मई से पहले विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता ग्रहण करनी है । लेकिन देश में कोरोना वायरस महामारी के चलते सभी तरह के चुनाव स्थगित किए जा चुके हैं। इसी कारण राज्य कैबिनेट ने 9 अप्रैल को उद्धव को राज्यपाल कोटे से विधान परिषद सदस्य चुने जाने की सिफारिश की थी।

अनुच्छेद 171 देता है राज्यपाल को शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत राज्यपाल को राज्य विधान परिषद में लोगों को नामित सदस्य बनाने की शक्ति दी गई है। इसके तहत राज्यपाल ऐसे लोगों को नामित कर सकते हैं, जिन्होंने साहित्य, कला, सहकारी आंदोलन या समाज सेवा में विशेष नाम कमाया हो। फिलहाल राज्य विधान परिषद में  राज्यपाल कोटे की दो सीट खाली हैं। ये दोनों सीट एनसीपी और भाजपा के एक-एक सदस्य के विधानसभा चुनावों में जीत जाने के कारण खाली हुई थीं।

शरद पवार की अगुआई वाली एनसीपी इस साल की शुरुआत में विधान परिषद में खाली पड़ी राज्यपाल कोटे की दोनों सीटों पर दावा ठोक चुकी है। ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना और कांग्रेस के साथ एनसीपी भी शामिल है। एनसीपी ने राज्यपाल को दोनों सीटों के लिए दो नाम भी भेजे थे। हालांकि राज्यपाल कोश्यारी ने यह कहते हुए एनसीपी की मांग खारिज कर दी थी कि दोनों सीटों का कार्यकाल जून में खत्म हो रहा है, ऐसे में तत्काल किसी नियुक्ति की आवश्यकता नहीं है।

उत्तर प्रदेश में आ चुका है ऐसा मामला सामने

उत्तर प्रदेश में भी महाराष्ट्र जैसी ही परिस्थिति सामने आ चुकी है, जब चंद्रभान गुप्ता के 1961 में मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्यपाल ने उन्हें अपने कोटे से विधान परिषद में नामित किया था। राज्यपाल के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था और गुप्ता मुख्यमंत्री पद पर बरकरार रहे थे। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि गुप्ता सालों से सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहे हैं और उनके पास सामाजिक सेवा का भी पर्याप्त अनुभव है। इसके चलते वह विधान परिषद का सदस्य नामित करने के लिए पूरी तरह योग्य हैं।

 क्या हैं उद्धव के सामने विकल्प

  • महाराष्ट्र सरकार चुनाव आयोग से 27 मई से पहले 9 विधान परिषद सीटों पर द्विवार्षिक चुनाव कराने का आग्रह कर सकती है

  • राज्य सरकार 9 अप्रैल की कैबिनट सिफारिश पर जल्द से जल्द निर्णय लिए जाने का आग्रह राज्यपाल से कर सकती है

  • राज्य सरकार इस सिफारिश पर राज्यपाल को स्पष्ट निर्देश जारी कराने के लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जा सकती है

  • राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के उन पूर्ववर्ती निर्णयों का हवाला दे सकती है, जिनमें कैबिनेट सिफारिशों को राज्यपाल के लिए अनिवार्य माना गया है

(विधानसभा सचिवालय के पूर्व प्रमुख सचिव व संविधान विशेषज्ञ अनंत कलसे के मुताबिक)

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सीएम पद पर बरकरार रहने के मुद्दे पर गेंद अब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पाले में पहुंच गई है। एक भाजपा कार्यकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर राज्य कैबिनेट की तरफ से ठाकरे को विधान परिषद में राज्यपाल कोटे से नामित सदस्य बनाए जाने की सिफारिश का विरोध किया था। इस पर हाईकोर्ट ने याचिका स्थगित करते हुए कहा कि राज्यपाल को ही राज्य कैबिनेट की सिफारिश की वैधता पर निर्णय लेना चाहिए। अब राज्यपाल ही उद्धव ठाकरे को विधान परिषद में अपने कोटे से नामित सदस्य के तौर पर प्रवेश देने या नहीं देने का निर्णय करेंगे।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर पिछले साल 28 नवंबर को शपथ ग्रहण करने वाले उद्धव ठाकरे इस समय महाराष्ट्र विधानसभा में किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। सांविधानिक नियमों के तहत उन्हें 28 मई से पहले विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता ग्रहण करनी है । लेकिन देश में कोरोना वायरस महामारी के चलते सभी तरह के चुनाव स्थगित किए जा चुके हैं। इसी कारण राज्य कैबिनेट ने 9 अप्रैल को उद्धव को राज्यपाल कोटे से विधान परिषद सदस्य चुने जाने की सिफारिश की थी।

अनुच्छेद 171 देता है राज्यपाल को शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत राज्यपाल को राज्य विधान परिषद में लोगों को नामित सदस्य बनाने की शक्ति दी गई है। इसके तहत राज्यपाल ऐसे लोगों को नामित कर सकते हैं, जिन्होंने साहित्य, कला, सहकारी आंदोलन या समाज सेवा में विशेष नाम कमाया हो। फिलहाल राज्य विधान परिषद में  राज्यपाल कोटे की दो सीट खाली हैं। ये दोनों सीट एनसीपी और भाजपा के एक-एक सदस्य के विधानसभा चुनावों में जीत जाने के कारण खाली हुई थीं।


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