Covid 19: Rural India Is Facing More Corona Cases With Return Of Migrants And Labour – मजदूरों के साथ गांवों तक पहुंचा कोरोना वायरस, यूपी-बिहार में 70 फीसदी केस प्रवासियों से जुड़े




प्रवासी मजदूर (फाइल फोटो)
– फोटो : PTI

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आखिरकार वही हुआ जिसका डर था। हवाई रास्ते से स्वदेश आया कोरोना वायरस अब पैदल-पैदल हिंदुस्तान के गांव-गांव तक पहुंचने लगा है। इस संक्रमण के वाहक बन रहे हैं प्रवासी मजदूर। इसे श्रमिकों की मजबूरी कहिए या सरकार की बदइंतजामी, लेकिन पलायन अपने साथ सिर्फ रोजगार नहीं ले जा रहा बल्कि ग्रामीण भारत को भी कोविड-19 के चपेट में ले रहा है। मुंबई-दिल्ली जैसे महानगरों में खौफ का दूसरा नाम बनने के बाद अब देश के कई राज्यों के छोटे-छोटे जिलों और गांवों से नए मामले सामने आने लगे हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर प्रवासियों की घर वापसी हुई थी, जिसके बाद अब ग्रामीण क्षेत्रों में 30 से 80 फीसदी तक मरीजों के आंकड़ों में बीच उछाल दर्ज की गई है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रवासियों की वापसी के साथ राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा मामले हो गए हैं। अब राज्य में कोरोना के एक्टिव केस में से 30% मरीज ग्रामीण जिलों से आते हैं। डूंगरपुर, जालोर, जोधपुर, नागौर और पाली जैसे प्रवासी गहन इलाकों में कोविड-19 के मरीजों की संख्या में जबरदस्त उछाल साफ तौर पर देखा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि हालात सिर्फ राजस्थान में खराब हो रहे हैं, देश के अन्य राज्यों की भी कमोबेश यह स्थिति है।

यही हाल ओडिशा का भी है। इस राज्य के लोग भी रोजी-रोटी की तलाश में देशभर भटकते हैं। अब तक 11 जिलों में साढ़े चार लाख मजदूरों की घर वापसी हुई तो सूबे के 80 फीसदी से ज्यादा मामले ग्रामीण इलाकों में दर्ज किए गए। मामले की गंभीरता इसी बात से पता लग सकती है कि जिस गंजम जिले में 2 मई तक कोरोना का एक भी मरीज नहीं था अब वो इलाका सर्वाधिक 499 मरीजों के साथ जूझ रहा है, जिसमें से तीन लोगों की मौत भी हो गई। शायद, इन स्थितियों के मद्देनजर ही कई जगहों पर प्रवासियों को बहिष्कार झेलना पड़ रहा है। गांव के बाहर रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। संगरोध नियमों का पालन करने के बावजूद वे अपने घरों में नहीं रह पा रहे हैं। केरल ने मई में अपने सीमावर्ती जिलों कासरगोड (112 मामले) और पलक्कड़ (144) में मई में मामलों में वृद्धि देखी।

हिंदुस्तान का ऐसा शायद ही कोई कोना होगा, जहां बिहार के लोग न मिले। 3 मई के बाद लगभग तीन हजार प्रवासियों की घर वापसी हुई है। फिलहाल 70% मामले प्रवासियों के ही हैं। एक अधिकारी ने बताया कि 1 अप्रैल को, बिहार में कोरोना के 24 पॉजिटिव केस थे और उनमें से पांच ग्रामीण क्षेत्रों से थे, ये सभी खाड़ी देशों से वापस आए थे। 1 मई को, संख्या 450 तक पहुंच गई। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से लगभग 20 लाख प्रवासी कामगारों और अन्य फंसे हुए लोगों को बिहार भेजा गया। दो लाख से अधिक लोगों के सड़क मार्ग से लौटने का अनुमान है। बिहार से सटे राज्य उत्तर प्रदेश की भी यही स्थिति है। करीब 30 लाख प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों से वापस आए हैं। एक्टिव मामलों को देखें तो बस्ती और अमेठी जैसे छोटे जिले क्रमशः दूसरे और तीसरे पायदान पर आ गए हैं। 2 जून तक बस्ती में कोरोना के 183 और अमेठी में 142 केस हो चुके। 2 जून तक राज्य के 3324 कोरोना मामलों में से 70 फीसदी प्रवासी मजदूरों से जुड़े थे।

