Ground Report Dairy Crisis Ten Crore Farmers Heart Broken – ग्राउंड रिपोर्टः डेयरी पर संकट, दस करोड़ किसानों की टूटी आस




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– फोटो : अमर उजाला

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लॉकडाउन से भारत के 10 करोड़ किसानों को हर रोज अरबों का नुकसान हो रहा है। मिठाई की दुकानें, रेस्त्रां और पनीर की सप्लाई बंद होने से पशुपालक करीब 60 अरब का नुकसान उठा चुके हैं। जहां खोया-पनीर से जुड़े कारोबार पर ताला पड़ चुका है, तो वहीं दूध खरीदने वाली कोऑपरेटिव कंपनियों ने सप्लाई कम होने से दूध खरीदने में आनाकानी करने लगी हैं। दुग्ध उत्पादन में शीर्ष राज्यों, यूपी, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के किसानों का मौजूदा हालात बता रहे हैं मनीष मिश्र…

देश में लॉकडाउन से बंद हुए बाजार, होटल और रेस्त्रां से पड़ी मंदी की मार देश के10 करोड़ दुग्ध उत्पादकों को झेलनी पड़ रही है। इन्हें हर रोज लाखों रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है। इनमें भी इस लॉकडाउन की मार छोटे पशुपालकों पर सबसे अधिक पड़ रही है।

   रायबरेली जिले के सहजौरा गांव में रहने वाले शेखर त्रिपाठी के जीवन का सबसे कठिन दौर है, घर पर 150 लीटर दूध पैदा होता है, जिसे बेचने के लिए उन्हें नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। यही नहीं, प्रति लीटर पर उन्हें आठ से दस रुपये का नुकसान झेलना पड़ रहा है वो अलग। शेखर कहते हैं कि सरकार की छूट के बावजूद एक दिन दूध ढोने वाले लोडर का पुलिस ने चालान कर दिया, इसी दिक्कतों से पशु आहार नहीं मिल पा रहा है, कंपनियों के पास कच्चा माल नहीं है, जहां है वो सप्लाई नहीं कर पा रही हैं।

खली, चोकर सब महंगा हो चुका है, जानवरों को खिलाने-पिलाने पर तो उतना ही खर्च होगा, दूध बिके या न बिके। जालौन में खोया मंडी में काम करने वाले विजय अग्रवाल बताते हैं, यहा मंडी में हर रोज डेढ़ से दो क्विंटल खोया आता था, जिसे छोटे किसान लेकर आते थे, और उसे बेचकर अपने रोज के खर्चे पूरे करते थे। इस समय खोया का काम बंद होने से उनके सारे काम भी बंद हो गए हैं एक किलो खोया बनाने में करीब 4.5 किलो दूध की जरूरत पड़ती है, यह दूध 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 180 रुपये का होता है, लेकिन किसानों को गांव या आसपास इस समय इसकी कीमत 70 से 80 रुपये प्रति किलो ही मिल पा रही है।

मतलब प्रतिकिलो खोये पर 120 रूपये का नुकसान। लॉकडाउन में प्रदेश में दूध की सप्लाई पर प्रमुख सचिव दुग्ध विकास भुवनेश कुमार कहते हैं, हमने लाकडाउन के दो दिन बाद 1.5 लाख लीटर दूध बेचा, जबकि आज 37 लाख लीटर बेच रहे हैं। लाकडाउन की वजह से जो बाहर मार्केट में बिकने वाले दूध की खपत कम होने से उसे खपाने के लिए मिल्क पाउडर, घी बनाने वाले प्लांट चलाने का काम शुरू कर दिया गया। वहीं, पशुपालकों को कम दाम मिलने और पशुआहार के संकट पर भुवनेश कुमार आगे कहते हैं, किसानों को दूध के दाम उन्हें क्वालिटी के हिसाब से दिए जाते हैं, अगर दूध की क्वालिटी खराब होगी तो उन्हें कम पैसे मिलेंगे। अप्रैल में चारे की कोई दिक्कत नहीं होती है, लॉकडाउन के पहले दिन से ही पशुआहार को इससे मुक्त रखा गया है।
 

