Benefits Of Privatization Of Airports And Bringing Ppp In This Sector – हवाई अड्डों के निजीकरण और सार्वजनिक निजी भागीदारी की तैयारी, ये होंगे फायदे




न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Sat, 16 May 2020 06:37 PM IST

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बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी से सार्वजनिक क्षेत्र में आवश्यक निवेशों को जुटाने के अलावा सेवा आपूर्ति, विशेषज्ञता, उद्यमिता और व्यावसायिक कौशल में दक्षता आती है। हैदराबाद और बेंगलुरु में ग्रीन फील्ड हवाई अड्डों के विकास के लिए पीपीपी मॉडल से बुनियादी ढांचा परियोजना में हवाई अड्डों पर विश्व श्रेणी का बुनियादी ढांचा जुटाने, हवाई अड्डे पर आने वाले यात्रियों को कुशल और समयबद्ध सेवाओं की आपूर्ति करने और बिना किसी निवेश के भारतीय विमान प्राधिकरण की राजस्व प्राप्ति को बढ़ाने में मदद मिली है। 

वर्तमान में पीपीपी मॉडल के तहत प्रबंध किए जा रहे हवाई अड्डों में दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, हैदराबाद और कोच्चि शामिल हैं। भारत में पीपीपी हवाई अड्डों ने हवाई अड्डा सेवा गुणवत्ता (एएसक्यू) के रूप में हवाई अड्डा अंतर्राष्ट्रीय परिषद (एसीआई) द्वारा अपनी संबंधित श्रेणियों में शीर्ष पांच हवाई अड्डों में रैंक हासिल की है। इन पीपीपी अनुभवों ने विश्व स्तर के हवाई अड्डों का सृजन करने में मदद की है। इसने देश के अन्य भागों में हवाई अड्डों के विकास और एयर नेविगेशन बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करके राजस्व में बढ़ोत्तरी करने में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की मदद भी की है।

घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा में बढ़ोतरी के साथ-साथ अधिकांश हवाई अड्डों पर भारी भीड़ तथा एक दशक से अधिक समय पूर्व निजीकरण किए गए पांच हवाई अड्डों पर मजबूत यातायात वृद्धि ने अनेक अंतरराष्ट्रीय परिचालकों और निवेशकों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। अंतरराष्ट्रीय दिलचस्पी के रूप में बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में हवाई अड्डा क्षेत्र एक शीर्ष प्रतियोगी क्षेत्र है। अंतरराष्ट्रीय परिषद और निवेशक 30-40 लाख यात्री से अधिक क्षमता वाले ब्राउन फील्ड हवाई अड्डों के विस्तार में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। हवाई अड्डा क्षेत्र  पीपीपी मॉडल को अपनाने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने का तुरंत अवसर उपलब्ध करा सकता है।

