वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Updated Sun, 19 Apr 2020 01:41 AM IST
कोरोना वायरस के खतरे और लॉकडाउन की बंदिशों के बीच रमजान के महीने में नमाज अदा करने को लेकर पाकिस्तान सरकार और उलेमाओं के बीच 20 बिन्दुओं को लेकर सहमति बनी है। इनमें सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा खयाल रखते हुए मस्जिदों को भीतर सामूहिक रूप से बड़ी कारपेट पर नमाज नहीं पढ़ी जाएगी, बल्कि हर नमाजी अपने लिए निजी तौर पर नमाज पढ़ने की चटाई लाएगा और मस्जिद में आपसी बातचीत और बहस मुबाहिसे नहीं करेगा।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने तमाम मौलानाओं के साथ हुई बैठक में देश पर आए इस वैश्विक महामारी के संकट पर गंभीर चर्चा हुई। राष्ट्रपति अल्वी ने मौलानाओं को बताया कि ऐसे वक्त में सबको साथ देने और एक दूसरे का सहयोग करने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने देश के नागरिकों की तारीफ भी की और कहा कि ऐसे वक्त में सबके सहयोग की ही वजह से पाकिस्तान इस महामारी के संभावित आंकड़ों पर तेजी से काबू कर सका है और सबकी हिफाजत के लिए जरूरी है कि रमजान के पाक महीने को हम सबकी सलामती और मुल्क की बेहतरी के लिहाज से मनाएं।
मौलानाओं ने अपने अपने सुझाव दिए और सरकार के साथ हुई सहमति में 20 बिन्दुओं को अंतिम रूप दिया गया। इसमें सोशल डिस्टेंसिंग के तमाम निर्देशों का पालन करते हुए तमाम मस्जिदों के भीतर की बजाय बाहर के परिसर में नमाज पढ़ने पर रजामंदी बनी। यह तय किया गया कि बुजुर्ग और बीमार लोग नमाज़ पढ़ने मस्जिदों में न आएं और घर पर से ही खुदा की इबादत करें।
तरावीह की तैयारियां सड़कों पर न हों, मस्जिदों के भीतर या घरों में हों। मस्जिदों की फर्श क्लोरीन से साफ की जाए, नमाज की चटाइयां भी सैनिटाइज की जाएंगी। एक दूसरे नमाजी के बीच 6 फीट के फासले को ध्याम में रखते हुए कतारें बनाई जाएंगी।
इस सहमति के तहत इन फैसलों को लागू करने के लिए कमेटियां बनाई जाएंगी जो इस बात को सुनिश्चित करेंगी कि नियमों का पालन ठीक से हो रहा है। एक दूसरे से गले मिलने और हाथ मिलाने पर पूरी तरह पाबंदी होगी और मस्जिदों में आने वालों को मास्क पहनना जरूरी होगा। नमाज के दौरान अपने चेहरे को छूने वाले हिस्से से बचा जाएगा।
सहरी और इफ्तार की तैयारियां इस बार मस्जिदों में नहीं होंगी। एतेकाज को भी घर में करें तो बेहतर होगा। तमाम मस्जिद वहां के करीबी पुलिस स्टेशन के संपर्क में रहेंगे और उनका सहयोग करते रहेंगे। मस्जिद प्रबंधन और स्थानीय पुलिस को निर्देश दिए गए हैं कि वो सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह पालन करवाएं। सरकार के पास ये हक होगा कि वह इन नियमों के पालन में किसी भी तरह की ढील होने पर और सख्ती कर सके।
जाहिर है, कोरोना के खतरे को देखते हुए ये एक बहुत बड़ी चिंता का विषय था कि आखिर कैसे रमजान के महीने में लोगों को एक दूसरे से दूरी बनाकर रखने को राजी किया जाए और कैसे इसकी पवित्रता बरकरार रखते हुए अवाम की हिफाजत की जा सके। अब ये देखने वाली बात होगी कि मौलाना अपने अपने इलाकों में कितनी सख्ती और बेहतर तरीके से इन निर्देशों का पालन करवा सकते हैं।
सार
- रमजान में गले मिलना, हाथ मिलाना मना, सोशल डिस्टेंसिंग के बीच नमाज
- बुजुर्ग और बीमार मस्जिद न आएं, नमाज़ मस्जिदों के बाहर हो