आज से माह भर पहले आंध्रप्रदेश के सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही कोविड का प्रभाव था। 90 फीसदी केस उन्हीं इलाकों से थे, जहां तथाकथित विकास हुआ था, लेकिन अब ग्रामीण इलाकों में भी मामले बढ़ने लगे हैं। सूबे ने पिछले तीन हफ्तों में कोरोना के 1500 से ज्यादा नए मरीज मिले, जिसमें 500 केस ग्रामीण क्षेत्र से हैं। कुछ मामले तो सूदूर आदिवासी इलाकों में भी दर्ज किए गए, जहां स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कहने को भी शायद कुछ नहीं।

पश्चिम बंगाल का क्या हाल है?

रेल और सड़क रास्तों के माध्यम से अब तक लगभग 6 लाख प्रवासी कामगार अपने गृह राज्य लौट आए हैं। 2 जून तक सूबे में 4,049 मामले भी दर्ज किए जा चुके हैं। पश्चिम बंगाल में पहली मौत मार्च में हुई। प्रवासी श्रमिकों की वापसी के साथ, मालदा, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर, हुगली और कूचबिहार में कोरोना रोगियों की संख्या भी बढ़ी। हुगली को छोड़कर, अन्य जिले राजधानी कोलकाता से दूर हैं।

पंजाब के स्वास्थ्य अधिकारियों की माने तो उनके ग्रामीण इलाकों में कोरोना के बढ़ते मामलों के पीछे मजदूर नहीं बल्कि धार्मिक श्रद्धालु जिम्मेदार हैं, जो महाराष्ट्र के नांदेड़ से वापस पहुंचे और टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए। हालांकि तमिलनाडु में कोविड-19 के अधिकांश मामले अभी भी शहरी क्षेत्रों में हैं, क्योंकि 2 जून तक दर्ज किए गए 10, 680 सक्रिय मामलों में से 78% चेन्नई में हैं। कोयम्बेडु राज्य के क्लस्टर के रूप में उभरा जिससे कई गांवों में वायरस फैला। चेन्नई के कोयम्बेडु थोक सब्जी बाजार में काम करने वाले ग्रामीण जब अपने गांव लौटे तो ग्रामीण क्षेत्रों में वृद्धि की रिपोर्ट दर्ज की गई। अब प्रवासी श्रमिकों की वापसी के साथ ग्रामीण तमिलनाडु में उछाल की दूसरी लहर नापी जाएगी।

सार

कोरोना के मामलों में तेजी के साथ ही नए रिकॉर्ड बनने का सिलसिला जारी है। एक जून से रोज आठ हजार से ज्यादा केस सामने आ रहे हैं। अब तक देश में कोरोना से 6,348 लोगों की जान जा चुकी है।

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आखिरकार वही हुआ जिसका डर था। हवाई रास्ते से स्वदेश आया कोरोना वायरस अब पैदल-पैदल हिंदुस्तान के गांव-गांव तक पहुंचने लगा है। इस संक्रमण के वाहक बन रहे हैं प्रवासी मजदूर। इसे श्रमिकों की मजबूरी कहिए या सरकार की बदइंतजामी, लेकिन पलायन अपने साथ सिर्फ रोजगार नहीं ले जा रहा बल्कि ग्रामीण भारत को भी कोविड-19 के चपेट में ले रहा है। मुंबई-दिल्ली जैसे महानगरों में खौफ का दूसरा नाम बनने के बाद अब देश के कई राज्यों के छोटे-छोटे जिलों और गांवों से नए मामले सामने आने लगे हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर प्रवासियों की घर वापसी हुई थी, जिसके बाद अब ग्रामीण क्षेत्रों में 30 से 80 फीसदी तक मरीजों के आंकड़ों में बीच उछाल दर्ज की गई है।


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ओडिशा के 80 फीसदी कोरोना केस ग्रामीण इलाकों से




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