सार
हमेशा फोन पर उपलब्ध रहने वाले और खबरें देने वाले अजीत जोगी लंबे समय तक कांग्रेस के प्रवक्ता रहे और उन दिनों जब टीवी पत्रकारिता का शैशवकाल था, अजीत जोगी की बाइट खासी दिलचस्प और टीआरपी वाली होती थी…
विस्तार
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे अजीत जोगी अब नहीं रहे, लेकिन एक राजनेता के रूप में उनकी सियासी पारी को हमेशा याद रखा जाएगा। अपनी वाकपटुता और खुशमिजाजी के लिए जोगी रायपुर, भोपाल से लेकर दिल्ली तक के पत्रकारों के बीच बेहद लोकप्रिय थे।
हमेशा फोन पर उपलब्ध रहने वाले और खबरें देने वाले अजीत जोगी लंबे समय तक कांग्रेस के प्रवक्ता रहे और उन दिनों जब टीवी पत्रकारिता का शैशवकाल था, अजीत जोगी की बाइट खासी दिलचस्प और टीआरपी वाली होती थी। जोगी के साथ हर पत्रकार का अपना कोई न कोई खट्टा-मीठा अनुभव है जिसे इस वक्त हर कोई साझा करना चाहेगा।
एक राजनीतिक पत्रकार के नाते अजीत जोगी से मेरा भी खासा मिलना जुलना होता था। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 24 अकबर रोड स्थित मुख्यालय में जोगी नियमित बैठते थे और पत्रकारों के लिए उपलब्ध रहते थे।
अपने राजनीतिक जीवन के पहले दिन से ही कांग्रेस नेतृत्व के साथ उनके बेहद करीबी रिश्ते थे। राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक दस जनपथ में उनकी सीधी पहुंच थी। इसलिए उनके पास पार्टी के भीतर बाहर की बहुत सूचनाएं होती थीं और पत्रकारों को उनके साथ गपशप करने में इसलिए भी दिलचस्पी होती थी कि इसी गपशप में काफी कुछ जानकारी मिल जाती थीं।
यूं तो उनके साथ मेरे कई छोटे-बड़े अनुभव रहे हैं, लेकिन एक सबसे दिलचस्प अनुभव जो एक पत्रकार और एक राजनेता के दुधारी रिश्तों की एक बानगी है, उसे साझा करते हुए मैं अजीत जोगी को याद करना चाहूंगा।
बात उन दिनों की है जब जोगी कांग्रेस में थे और 2008 के विधानसभा चुनाव होने वाले थे। केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी और कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रियरंजन दासमुंशी केंद्रीय मंत्री और छत्तीसगढ़ के प्रभारी थे।
उन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति में अजीत जोगी कांग्रेस की सबसे मजबूत धुरी थे और उनकी मर्जी के बिना कोई भी फैसला लेना मुमकिन नहीं होता था। इसकी एक वजह ये भी थी कि राजीव गांधी के जमाने से ही उन्हें कांग्रेस नेतृत्व और नेहरू गांधी परिवार का जबर्दस्त भरोसा हासिल था।
कांग्रेस के सोनिया काल में भी जोगी की दस जनपथ तक सीधी पहुंच थी और एक बार पार्टी से निलंबन के बावजूद उन्हें फिर दस जनपथ का आशीर्वाद मिल चुका था और वह न सिर्फ कांग्रेस में अपनी पुरानी स्थिति में लौटे थे बल्कि राज्य की राजनीति में उनकी इस कदर फिर चलने लगी थी कि उन्हें अनदेखा करके कोई फैसला नहीं लिया जा सकता था।
जबकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अन्य नेता जोगी के खिलाफ लगातार गोलबंद होते रहते थे, लेकिन जोगी सब पर भारी थे।
विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवार तय करने के लिए मुंशी लगातार राज्य के कांग्रेस नेताओं से विचार विमर्श कर रहे थे। इसी सिलसिले में वह दिल्ली स्थिति अजीत जोगी के घर पर दोपहर को भोजन पर गए और दोनों के बीच देर तक लंबी बातचीत हुई।