- राष्ट्रपति अल्वी और मौलानाओं के बीच हुआ अवाम की हिफाजत के लिए करार
विस्तार
कोरोना वायरस के खतरे और लॉकडाउन की बंदिशों के बीच रमजान के महीने में नमाज अदा करने को लेकर पाकिस्तान सरकार और उलेमाओं के बीच 20 बिन्दुओं को लेकर सहमति बनी है। इनमें सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा खयाल रखते हुए मस्जिदों को भीतर सामूहिक रूप से बड़ी कारपेट पर नमाज नहीं पढ़ी जाएगी, बल्कि हर नमाजी अपने लिए निजी तौर पर नमाज पढ़ने की चटाई लाएगा और मस्जिद में आपसी बातचीत और बहस मुबाहिसे नहीं करेगा।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने तमाम मौलानाओं के साथ हुई बैठक में देश पर आए इस वैश्विक महामारी के संकट पर गंभीर चर्चा हुई। राष्ट्रपति अल्वी ने मौलानाओं को बताया कि ऐसे वक्त में सबको साथ देने और एक दूसरे का सहयोग करने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने देश के नागरिकों की तारीफ भी की और कहा कि ऐसे वक्त में सबके सहयोग की ही वजह से पाकिस्तान इस महामारी के संभावित आंकड़ों पर तेजी से काबू कर सका है और सबकी हिफाजत के लिए जरूरी है कि रमजान के पाक महीने को हम सबकी सलामती और मुल्क की बेहतरी के लिहाज से मनाएं।
मौलानाओं ने अपने अपने सुझाव दिए और सरकार के साथ हुई सहमति में 20 बिन्दुओं को अंतिम रूप दिया गया। इसमें सोशल डिस्टेंसिंग के तमाम निर्देशों का पालन करते हुए तमाम मस्जिदों के भीतर की बजाय बाहर के परिसर में नमाज पढ़ने पर रजामंदी बनी। यह तय किया गया कि बुजुर्ग और बीमार लोग नमाज़ पढ़ने मस्जिदों में न आएं और घर पर से ही खुदा की इबादत करें।
तरावीह की तैयारियां सड़कों पर न हों, मस्जिदों के भीतर या घरों में हों
तरावीह की तैयारियां सड़कों पर न हों, मस्जिदों के भीतर या घरों में हों। मस्जिदों की फर्श क्लोरीन से साफ की जाए, नमाज की चटाइयां भी सैनिटाइज की जाएंगी। एक दूसरे नमाजी के बीच 6 फीट के फासले को ध्याम में रखते हुए कतारें बनाई जाएंगी।
इस सहमति के तहत इन फैसलों को लागू करने के लिए कमेटियां बनाई जाएंगी जो इस बात को सुनिश्चित करेंगी कि नियमों का पालन ठीक से हो रहा है। एक दूसरे से गले मिलने और हाथ मिलाने पर पूरी तरह पाबंदी होगी और मस्जिदों में आने वालों को मास्क पहनना जरूरी होगा। नमाज के दौरान अपने चेहरे को छूने वाले हिस्से से बचा जाएगा।
सहरी और इफ्तार की तैयारियां इस बार मस्जिदों में नहीं होंगी। एतेकाज को भी घर में करें तो बेहतर होगा। तमाम मस्जिद वहां के करीबी पुलिस स्टेशन के संपर्क में रहेंगे और उनका सहयोग करते रहेंगे। मस्जिद प्रबंधन और स्थानीय पुलिस को निर्देश दिए गए हैं कि वो सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह पालन करवाएं। सरकार के पास ये हक होगा कि वह इन नियमों के पालन में किसी भी तरह की ढील होने पर और सख्ती कर सके।
जाहिर है, कोरोना के खतरे को देखते हुए ये एक बहुत बड़ी चिंता का विषय था कि आखिर कैसे रमजान के महीने में लोगों को एक दूसरे से दूरी बनाकर रखने को राजी किया जाए और कैसे इसकी पवित्रता बरकरार रखते हुए अवाम की हिफाजत की जा सके। अब ये देखने वाली बात होगी कि मौलाना अपने अपने इलाकों में कितनी सख्ती और बेहतर तरीके से इन निर्देशों का पालन करवा सकते हैं।
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