राजीव सिन्हा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Fri, 29 May 2020 06:21 AM IST
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वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई इस सुनवाई में याचिकाकर्ता महिला की ओर से पेश वकील दुष्यंत पाराशर ने पीठ से कहा कि उनकी मुवक्किल के पिता गोपाल राम स्वतंत्रता सेनानी थे, जिस कारण उन्हें स्वतंत्रता सेनानी पेंशन मिलता था। उनकी तलाकशुदा बेटी तुलसी उनके साथ रहती थी और वह पूरी तरह से अपने माता पिता पर आश्रित थी। पिता की मृत्यु के बाद तुलसी पूरी तरह से अपनी मां कौशल्या पर आश्रित हो गई।
अपने जीवनकाल में कौशल्या ने जनवरी, 2018 में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया कि स्वतंत्रता सेनानी पेंशन का लाभ उसके बाद बेटी को मिले, क्योंकि उनकी बेटी पूरी तरह से उसी पर निर्भर है और उसके पास आमदनी का कोई और जरिया भी नहीं है। सितंबर 2018 में उनके इस आग्रह को नकार दिया गया, जिसके बाद तुलसी ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना के प्रावधानों में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। जिसके बाद तुलसी ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 2016 के फैसले का वकील ने दिया हवाला
याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत पाराशर ने पीठ के समक्ष पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की तरफ से साल 2016 में दिए उस फैसले का हवाला दिया जिसमें इसी तरह की राहत दी गई थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को प्रगतिशील और सामाजिक रूप से रचनात्मक दृष्टिकोण वाला बताया था। साथ ही पाराशर ने साल 2012 के उस सर्कुलर का भी हवाला दिया है, जिसमें तलाकशुदा बेटी को पेंशन देने का प्रावधान है।