अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंप भी गजब की मेधा के धनी हैं। दो देशों के बीच में रिश्तों की थोड़ी सी नरम-गरम देखते ही बिना परवाह किए मध्यस्थता के लिए कूद पड़ते हैं। राजनयिक गलियारे में अमेरिका के इस तरह के अनोखे राष्ट्रपति की कूटनीति का जिक्र करते ही गजब की कूटनीतिक हंसी दिखाई पड़ती है।
ताजा मामला भारत-चीन के बीच में सीमा पर तनातनी का है। भारत के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने भी राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, लेकिन दोनों देशों के बीच में तनाव का स्तर भी घट गया है। स्वर्ण सिंह कहते हैं कि यह अमेरिका के राष्ट्रपति की राजनीतिक शैली है।
भारत इस प्रकरण में काफी तटस्थ रहा। राष्ट्रपति ट्रंप के मध्यस्थता का प्रस्ताव आने के बाद नई दिल्ली की तरफ से कहा गया कि राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी में 04 अप्रैल 2020 के बाद 27 मई 2020 तक कोई वार्ता नहीं हुई है। 04 अप्रैल को दोनों शिखर नेताओं के बीच कोविड-19 संक्रमण और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के भारत द्वारा निर्यात को लेकर चर्चा हुई थी। लेकिन 04 अप्रैल के बाद से कई बार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम ले चुके हैं।
प्रधानमंत्री की तारीफ कर चुके हैं। बृहस्पतिवार को भी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की, लेकिन चीन के साथ सीमा विवाद पर अच्छे मूड में नहीं हैं प्रधानमंत्री मोदी। ट्रंप ने पत्रकार वार्ता के दौरान यह भी कहा कि वह प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करते हैं। वह सज्जन आदमी हैं। संभव है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच में यह वार्ता भारतीय समयानुसार बृहस्पतिवार (28 मई 2020) को हुई हो।
राष्ट्रपति ट्रंप की इसे कूटनीति भी मानी जा रही है। ट्रंप ने इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच में रिश्ते तल्ख होने के दौरान इस तरह का प्रस्ताव दिया था। ऑपरेशन बालाकोट के बाद राष्ट्रपति ट्रंप मध्यस्थता का प्रस्ताव लेकर आए थे और भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। अमेरिका से भी अपना विरोध जताया था। चीन के साथ सीमा विवाद की तनाव पूर्ण स्थिति में भी राष्ट्रपति ट्रंप मध्यस्थता का प्रस्ताव लेकर आए।
भारत इस प्रस्ताव से कूटनीतिक तरीके से पीछे हटा तो चीन ने दोनों देशों के बीच में मैकेनिज्म का होने हवाला देकर दूरी बना ली। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि चीन और भारत आपसी विवादों को बातचीत और विमर्श के जरिए सुलझा लेने में सक्षम है।
माना जा रहा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के इस तरह से सामने आने के बाद चीन ने रक्षात्मक रुख अपना लिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव भी कह चुके हैं कि भारत सीमा विवाद को लेकर सीधे चीन के संपर्क में है।
इस बीच आज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिका के अपने समकक्ष मार्क टी एस्पर से बात की। टेलीफोन पर हुई इस बातचीत का अधिकारिक विषय कोविड-19 संक्रमण पर चर्चा को बताया जा रहा है, लेकिन समझा जा रहा है कि इसके इतर भी चर्चा होने के आसार हैं। दोनों नेताओं में रक्षा क्षेत्र में सामरिक सहयोग, रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई है।
इस दौरान रक्षा मंत्री सिंह ने रक्षा मंत्री मार्क टी एस्पर को भारत आने का न्यौता दिया और उन्होंने इसे स्वीकार कर आने का वादा किया है। इस दौरान रक्षा मंत्री एस्पर ने पूर्वी भारत में तूफान अम्फान से हुए जानमाल की क्षति पर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि भी व्यक्ति की।
राष्ट्रपति ट्रंप ने पूरे कार्यकाल के दौरान अपने वक्तव्यों को बड़ा कूटनीति का हथियार बनाया। विदेश मामलों के विशेषज्ञ स्वर्ण सिंह कहते हैं कि हर नेता की अपनी शैली होती है। यह ट्रंप शैली है। उन्होंने इसी नीति के सहारे बिना कोई बड़ा युद्ध लड़े अमेरिका के तमाम हित साधे हैं। अमेरिका दुनिया में महाशक्ति के रूप में शीर्ष पर बना हुआ है। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और जिओपॉलिटिक शक्ति में अभी उसका दबदबा कायम है।