हवाई अड्डे के प्रबंधन मॉडल के प्रमुख बिंदु

  • भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाजार के रूप में उभरा है। देश में प्रमुख हवाई अड्डों की संख्या साल 2007 में 12 से बढ़कर साल 2017 में 27 हो गई है।
  • हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2008 को हवाई अड्डों, एयरलाइंस और यात्रियों के हितों की रक्षा और मुख्य रूप से हवाई अड्डों पर प्रदान की गई वैमानिकी सेवाओं के टैरिफ को नियंत्रित करने के लिये एक स्वतंत्र प्राधिकरण के गठन हेतु अधिनियमित किया गया था।
  • एयरोनॉटिकल सेवाओं में वायु यातायात प्रबंधन के लिए नौपरिवहन, निगरानी और सहायक संचार, लैंडिंग संबंधी सेवाएं, एक विमान के हाउसिंग या पार्किंग के लिए सेवाएं, जमीन पर सुरक्षा, ईंधन और हैंडलिंग सेवाएं आदि शामिल हैं|
  • इस क्षेत्र में घातांकीय (एक्सपोनेंशियल)  रूप से वृद्धि ने सरकार को 2018 में संशोधन विधेयक का प्रस्ताव लाने के लिए प्रेरित किया है।
  • एयरलाइन/एयरपोर्ट क्षेत्र में प्रवेश करने वाले निजी ऑपरेटरों की संख्या में वृद्धि के कारण हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण पर भारी दबाव रहा है।
  • कुछ प्रमुख हवाई अड्डे अब सार्वजनिक-निजी साझेदारी के तहत काम कर रहे हैं। यह महसूस किया गया था कि अगर बहुत से हवाई अड्डे प्राधिकरण के दायरे में आते हैं  तो टैरिफ को प्रभावी ढंग से निर्धारित करना और प्रमुख हवाई अड्डों के सेवा मानकों की निगरानी करना मुश्किल होगा।
  • बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निजी भागीदारों को शामिल करने के लिए पूर्व निर्धारित टैरिफ या टैरिफ आधारित बोली प्रक्रिया जैसे कई व्यावसायिक मॉडल सामने आए हैं। हवाई अड्डा परियोजना उस रियायतकर्त्ता को दी जाती है जो सबसे कम टैरिफ प्रदान करता है।
  • इस मॉडल में  सरकार ने पाया है कि बाज़ार स्वयं ही प्रभार निर्धारित करता है। परियोजना पर फैसला किए जाने के बाद नियामक को शुल्क तय करने की आवश्यकता नहीं है। 2008 के अधिनियम में ऐसी जटिलताओं को शामिल नहीं किया गया है।
  • इस प्रकार, भारत के हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2018  में एक बार संशोधन प्रभावी हो जाने के बाद  सालाना 3.5 मिलियन से अधिक यात्रियों को संभालने वाले एयरोड्रोम को प्रमुख हवाई अड्डों के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
  • हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण अधिनियम महत्त्वपूर्ण रूप से  मौजूदा व्यापार मॉडल और टैरिफ सिस्टम के साथ 2008 के अधिनियम की धारा 13 को अपडेट करना चाहता है। इसका मतलब है प्रमुख हवाई अड्डों पर एयरोनॉटिकल सेवाओं के लिए टैरिफ में परिवर्तन होगा।
  • अधिनियम की धारा 13 में विस्तृत प्रावधान हैं जो हवाई अड्डों से संबंधित सुविधाओं के विकास में पूंजी व्यय और समय पर निवेश को आगे बढ़ाता है। उदाहरण के लिए प्रदान की गई सेवा, इसकी गुणवत्ता और अन्य प्रासंगिक कारक, दक्षता में सुधार के लिये लागत तथा प्रमुख हवाई अड्डों का आर्थिक और व्यावहारिक संचालन।

सार

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की चौथी किस्त की घोषणा करने हुए हवाई अड्डों  को लेकर भी घोषणाएं कीं। इसके तहत एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने छह में से तीन हवाई अड्डों को अनुबंध प्रदान किया है। सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी के माध्यम से इसके लिए काम होगा। उन्होंने कहा कि पीपीपी मॉडल के तहत छह नए एयरपोर्ट्स की नीलामी होगी। जानिए हवाई अड्डों का निजीकरण करने और सार्वजनिक निजी भागीदारी लाने से क्या फायदा होगा…

विस्तार

बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी से सार्वजनिक क्षेत्र में आवश्यक निवेशों को जुटाने के अलावा सेवा आपूर्ति, विशेषज्ञता, उद्यमिता और व्यावसायिक कौशल में दक्षता आती है। हैदराबाद और बेंगलुरु में ग्रीन फील्ड हवाई अड्डों के विकास के लिए पीपीपी मॉडल से बुनियादी ढांचा परियोजना में हवाई अड्डों पर विश्व श्रेणी का बुनियादी ढांचा जुटाने, हवाई अड्डे पर आने वाले यात्रियों को कुशल और समयबद्ध सेवाओं की आपूर्ति करने और बिना किसी निवेश के भारतीय विमान प्राधिकरण की राजस्व प्राप्ति को बढ़ाने में मदद मिली है। 

वर्तमान में पीपीपी मॉडल के तहत प्रबंध किए जा रहे हवाई अड्डों में दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, हैदराबाद और कोच्चि शामिल हैं। भारत में पीपीपी हवाई अड्डों ने हवाई अड्डा सेवा गुणवत्ता (एएसक्यू) के रूप में हवाई अड्डा अंतर्राष्ट्रीय परिषद (एसीआई) द्वारा अपनी संबंधित श्रेणियों में शीर्ष पांच हवाई अड्डों में रैंक हासिल की है। इन पीपीपी अनुभवों ने विश्व स्तर के हवाई अड्डों का सृजन करने में मदद की है। इसने देश के अन्य भागों में हवाई अड्डों के विकास और एयर नेविगेशन बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करके राजस्व में बढ़ोत्तरी करने में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की मदद भी की है।

घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा में बढ़ोतरी के साथ-साथ अधिकांश हवाई अड्डों पर भारी भीड़ तथा एक दशक से अधिक समय पूर्व निजीकरण किए गए पांच हवाई अड्डों पर मजबूत यातायात वृद्धि ने अनेक अंतरराष्ट्रीय परिचालकों और निवेशकों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। अंतरराष्ट्रीय दिलचस्पी के रूप में बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में हवाई अड्डा क्षेत्र एक शीर्ष प्रतियोगी क्षेत्र है। अंतरराष्ट्रीय परिषद और निवेशक 30-40 लाख यात्री से अधिक क्षमता वाले ब्राउन फील्ड हवाई अड्डों के विस्तार में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। हवाई अड्डा क्षेत्र  पीपीपी मॉडल को अपनाने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने का तुरंत अवसर उपलब्ध करा सकता है।

हवाई अड्डे के प्रबंधन मॉडल के प्रमुख बिंदु

  • भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाजार के रूप में उभरा है। देश में प्रमुख हवाई अड्डों की संख्या साल 2007 में 12 से बढ़कर साल 2017 में 27 हो गई है।
  • हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2008 को हवाई अड्डों, एयरलाइंस और यात्रियों के हितों की रक्षा और मुख्य रूप से हवाई अड्डों पर प्रदान की गई वैमानिकी सेवाओं के टैरिफ को नियंत्रित करने के लिये एक स्वतंत्र प्राधिकरण के गठन हेतु अधिनियमित किया गया था।
  • एयरोनॉटिकल सेवाओं में वायु यातायात प्रबंधन के लिए नौपरिवहन, निगरानी और सहायक संचार, लैंडिंग संबंधी सेवाएं, एक विमान के हाउसिंग या पार्किंग के लिए सेवाएं, जमीन पर सुरक्षा, ईंधन और हैंडलिंग सेवाएं आदि शामिल हैं|
  • इस क्षेत्र में घातांकीय (एक्सपोनेंशियल)  रूप से वृद्धि ने सरकार को 2018 में संशोधन विधेयक का प्रस्ताव लाने के लिए प्रेरित किया है।
  • एयरलाइन/एयरपोर्ट क्षेत्र में प्रवेश करने वाले निजी ऑपरेटरों की संख्या में वृद्धि के कारण हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण पर भारी दबाव रहा है।
  • कुछ प्रमुख हवाई अड्डे अब सार्वजनिक-निजी साझेदारी के तहत काम कर रहे हैं। यह महसूस किया गया था कि अगर बहुत से हवाई अड्डे प्राधिकरण के दायरे में आते हैं  तो टैरिफ को प्रभावी ढंग से निर्धारित करना और प्रमुख हवाई अड्डों के सेवा मानकों की निगरानी करना मुश्किल होगा।
  • बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निजी भागीदारों को शामिल करने के लिए पूर्व निर्धारित टैरिफ या टैरिफ आधारित बोली प्रक्रिया जैसे कई व्यावसायिक मॉडल सामने आए हैं। हवाई अड्डा परियोजना उस रियायतकर्त्ता को दी जाती है जो सबसे कम टैरिफ प्रदान करता है।
  • इस मॉडल में  सरकार ने पाया है कि बाज़ार स्वयं ही प्रभार निर्धारित करता है। परियोजना पर फैसला किए जाने के बाद नियामक को शुल्क तय करने की आवश्यकता नहीं है। 2008 के अधिनियम में ऐसी जटिलताओं को शामिल नहीं किया गया है।
  • इस प्रकार, भारत के हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2018  में एक बार संशोधन प्रभावी हो जाने के बाद  सालाना 3.5 मिलियन से अधिक यात्रियों को संभालने वाले एयरोड्रोम को प्रमुख हवाई अड्डों के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
  • हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण अधिनियम महत्त्वपूर्ण रूप से  मौजूदा व्यापार मॉडल और टैरिफ सिस्टम के साथ 2008 के अधिनियम की धारा 13 को अपडेट करना चाहता है। इसका मतलब है प्रमुख हवाई अड्डों पर एयरोनॉटिकल सेवाओं के लिए टैरिफ में परिवर्तन होगा।
  • अधिनियम की धारा 13 में विस्तृत प्रावधान हैं जो हवाई अड्डों से संबंधित सुविधाओं के विकास में पूंजी व्यय और समय पर निवेश को आगे बढ़ाता है। उदाहरण के लिए प्रदान की गई सेवा, इसकी गुणवत्ता और अन्य प्रासंगिक कारक, दक्षता में सुधार के लिये लागत तथा प्रमुख हवाई अड्डों का आर्थिक और व्यावहारिक संचालन।




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