कोरोना वायरस की जांच करता स्वास्थ्यकर्मी
– फोटो : PTI
देश में लॉकडाउन 4.0 लागू हो चुका है। कोरोना संक्रमण के हिसाब से पहले तीन जोन बनाए गए थे, अब इलाकों को पांच जोन में बांटा गया है। इनमें सबसे अधिक खतरनाक कंटेनमेंट जोन बताया गया है। यह एक ऐसा जोन है, जहां हर घर में मेडिकल टीम पहुंचती है। बाकायदा, घर के सभी सदस्यों की जांच कर उनकी केस हिस्ट्री तैयार की जाती है। आवाजाही पर सख्त पाबंदी रहती है। कंटेनमेंट जोन में कम से कम दो किलोमीटर तक के क्षेत्र को बफर जोन घोषित किया गया जाता है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी गाइडलाइन के मुताबिक, कोरोना वायरस का संक्रमण अधिक तेजी से न फैल सके, इसके लिए दो नए जोन बनाए गए हैं। पहले वाले तीन जोन, अर्थात रेड, ग्रीन और ऑरेंज जोन का निर्धारण राज्य स्तर पर होगा, जबकि बाकी के दोनों जोन का फैसला जिला प्रशासन पर छोड़ा गया है।
हालांकि जिला प्रशासन भी इसमें खुद के स्तर पर कोई ज्यादा बड़ा फैसला नहीं लेगा। उसे उन्हीं गाइडलाइन को ध्यान में रखकर जोन तय करने होंगे, जो स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी की गई हैं। बफर जोन और कंटेनमेंट जोन में जो अनिवार्य सेवाएं होंगी, केवल उन्हीं के संचालन की अनुमति दी जाएगी। जिस तरह ग्रीन या ऑरेंज जोन में लोगों को इधर उधर आने की इजाजत होती है, वैसा इसमें नहीं होगा।
लोगों की आवाजाही को लेकर सख्त आदेश जारी किए जाते हैं। इसकी वजह कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और हर घर में जाकर लोगों की स्वास्थ्य जांच होना है। किसी शहर का जो भी क्षेत्र कंटेनमेंट जोन घोषित होता है, उसके दो किलोमीटर के इलाके को बफर जोन घोषित किया जाता है।
कंटेनमेंट जोन, रेड या ऑरेंज इलाके में भी बनाया जा सकता है
ऐसा नहीं है कि कंटेनमेंट जोन एक अलग ही इलाके में बनाया जाएगा। यह रेड और ऑरेंज जोन का भी हिस्सा हो सकता है। यानी अगर कोई ऐसा इलाका जो पहले से ही रेड या ऑरेंज जोन में है तो वहां कंटेनमेंट जोन बनाया जा सकता है। यदि कोई वार्ड या मोहल्ला ऐसा है, जहां पर कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं तो वहां के कुछ खास इलाकों को कंटेनमेंट जोन में शामिल कर दिया जाता है।
ऐसे क्षेत्रों में केवल जरूरी सामान बेचने की इजाजत मिलती है। इसमें कुछ भाग ऐसा भी हो सकता है कि जिला प्रशासन वहां किसी भी तरह की कोई छूट ही न दे। जिला स्वास्थ्य अधिकारी इस बाबत रिपोर्ट देता है कि वहां पूर्णत: लॉकडाउन रहे या जरूरी साजो-सामान लेने की इजाजत दी जाए।
ये फैसला कोरोना संक्रमण के केसों की बढ़ती हुई संख्या को ध्यान में रखकर लिया जाता है। कई बार यह भी हो सकता है कि प्रशासन उस इलाके में होम डिलिवरी की सुविधा प्रदान कर दे। लोगों को घर से बाहर निकलने की मंजूरी ही न मिले।
400 मीटर के दायरे में कंटेनमेंट जोन बनाया जाता है
कंटेनमेंट जोन बनाने के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग अलग मापदंड अपनाए जाते हैं। जैसे किसी शहर का कोई एक मोहल्ला है और उसमें किसी एक व्यक्ति की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई है तो उस स्थिति में वहां पर 400 मीटर के दायरे वाले इलाके को कंटेनमेंट घोषित किया जाता है। यहां पर भी केसों की संख्या और लोगों की स्क्रीनिंग रिपोर्ट आदि मायने रखती है।
इसके आधार पर कंटेनमेंट जोन का दायरा 400 मीटर से ज्यादा भी किया जा सकता है। ग्रामीण इलाकों में ऐसा नहीं होता। वहां पर कोई विकल्प नहीं है, बशर्ते पूरे गांव को ही कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया जाए। इस हालत में किसी को गांव में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। यहां पर भी प्रशासन अपने हिसाब से जरूरी सेवाएं लोगों तक पहुंचाने की व्यवस्था करता है।