इस बातचीत में जोगी के बेटे अमित जोगी भी मौजूद रहे और उनके हस्तक्षेप को लेकर प्रियरंजन दासमुंशी बेहद असहज भी थे और बैठक में खासी नोंकझोंक भी हुई। जिस दिन यह बैठक हुई उसी रात मुंशी को जबरदस्त ब्रेन स्ट्रोक हुआ और वह कोमा में चले गए।
इसके बाद उन्हें राजधानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया और फिर वह कभी होश में नहीं आ सके। मेरे अपने सूत्रों से मुझे इस बैठक की पूरी जानकारी मिली जिसे मैने विस्तार से मूल रूप से मध्य प्रदेश के उस अखबार जिसका मैं राजनीतिक संपादक था और जो दिल्ली से भी प्रकाशित हो रहा था, में यह खबर लिखी, जिसे उस अखबार के प्रधान संपादक आलोक मेहता जी ने पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा।
खबर छपते ही कांग्रेस के भीतर बड़ी हलचल हुई। कई नेताओं के फोन मुझे और आलोक जी को आए। लेकिन जोगी जो मुझे व आलोक जी को बहुत अच्छी तरह जानते थे, ने शाम को सौ करोड़ रुपये का मानहानि का दावा करते हुए कानूनी नोटिस भेज दिया।
आलोक मेहता जी ने मुझे बुलाकर नोटिस दिखाया और पूछा कि क्या करना है। मैंने कहा भाई साहब आप संपादक हैं जो आप कहेंगे वही करूंगा, लेकिन मेरी खबर पक्की है। आलोक जी ने कहा ठीक है फिर लड़ाई लड़ी जाएगी। मैंने अपने सूत्रों को फिर टटोला।
उन्होंने कहा कि जो छपा है वह एक-एक बात पक्की है और आप पीछे मत हटिएगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह और भी मसाला देंगे, जो जोगी और उनके परिवार को मुश्किल में डाल सकता है।
लेकिन मेरा या आलोक जी का इरादा अजीत जोगी के खिलाफ कोई राजनीतिक कैंपेन चलाने या उन्हें बदनाम करने का नहीं था। हमनें पत्रकार के तौर पर जो खबर मिली उसे लिखा था।
लेकिन फिर भी हमने नोटिस तो अखबार के कानूनी सलाहकार को भेजा जवाब बनाने के लिए और अपने सूत्रों से और भी मसाला देने को कहा। लेकिन अगले दिन जोगी का फोन मुझे आया।
उन्होंने पहले तो अपने रिश्तों की दुहाई देते हुए कहा कि हमारे आपके इतने अच्छे रिश्ते हैं कि हमें आपसे झगड़ा नहीं करना है। मैंने कहा कि फिर आपने कानूनी नोटिस क्यों भेजा।
सामान्य सा बयान देकर अपना पक्ष रख देते हम उसे छाप देते। जोगी बोले कई बार कुछ मजबूरियां होती हैं जिसके तहत ये सब करना होता है। लेकिन मेरी तरफ से कोई शिकायत नहीं है।
आपने अपनी जानकारी के आधार पर जो लिखा है उस पर मुझे अब कुछ नहीं कहना है क्योंकि मेरा जो भला-बुरा होना था तो वह हो चुका है। मैंने कहा कि फिर नोटिस का क्या करेंगे। जोगी बोले आप भी भूल जाइए और मैं भी भूल जाऊंगा। मुझे राजनीति में रहना है और आपको पत्रकारिता में।
आप अपना काम करते रहिए और मैं अपना। साथ ही उन्होंने किसी दिन मिलने और चाय पीने का निमंत्रण देते हुए बात खत्म की। उसके बाद न उन्होंने नोटिस को आगे बढ़ाया और न ही मैंने उनके खिलाफ कोई दूसरी रिपोर्ट छापी।
मैं नोटिस भेजने की उनकी मजबूरी समझ गया था। शायद उनके ऊपर परिवार और समर्थकों का दबाव रहा होगा। इसके बाद कई बार अजीत जोगी जी से मुलाकात हुई। हंसी मजाक भी हुए। उन्होंने कांग्रेस छोड़ी और अपनी पार्टी बनाई।
उनके एक बेहद करीबी रहे दिल्ली कांग्रेस के नेता डा. नरेश कुमार से अकसर जोगी जी के बारे में बात होती रहती थी। गजब की जिजीविषा वाले नेता थे अजीत जोगी। राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में तमाम झंझावातों को झेलने के बावजूद कभी भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।