राजस्थान के बांसवाड़ा में रहने वाले कुरेश बागीडोरा के पास 40 भैंसें और 28 गाय हैं। हर रोज 400 लीटर दूध का उत्पादन उनके फार्म पर। जो घरों में हमारा दूध सप्लाई होता था, उसमें तो दिक्कत नहीं आई, लेकिन जो पनीर, छाछ और मावा बनाते थे वह बंद करना पड़ा। राजस्थान में दूध के कारोबार पर बहुत असर पड़ा है।

जिस कोऑपरेटिव कंपनी को दूध की सप्लाई कर रहे थे उसने भी एक टाइम का दूध लेना शुरू कर दिया है, कभी-कभी दूध का रेट 16 रुपये प्रति लीटर तक लगाते हैं, जो कि बोतलबंद एक लीटर पानी से भी सस्ता है। कुरेश आगे बताते हैं, इससे सबसे अधिक छोटे किसानों को ही नुकसान हो रहा है, उनके पास न तो फ्रिज होता है, न ही चिलिंग मशीन, उन्हें दूध औने-पौने दाम पर बेचना मजबूरी है।

राजस्थान में रहने वाले कुरेश बागीडोरा बताते हैं, गर्मियों का मौसम आते ही पशुपालकों के सामने हरे चारे की दिक्कत आने लगती है, जिसके लिए उन्हें जानवरों के लिए अलग-अलग माध्यमों से चारे का जुगाड़ करना पड़ता है। लॉकडाउन में ट्रांसपोर्ट सेवाएं ठप होने से पशुआहार की समस्या बढ़ गई है। वह बताते हैं, मेरा 20 एकड़ का फार्म है, जिसमें मक्के की खेती की थी, साइलेज बनाना था, लेकिन मजदूर न मिलने से साइलेज का काम नहीं कर पाए। हर सीजन में हम 250 टन हरा चारा बना लेते थे, जो पूरे साल चलता था, लेकिन इस बार नहीं बना पाए। पशुओं को सूखा चारा खिलाना पड़ रहा है।

महाराष्ट्र में सरकार ने किसानों से सरप्लस दूध का दस लाख लीटर खरीद कर उसका मिल्क पाउडर बनाना शुरू कर दिया है। किसानों को इसके लिए प्रति लीटर 25 रुपये मिल रहे हैं। स्वाभिमानी किसान संगठन से जुड़े राज्य के करोड़ों किसानों का नेतृत्व करने वाले राजू शेट्टी बताते हैं, अगर लॉकडाउन नहीं होता तो इस समय दूध की कीमत पांच रूपये प्रति लीटर बढ़ जाती, लेकिन बढ़ना तो दूर इस समय कम हो गई है।

सरकार जो 25 रुपये प्रतिलीटर दूध खरीद रही है, उस पर किसानों को पांच रूपये प्रति लीटर घाटा ही आ रहा है, क्योंकि दूध की लागत प्रतिलीटर 30 रूपये बैठती है। वहीं, कानपुर में डेयरी चलाने वाले नवनीत महाराष्ट्र सरकार की पहल पर कहते हैं, दूसरे राज्यों की सरकारों को भी ऐसा करना चाहिए। इससे किसानों की कुछ तो राहत मिलेगी। नवनीत के पास 270 जानवर हैं, हर रोज 700 लीटर दूध पैदा होता है, जितना दुग्ध कंपनियों को बेच पाते हैं बेच लेते हैं, बाकी का घी बनाकर रख रहे हैं। उन्हें हर रोज 2000-2500 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

 