कूटनीति के जानकार कहते हैं कि जब भी अमेरिका के राष्ट्रपति किसी देश के साथ किसी तरह का संबंध का संकेत देते हैं या संबंध का एहसास कराते हैं तो उससे नया कूटनीतिक संदेश निकलता है। बताते हैं चाहे ईरान का मामला हो या यूरोप का। राष्ट्रपति ट्रंप ने सैन्य शक्ति का न्यूनतम स्तर पर इस्तेमाल करके लक्ष्य साधा है। रूस के साथ रिश्ता हो या कोई भी कठिन समय। राष्ट्रपति ट्रंप ने बिना समय गंवाए वक्तव्य दिया। इसका उन्होंने कूटनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया।
राष्ट्रपति ट्रंप के बयान के बाद से भारत तटस्थ बना है। विदेश मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह कहते हैं कि लेकिन ट्रंप ने चीन को संदेश दे दिया है। ट्रंप ने पतंगबाजी करके चीन को एहसास करा दिया है। स्वर्ण सिंह का कहना है कि इससे वह चीन को लगातार तंग करने का संदेश दे रहे हैं। स्वर्ण सिंह ने कहा कि 1962 में प्रधानमंत्री नेहरू ने राष्ट्रपति नेहरू ने दो टेलीग्राम राष्ट्रपति कनेडी को भेज कर सहायता मांगी। इसके बाद चीन ने अपनी सेना वापस बुला ली थी।
सिंह का कहना है कि जब भी अमेरिका जैसा देश किसी देश के साथ खड़ा होता है तो उसका असर पड़ता है। इसी नीति के तहत ट्रंप बता रहे हैं भारत और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के लिए कितना महत्वपूर्ण है। इस समय अमेरिका और चीन में जमकर तनातनी चल रही है। अमेरिका ने भारत के ताजा विवाद का लाभ उठाकर उसे बताया है कि वह चीन को परेशान करने का कोई बहाना नहीं छेड़ेगा।
सार
- दुनिया के अनोखे डॉक्टर राष्ट्रपति हैं, शिखर नेताओं का मूड भांप लेते हैं
- पहले भारत ने, फिर चीन ने ठुकराया ट्रंप का मध्यस्थता का प्रस्ताव
- दोनों देशों को अपने मैकेनिज्म पर भरोसा, सुलझा लेगें सीमा पर तनाव
विस्तार
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंप भी गजब की मेधा के धनी हैं। दो देशों के बीच में रिश्तों की थोड़ी सी नरम-गरम देखते ही बिना परवाह किए मध्यस्थता के लिए कूद पड़ते हैं। राजनयिक गलियारे में अमेरिका के इस तरह के अनोखे राष्ट्रपति की कूटनीति का जिक्र करते ही गजब की कूटनीतिक हंसी दिखाई पड़ती है।
ताजा मामला भारत-चीन के बीच में सीमा पर तनातनी का है। भारत के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने भी राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, लेकिन दोनों देशों के बीच में तनाव का स्तर भी घट गया है। स्वर्ण सिंह कहते हैं कि यह अमेरिका के राष्ट्रपति की राजनीतिक शैली है।
भारत इस प्रकरण में काफी तटस्थ रहा। राष्ट्रपति ट्रंप के मध्यस्थता का प्रस्ताव आने के बाद नई दिल्ली की तरफ से कहा गया कि राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी में 04 अप्रैल 2020 के बाद 27 मई 2020 तक कोई वार्ता नहीं हुई है। 04 अप्रैल को दोनों शिखर नेताओं के बीच कोविड-19 संक्रमण और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के भारत द्वारा निर्यात को लेकर चर्चा हुई थी। लेकिन 04 अप्रैल के बाद से कई बार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम ले चुके हैं।
प्रधानमंत्री की तारीफ कर चुके हैं। बृहस्पतिवार को भी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की, लेकिन चीन के साथ सीमा विवाद पर अच्छे मूड में नहीं हैं प्रधानमंत्री मोदी। ट्रंप ने पत्रकार वार्ता के दौरान यह भी कहा कि वह प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करते हैं। वह सज्जन आदमी हैं। संभव है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच में यह वार्ता भारतीय समयानुसार बृहस्पतिवार (28 मई 2020) को हुई हो।
मध्यस्थता का प्रस्ताव करते ही सुलटने लगता है मामला
