पंकज शुक्ल, मुंबई, Updated Sat, 30 May 2020 05:43 AM IST
ये उस वक्त के नए भारत का हीरो था। दबंगों के थाने की कुर्सी पर बैठने की कोशिश भी इसे नागवार गुजरती। दोस्ती इसका मजहब था। लोगों का हंसाना औऱ उनकी मदद करना इसका पेशा था और लोगों को लगा कि आने वाला सिनेमा बस यही है। तभी तो आठवें दशक की टॉप 10 कमाई करने वाली फिल्मों में चार फिल्में इसी हीरो यानी अमिताभ बच्चन की हैं, शोले, मुकद्दर का सिकंदर, रोटी कपड़ा और मकान, और अमर अकबर एंथनी। बाकी बची फिल्मों में मनोज कुमार की तीन फिल्में, रोटी कपड़ा और मकान, संन्यासी और दस नंबरी। धर्मेंद्र की एक फिल्म धर्मवीर, देव आनंद की एक फिल्म जॉनी मेरा नाम, ऋषि कपूर की एक फिल्म बॉबी और एक फिल्म ऐसी जिसका नाम लिखने से पहले किसी सितारे का नाम ही नहीं आता, जय संतोषी मां। फिल्म जय संतोषी मां ही हमारी आज की बाइस्कोप फिल्म है जो इस पूरे आठवें दशक में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में आठवें नंबर पर रही और साल 1975 में कमाई करने के मामले में रही, शोले के बाद दूसरे नंबर पर।
साल 1975 को वैसे तो हिंदी सिनेमा में अमिताभ बच्चन के साल के ही तौर पर याद किया जाता है क्योंकि उस साल उनकी दो फिल्में शोले और दीवार सबसे ज्यादा कमाई करने वाली टॉप 5 फिल्मों में शामिल रहीं। लोगों को लग रहा था कि जंजीर से शुरू हुआ ये सिलसिला लंबा खिंचेगा लेकिन तभी रिलीज हुई फिल्म जय संतोषी मां ने फिल्म पंडितों के सारे समीकरण ही बदल दिए। अभी कोरोना संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए देश में हुए लॉकडाउन के दौरान लोगों ने रामायण के किस्से खूब चाव लेकर सुने, देखे और पढ़े। लोगों ने खूब पढ़ा कि कैसे दीपिका चिखलिया और अरुण गोविल को देखकर लोग रास्तों में ही दंडवत करते हुए लेट जाते थे, कैसे लोग उनका भगवान समझकर पूजते थे। लेकिन, आस्थाओं वाले देश भारत में ये किस्सा इससे और 12 साल पहले हो चुका था।
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