Jeweller Turns Vegetable Vendor To Survive Lockdown – लॉकडाउन की मारः जयपुर में सब्जी बेचने को मजबूर हुआ आभूषण कारीगर




न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जयपुर
Updated Sat, 02 May 2020 05:16 PM IST

सांकेतिक तस्वीर
– फोटो : अमर उजाला

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कोरोना वायरस के कारण देश में लगे लॉकडाउन ने लोगों के सामने रोजी-रोटी का भीषड़ सकंट खड़ा कर दिया है। महानगरों में रोजगार बंद होने से बड़ी संख्या में लोग अपने घरों की ओर लगातार लौट रहे हैं, वहीं कुछ लोगों ने इस महामारी के दौर में खुद को जिंदा रखने के लिए अपने रोजगार बदल लिए हैं। जो पहले चाय की दुकान चलाता था, वो अब फल बेचने लगा है। लॉकडाउन के कारण ज्यादातर लोगों ने अपने परिवार को पालने के लिए रोजगार बदल लिए हैं। वो किसी भी हाल में कोई भी काम कर के इस संकट के समय में अपने परिवार का पेट भरने की कोशिश में लगे हैं।

ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जयपुर के हुकमचंद सोनी, जो पिछले 25 साल से आभूषण बनाकर उनकी मरम्मत आदि कर रोजी रोटी चला रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते वह अब अपनी दुकान में सब्जियां बेचने को मजबूर हो गए हैं। रामनगर इलाके में रहने के वाले सोनी का कहना है कि लॉकडाउन के कारण उपजे आजीविका संकट ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया है। 

उनकी दुकान में आभूषणों की जगह अब तरह-तरह की सब्जियों ने ले ली है और वो सोने चांदी की बजाए अब आलू प्याज के मोल भाव व तोल करते हैं। सोनी ने बताया कि मैं चार दिन से अपनी दुकान में सब्जियां बेच रहा हूं। अब रोजी रोटी का यही तरीका सूझा है। मेरे पास ज्यादा पैसा तो है नहीं इसलिए थोड़े से निवेश से फौरी तौर पर यह नया काम शुरू कर दिया है।

 हुकमचंद सोनी यह दुकान अकेले ही चलाते हैं और उनका कहना है कि इससे उनके परिवार का खर्चापानी आसानी से चल रहा है। उन्होंने कहा कि हम पिछले कई दिनों से घर बैठे हैं। कोई कमाई नहीं है और कोई बड़ी बचत नहीं है। हमें पैसा और खाना कौन देगा? मैं अंगूठी जैसे छोटे आभूषण बनाता और बेचता था और टूटे आभूषणों की मरम्मत भी कर रहा था।

हुकमचंद सोनी ने कहा कि लॉकडाउन के कारण वे तथा उनके जैसे अन्य दुकानदार निश्चित रूप से नुकसान झेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि आभूषण निर्माता से सब्जी विक्रेता बनना कोई आसान निर्णय नहीं था, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं था।

हुकमचंद सोनी ने कहा कि घर पर खाली बैठे रहने से अच्छा है कि कुछ किया जाए। दुकान का किराया देना और अपनी मां व गुजर चुके छोटे भाई के परिवार को पालना है। कुछ तो करना ही है। वे कहते हैं कि मेरे लिए तो कर्म ही पूजा है। उन्होंने बताया कि अब वह रोज मंडी से सब्जी लाते हैं और किराए की इस दुकान पर बैठकर सब्जियां बेचते हैं।

कोरोना वायरस के कारण देश में लगे लॉकडाउन ने लोगों के सामने रोजी-रोटी का भीषड़ सकंट खड़ा कर दिया है। महानगरों में रोजगार बंद होने से बड़ी संख्या में लोग अपने घरों की ओर लगातार लौट रहे हैं, वहीं कुछ लोगों ने इस महामारी के दौर में खुद को जिंदा रखने के लिए अपने रोजगार बदल लिए हैं। जो पहले चाय की दुकान चलाता था, वो अब फल बेचने लगा है। लॉकडाउन के कारण ज्यादातर लोगों ने अपने परिवार को पालने के लिए रोजगार बदल लिए हैं। वो किसी भी हाल में कोई भी काम कर के इस संकट के समय में अपने परिवार का पेट भरने की कोशिश में लगे हैं।

ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जयपुर के हुकमचंद सोनी, जो पिछले 25 साल से आभूषण बनाकर उनकी मरम्मत आदि कर रोजी रोटी चला रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते वह अब अपनी दुकान में सब्जियां बेचने को मजबूर हो गए हैं। रामनगर इलाके में रहने के वाले सोनी का कहना है कि लॉकडाउन के कारण उपजे आजीविका संकट ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया है। 

उनकी दुकान में आभूषणों की जगह अब तरह-तरह की सब्जियों ने ले ली है और वो सोने चांदी की बजाए अब आलू प्याज के मोल भाव व तोल करते हैं। सोनी ने बताया कि मैं चार दिन से अपनी दुकान में सब्जियां बेच रहा हूं। अब रोजी रोटी का यही तरीका सूझा है। मेरे पास ज्यादा पैसा तो है नहीं इसलिए थोड़े से निवेश से फौरी तौर पर यह नया काम शुरू कर दिया है।

 हुकमचंद सोनी यह दुकान अकेले ही चलाते हैं और उनका कहना है कि इससे उनके परिवार का खर्चापानी आसानी से चल रहा है। उन्होंने कहा कि हम पिछले कई दिनों से घर बैठे हैं। कोई कमाई नहीं है और कोई बड़ी बचत नहीं है। हमें पैसा और खाना कौन देगा? मैं अंगूठी जैसे छोटे आभूषण बनाता और बेचता था और टूटे आभूषणों की मरम्मत भी कर रहा था।

हुकमचंद सोनी ने कहा कि लॉकडाउन के कारण वे तथा उनके जैसे अन्य दुकानदार निश्चित रूप से नुकसान झेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि आभूषण निर्माता से सब्जी विक्रेता बनना कोई आसान निर्णय नहीं था, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं था।

हुकमचंद सोनी ने कहा कि घर पर खाली बैठे रहने से अच्छा है कि कुछ किया जाए। दुकान का किराया देना और अपनी मां व गुजर चुके छोटे भाई के परिवार को पालना है। कुछ तो करना ही है। वे कहते हैं कि मेरे लिए तो कर्म ही पूजा है। उन्होंने बताया कि अब वह रोज मंडी से सब्जी लाते हैं और किराए की इस दुकान पर बैठकर सब्जियां बेचते हैं।




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