राष्ट्रपति ट्रंप की इसे कूटनीति भी मानी जा रही है। ट्रंप ने इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच में रिश्ते तल्ख होने के दौरान इस तरह का प्रस्ताव दिया था। ऑपरेशन बालाकोट के बाद राष्ट्रपति ट्रंप मध्यस्थता का प्रस्ताव लेकर आए थे और भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। अमेरिका से भी अपना विरोध जताया था। चीन के साथ सीमा विवाद की तनाव पूर्ण स्थिति में भी राष्ट्रपति ट्रंप मध्यस्थता का प्रस्ताव लेकर आए।
भारत इस प्रस्ताव से कूटनीतिक तरीके से पीछे हटा तो चीन ने दोनों देशों के बीच में मैकेनिज्म का होने हवाला देकर दूरी बना ली। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि चीन और भारत आपसी विवादों को बातचीत और विमर्श के जरिए सुलझा लेने में सक्षम है।
माना जा रहा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के इस तरह से सामने आने के बाद चीन ने रक्षात्मक रुख अपना लिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव भी कह चुके हैं कि भारत सीमा विवाद को लेकर सीधे चीन के संपर्क में है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने अमेरिकी समकक्ष से की बात
इस बीच आज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिका के अपने समकक्ष मार्क टी एस्पर से बात की। टेलीफोन पर हुई इस बातचीत का अधिकारिक विषय कोविड-19 संक्रमण पर चर्चा को बताया जा रहा है, लेकिन समझा जा रहा है कि इसके इतर भी चर्चा होने के आसार हैं। दोनों नेताओं में रक्षा क्षेत्र में सामरिक सहयोग, रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई है।
इस दौरान रक्षा मंत्री सिंह ने रक्षा मंत्री मार्क टी एस्पर को भारत आने का न्यौता दिया और उन्होंने इसे स्वीकार कर आने का वादा किया है। इस दौरान रक्षा मंत्री एस्पर ने पूर्वी भारत में तूफान अम्फान से हुए जानमाल की क्षति पर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि भी व्यक्ति की।
ट्रंप का कूटनीति विज्ञान
राष्ट्रपति ट्रंप ने पूरे कार्यकाल के दौरान अपने वक्तव्यों को बड़ा कूटनीति का हथियार बनाया। विदेश मामलों के विशेषज्ञ स्वर्ण सिंह कहते हैं कि हर नेता की अपनी शैली होती है। यह ट्रंप शैली है। उन्होंने इसी नीति के सहारे बिना कोई बड़ा युद्ध लड़े अमेरिका के तमाम हित साधे हैं। अमेरिका दुनिया में महाशक्ति के रूप में शीर्ष पर बना हुआ है। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और जिओपॉलिटिक शक्ति में अभी उसका दबदबा कायम है।
कूटनीति के जानकार कहते हैं कि जब भी अमेरिका के राष्ट्रपति किसी देश के साथ किसी तरह का संबंध का संकेत देते हैं या संबंध का एहसास कराते हैं तो उससे नया कूटनीतिक संदेश निकलता है। बताते हैं चाहे ईरान का मामला हो या यूरोप का। राष्ट्रपति ट्रंप ने सैन्य शक्ति का न्यूनतम स्तर पर इस्तेमाल करके लक्ष्य साधा है। रूस के साथ रिश्ता हो या कोई भी कठिन समय। राष्ट्रपति ट्रंप ने बिना समय गंवाए वक्तव्य दिया। इसका उन्होंने कूटनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया।
चीन को दे दिया खास संदेश
राष्ट्रपति ट्रंप के बयान के बाद से भारत तटस्थ बना है। विदेश मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह कहते हैं कि लेकिन ट्रंप ने चीन को संदेश दे दिया है। ट्रंप ने पतंगबाजी करके चीन को एहसास करा दिया है। स्वर्ण सिंह का कहना है कि इससे वह चीन को लगातार तंग करने का संदेश दे रहे हैं। स्वर्ण सिंह ने कहा कि 1962 में प्रधानमंत्री नेहरू ने राष्ट्रपति नेहरू ने दो टेलीग्राम राष्ट्रपति कनेडी को भेज कर सहायता मांगी। इसके बाद चीन ने अपनी सेना वापस बुला ली थी।
सिंह का कहना है कि जब भी अमेरिका जैसा देश किसी देश के साथ खड़ा होता है तो उसका असर पड़ता है। इसी नीति के तहत ट्रंप बता रहे हैं भारत और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के लिए कितना महत्वपूर्ण है। इस समय अमेरिका और चीन में जमकर तनातनी चल रही है। अमेरिका ने भारत के ताजा विवाद का लाभ उठाकर उसे बताया है कि वह चीन को परेशान करने का कोई बहाना नहीं छेड़ेगा।