कोरोना एप्स से जासूसी (प्रतिकात्मक)
– फोटो : social media
दुनियाभर की सरकारों में कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए मोबाइल एप बनाने की होड़ मची है। वहीं लॉकडाउन के हालात सामान्य होने पर लोग निजता को लेकर भी चिंतित है। भारत में भी आरोग्य सेतु एप पर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि इससे निजता का हनन होगा। टेक्नोलॉजी आधारित टून से निगरानी पर यूरोप में खासकर बहस छिड़ी है, जो कोरोना महामारी से दुनिया में सबसे ज्यादा प्रभावित है और अब तक वहां करीब 1.4 लाख लोगों की मौत हो चुकी है।
ज्यादातर देशों में इस निगरानी एप के जरिये अधिनायकवादी ताकतों द्वारा बड़े पैमाने पर जासूसी को लेकर कड़वे अनुभव हैं। हाल के वर्षों में यूरोपीय यूनियन ने टेक कंपनियों और निजी जानकारी जुटाने वाली वेबसाइट के लिए कड़े कानून बनाकर लोगों की डिजिटल गोपनीयता के संरक्षण को लेकर पूरी दुनिया को राह दिखाई है। शिक्षाविद् और नागरिक अधिकारों की बात करने वाले कार्यकर्ताओं ने अब नए एप को देखते हुए बड़े स्तर पर लोगों के निजी ब्योरे को सुरक्षित रखने की मांग उठाई है। वहीं लॉकडाउन की पाबंदियों में राहत देने का दबाव झेल रहे यूरोपीय देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जब लॉकडाउन खत्म हो तो संक्रमण न फैले। इसी कश्मकश में यूरोप फंसा हुआ है।
दक्षिण कोरिया में इस्तेमाल हो रहे टूल से परेशान हैं यूरोपीय नागरिक
यूरोपीय देशों के नागरिक अपने निजता के अधिकारों का पूरी तरह से संरक्षण चाहते हैं। वह दक्षिण कोरिया या हांगकांग की तरह अनिवार्य एप के पीछे नहीं जाना चाहते, जो लोगों के घर से निकलने तक की अधिकारियों को सूचना दे देते हैं।
दो तरीकों से इस संक्रमण पर निगरानी संभव
दो तरीकों से इस संक्रमण पर निगरानी रखी जा सकती है। एक तरीका यह है कि जो व्यक्ति संक्रमित है और दूसरों को संक्रमित कर सकता है उसका पता लगाया जाए, ताकि उसे एकांतवास में रखा जा सके। वहीं दूसरा तरीका पारंपरिक है, जिसमें मरीज से आमने-सामने बातचीत की जाए, लेकिन यह तरीका ज्यादा समय लेने वाला और काफी मेहनत वाला भी है। पर टेक्नोलॉजी आधारित यंत्र से यह खतरा है कि इससे लोगों की निगरानी बढ़ जाएगी।
दुनियाभर की सरकारों में कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए मोबाइल एप बनाने की होड़ मची है। वहीं लॉकडाउन के हालात सामान्य होने पर लोग निजता को लेकर भी चिंतित है। भारत में भी आरोग्य सेतु एप पर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि इससे निजता का हनन होगा। टेक्नोलॉजी आधारित टून से निगरानी पर यूरोप में खासकर बहस छिड़ी है, जो कोरोना महामारी से दुनिया में सबसे ज्यादा प्रभावित है और अब तक वहां करीब 1.4 लाख लोगों की मौत हो चुकी है।
ज्यादातर देशों में इस निगरानी एप के जरिये अधिनायकवादी ताकतों द्वारा बड़े पैमाने पर जासूसी को लेकर कड़वे अनुभव हैं। हाल के वर्षों में यूरोपीय यूनियन ने टेक कंपनियों और निजी जानकारी जुटाने वाली वेबसाइट के लिए कड़े कानून बनाकर लोगों की डिजिटल गोपनीयता के संरक्षण को लेकर पूरी दुनिया को राह दिखाई है। शिक्षाविद् और नागरिक अधिकारों की बात करने वाले कार्यकर्ताओं ने अब नए एप को देखते हुए बड़े स्तर पर लोगों के निजी ब्योरे को सुरक्षित रखने की मांग उठाई है। वहीं लॉकडाउन की पाबंदियों में राहत देने का दबाव झेल रहे यूरोपीय देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जब लॉकडाउन खत्म हो तो संक्रमण न फैले। इसी कश्मकश में यूरोप फंसा हुआ है।
दक्षिण कोरिया में इस्तेमाल हो रहे टूल से परेशान हैं यूरोपीय नागरिक
यूरोपीय देशों के नागरिक अपने निजता के अधिकारों का पूरी तरह से संरक्षण चाहते हैं। वह दक्षिण कोरिया या हांगकांग की तरह अनिवार्य एप के पीछे नहीं जाना चाहते, जो लोगों के घर से निकलने तक की अधिकारियों को सूचना दे देते हैं।
दो तरीकों से इस संक्रमण पर निगरानी संभव
दो तरीकों से इस संक्रमण पर निगरानी रखी जा सकती है। एक तरीका यह है कि जो व्यक्ति संक्रमित है और दूसरों को संक्रमित कर सकता है उसका पता लगाया जाए, ताकि उसे एकांतवास में रखा जा सके। वहीं दूसरा तरीका पारंपरिक है, जिसमें मरीज से आमने-सामने बातचीत की जाए, लेकिन यह तरीका ज्यादा समय लेने वाला और काफी मेहनत वाला भी है। पर टेक्नोलॉजी आधारित यंत्र से यह खतरा है कि इससे लोगों की निगरानी बढ़ जाएगी।
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