गुजरात के उमरपाड़ा के कोलवन में रहने वाले बहादुर भाई के घर पर 240 लीटर दूध पैदा होता है, जिसे वह अमूल कोऑपरेटिव डेयरी को बेचते हैं। बहादुर भाई बताते हैं, पहले दूध महंगा जा रहा था, लेकिन आजकल दूध का भाव 32 से 40 रुपये प्रति लीटर ही मिल रहा है।

गुजरात में दुग्ध कोऑपरेटिव मजबूत होने से दूध बेचने में दिक्कत नहीं आ रही है, पर मुनाफा कम हो गया है। देश की सबसे बड़ी क ऑपरेटिव डेयरी कंपनी अमूल के प्रबंध निदेशक-मार्केटिंग आरएस सोढ़ी ने बताया, देश में हर रोज करीब 50 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है, इसमें से करीब 20 करोड़ लीटर किसान अपने पास रख लेता है, जबकि 10 करोड़ लीटर कोऑपरेटिव सोसाइटीज को बेच देता है, और करीब 20 करोड़ लीटर खुले बाजार में मिठाई की दुकानों या होटलों में सप्लाई कर दिया जाता है।  

जो 20 करोड़ लीटर दूध छोटे किसानों द्वारा दूध के व्यापारियों के माध्यम से खुले बाजार को बेचा जाता था, उस पर उन्हें सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। अगर इस खुले बाजार में बिकने वाले 20 करोड़ लीटर दूध पर प्रति लीटर 10 रुपये का भी नुकसान रखें तो एक महीने में पशुपालकों को 60 अरब रुपये का नुकसान हो चुका है।
 

हरियाणा के करनाल में रहने वाले संजीव के सामने इस समय दोहरा संकट है। इस मंदी में भी उन्हें किसानों को पूरे पैसे देने पड़ रहे हैं, क्यूंकि अगर अभी दूध लेना बंद किया तो किसान जो बंध कर दूध देते हैं वो दूर हो जाएंगे। हरियाणा में मिस्टी ब्रांड से दुग्ध उत्पाद बेचने वाले संजीव बताते हैं, हमारे साथ 230 किसान जुड़े हुए हैं, इनसे दूध खरीद कर आठ से दस हजार लीटर दूध को खरीदकर बेचते थे, लेकिन आज खपत तीन हजार लीटर की रह गई है। किसानों को पूरे पैसे देने पड रहे हैं, अगर अभी उनका दूध रोक दिया तो आगे वो किसी और के साथ जुड़ जाएंगे। संजीव पहले हर महीने 1. 75 करोड़ रुपये का कारोबार करते थे, वहीं यह अब 60 से 70 लाख रुपये पर सिमट गया है।    

सबसे अधिक दुग्ध का उत्पादन करने वाले शीर्ष दस राज्य

           राज्य                                                                 दुग्ध उत्पादन (मिलियन मीट्रिक टन में)           

यूपी 29.05
राजस्थान 22.43
एमपी 14.71
आंध्र प्रदेश 13.73
गुजरात 13.57
पंजाब 11.86
महाराष्ट्र 11.1
हरियाणा 9.81
बिहार 9.24
तमिलनाडु 7.74

(स्रोत कृषि मंत्रालय भारत सरकार की रिपोर्ट वर्ष 2018)

लॉकडाउन से भारत के 10 करोड़ किसानों को हर रोज अरबों का नुकसान हो रहा है। मिठाई की दुकानें, रेस्त्रां और पनीर की सप्लाई बंद होने से पशुपालक करीब 60 अरब का नुकसान उठा चुके हैं। जहां खोया-पनीर से जुड़े कारोबार पर ताला पड़ चुका है, तो वहीं दूध खरीदने वाली कोऑपरेटिव कंपनियों ने सप्लाई कम होने से दूध खरीदने में आनाकानी करने लगी हैं। दुग्ध उत्पादन में शीर्ष राज्यों, यूपी, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के किसानों का मौजूदा हालात बता रहे हैं मनीष मिश्र…


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