देश में लॉकडाउन 4.0 लागू हो चुका है। कोरोना संक्रमण के हिसाब से पहले तीन जोन बनाए गए थे, अब इलाकों को पांच जोन में बांटा गया है। इनमें सबसे अधिक खतरनाक कंटेनमेंट जोन बताया गया है। यह एक ऐसा जोन है, जहां हर घर में मेडिकल टीम पहुंचती है। बाकायदा, घर के सभी सदस्यों की जांच कर उनकी केस हिस्ट्री तैयार की जाती है। आवाजाही पर सख्त पाबंदी रहती है। कंटेनमेंट जोन में कम से कम दो किलोमीटर तक के क्षेत्र को बफर जोन घोषित किया गया जाता है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी गाइडलाइन के मुताबिक, कोरोना वायरस का संक्रमण अधिक तेजी से न फैल सके, इसके लिए दो नए जोन बनाए गए हैं। पहले वाले तीन जोन, अर्थात रेड, ग्रीन और ऑरेंज जोन का निर्धारण राज्य स्तर पर होगा, जबकि बाकी के दोनों जोन का फैसला जिला प्रशासन पर छोड़ा गया है।
हालांकि जिला प्रशासन भी इसमें खुद के स्तर पर कोई ज्यादा बड़ा फैसला नहीं लेगा। उसे उन्हीं गाइडलाइन को ध्यान में रखकर जोन तय करने होंगे, जो स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी की गई हैं। बफर जोन और कंटेनमेंट जोन में जो अनिवार्य सेवाएं होंगी, केवल उन्हीं के संचालन की अनुमति दी जाएगी। जिस तरह ग्रीन या ऑरेंज जोन में लोगों को इधर उधर आने की इजाजत होती है, वैसा इसमें नहीं होगा।
लोगों की आवाजाही को लेकर सख्त आदेश जारी किए जाते हैं। इसकी वजह कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और हर घर में जाकर लोगों की स्वास्थ्य जांच होना है। किसी शहर का जो भी क्षेत्र कंटेनमेंट जोन घोषित होता है, उसके दो किलोमीटर के इलाके को बफर जोन घोषित किया जाता है।
कंटेनमेंट जोन, रेड या ऑरेंज इलाके में भी बनाया जा सकता है
ऐसा नहीं है कि कंटेनमेंट जोन एक अलग ही इलाके में बनाया जाएगा। यह रेड और ऑरेंज जोन का भी हिस्सा हो सकता है। यानी अगर कोई ऐसा इलाका जो पहले से ही रेड या ऑरेंज जोन में है तो वहां कंटेनमेंट जोन बनाया जा सकता है। यदि कोई वार्ड या मोहल्ला ऐसा है, जहां पर कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं तो वहां के कुछ खास इलाकों को कंटेनमेंट जोन में शामिल कर दिया जाता है।
400 मीटर के दायरे में कंटेनमेंट जोन बनाया जाता है
ऐसे क्षेत्रों में केवल जरूरी सामान बेचने की इजाजत मिलती है। इसमें कुछ भाग ऐसा भी हो सकता है कि जिला प्रशासन वहां किसी भी तरह की कोई छूट ही न दे। जिला स्वास्थ्य अधिकारी इस बाबत रिपोर्ट देता है कि वहां पूर्णत: लॉकडाउन रहे या जरूरी साजो-सामान लेने की इजाजत दी जाए।
ये फैसला कोरोना संक्रमण के केसों की बढ़ती हुई संख्या को ध्यान में रखकर लिया जाता है। कई बार यह भी हो सकता है कि प्रशासन उस इलाके में होम डिलिवरी की सुविधा प्रदान कर दे। लोगों को घर से बाहर निकलने की मंजूरी ही न मिले।
400 मीटर के दायरे में कंटेनमेंट जोन बनाया जाता है
कंटेनमेंट जोन बनाने के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग अलग मापदंड अपनाए जाते हैं। जैसे किसी शहर का कोई एक मोहल्ला है और उसमें किसी एक व्यक्ति की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई है तो उस स्थिति में वहां पर 400 मीटर के दायरे वाले इलाके को कंटेनमेंट घोषित किया जाता है। यहां पर भी केसों की संख्या और लोगों की स्क्रीनिंग रिपोर्ट आदि मायने रखती है।
इसके आधार पर कंटेनमेंट जोन का दायरा 400 मीटर से ज्यादा भी किया जा सकता है। ग्रामीण इलाकों में ऐसा नहीं होता। वहां पर कोई विकल्प नहीं है, बशर्ते पूरे गांव को ही कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया जाए। इस हालत में किसी को गांव में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। यहां पर भी प्रशासन अपने हिसाब से जरूरी सेवाएं लोगों तक पहुंचाने की व्यवस्था करता है।
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