Coronvirus News In Hindi : American Oil Crashes Below 0 Dollor A Barrel, A Record Low, After Year 1983, Price Gone In Minus – कोरोना महामारी की मार से तेल बाजार ध्वस्त, पहली बार माइनस में पहुंची कीमत




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वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की वजह से सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं। इस बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में भी भारी गिरावट देखने को मिली है। अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के लिए सोमवार का दिन इतिहास में सबसे बुरा दिन रहा। तेल की घटी हुई मांग के कारण डब्ल्यूटीआई वायदा भाव 0.97 डॉलर तक पहुंच गया। जबकि तेल की कीमत -37.63 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई। 

 

कॉफी भी सस्ता हुआ 
अमेरिकी ऑयल बाजार में कारोबार की शुरुआत 18.27 डॉलर प्रति बैरल से हुई और घटते-घटते पहले एक डॉलर के निम्नतम स्तर पर पहुंच गई और मार्केट बंद होते-होते यह निगेटिव में पहुंच गई। ध्यान देने योग्य बात ये है कि कच्चे तेल का भाव अमेरिका में एक कप कॉफी से भी सस्ता हो गया है। 

क्यों हुआ ऐसा? 
कोरोना वायरस महामारी के कारण मांग निचले स्तर पर पहुंचने और इस साल कंपनियों के बदतर नतीजे आने की आशंका से तेल की कीमतों में यह गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, ब्रेंट क्रूड की कीमत 6.3 फीसदी की गिरावट के साथ 26.32 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंंच गई।

इन वजहों से गिरी कीमत
कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए दुनियाभर में लॉकडाउन और यात्राओं पर पाबंदी चल रही है। इसके कारण क्रूड की मांग में भारी गिरावट आई है। सऊदी अरब और रूस के बीच प्राइस वॉर शुरू होने से भी तेल की कीमत और गिरी है। हालांकि, इस महीने के शुरू में दोनों देशों और कुछ अन्य देशों ने मिलकर तेल की कीमत बढ़ाने के लिए उत्पादन में करीब 1 करोड़ बैरल रोजाना की कटौती करने का फैसला किया, लेकिन कीमत में गिरावट जारी है।  

तेल का कोई खरीदार नहीं 
बता दें कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट मई महीने में की जाने वाली सप्लाई के लिए है। कच्चे तेल की कीमतें माइनस में जाने का ये मतलब ये है कि मई महीने में कच्चे तेल की सप्लाई के लिए जो ठेके दिए जाते हैं वो अब निगेटिव में चला गया है। तेल उत्पादक देश दुनिया के दूसरे देशों से तेल खरीदने को कह रहे हैं, लेकिन वैश्विक लॉकडाउन के कारण कोई भी देश तेल नहीं खरीद रहा, इसलिए कीमत ऐतिहासिक स्तर पर इतनी गिर गई।

स्टोरेज की समस्या बढ़ी
इस गिरावट के मायने यह है कि तेल उत्पादक देश अब खरीदारों को पैसे देकर तेल खरीदने की गुजारिश कर रहे हैं क्योंकि अगर तेल नहीं बिका तो स्टोरेज की समस्या भी बढ़ेगी।वहीं, लॉकडाउन की वजह से दुनियाभर में लोग घरों में हैं और तेल की मांग बेहद कम हो गई है। स्टोरेज की समस्या को देखते हुए कई तेल फर्म टैंकर किराए पर ले रही हैं ताकि बढ़ा हुआ स्टॉक रखा जा सकें। लेकिन इसका असर अमेरिका में तेल कीमतों पर हुआ और वो नेगेटिव यानी जीरो से नीचे चली गईं। 

 

 

 

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की वजह से सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं। इस बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में भी भारी गिरावट देखने को मिली है। अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के लिए सोमवार का दिन इतिहास में सबसे बुरा दिन रहा। तेल की घटी हुई मांग के कारण डब्ल्यूटीआई वायदा भाव 0.97 डॉलर तक पहुंच गया। जबकि तेल की कीमत -37.63 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई। 

 

कॉफी भी सस्ता हुआ 
अमेरिकी ऑयल बाजार में कारोबार की शुरुआत 18.27 डॉलर प्रति बैरल से हुई और घटते-घटते पहले एक डॉलर के निम्नतम स्तर पर पहुंच गई और मार्केट बंद होते-होते यह निगेटिव में पहुंच गई। ध्यान देने योग्य बात ये है कि कच्चे तेल का भाव अमेरिका में एक कप कॉफी से भी सस्ता हो गया है। 

क्यों हुआ ऐसा? 
कोरोना वायरस महामारी के कारण मांग निचले स्तर पर पहुंचने और इस साल कंपनियों के बदतर नतीजे आने की आशंका से तेल की कीमतों में यह गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, ब्रेंट क्रूड की कीमत 6.3 फीसदी की गिरावट के साथ 26.32 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंंच गई।

इन वजहों से गिरी कीमत
कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए दुनियाभर में लॉकडाउन और यात्राओं पर पाबंदी चल रही है। इसके कारण क्रूड की मांग में भारी गिरावट आई है। सऊदी अरब और रूस के बीच प्राइस वॉर शुरू होने से भी तेल की कीमत और गिरी है। हालांकि, इस महीने के शुरू में दोनों देशों और कुछ अन्य देशों ने मिलकर तेल की कीमत बढ़ाने के लिए उत्पादन में करीब 1 करोड़ बैरल रोजाना की कटौती करने का फैसला किया, लेकिन कीमत में गिरावट जारी है।  

तेल का कोई खरीदार नहीं 
बता दें कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट मई महीने में की जाने वाली सप्लाई के लिए है। कच्चे तेल की कीमतें माइनस में जाने का ये मतलब ये है कि मई महीने में कच्चे तेल की सप्लाई के लिए जो ठेके दिए जाते हैं वो अब निगेटिव में चला गया है। तेल उत्पादक देश दुनिया के दूसरे देशों से तेल खरीदने को कह रहे हैं, लेकिन वैश्विक लॉकडाउन के कारण कोई भी देश तेल नहीं खरीद रहा, इसलिए कीमत ऐतिहासिक स्तर पर इतनी गिर गई।

स्टोरेज की समस्या बढ़ी
इस गिरावट के मायने यह है कि तेल उत्पादक देश अब खरीदारों को पैसे देकर तेल खरीदने की गुजारिश कर रहे हैं क्योंकि अगर तेल नहीं बिका तो स्टोरेज की समस्या भी बढ़ेगी।वहीं, लॉकडाउन की वजह से दुनियाभर में लोग घरों में हैं और तेल की मांग बेहद कम हो गई है। स्टोरेज की समस्या को देखते हुए कई तेल फर्म टैंकर किराए पर ले रही हैं ताकि बढ़ा हुआ स्टॉक रखा जा सकें। लेकिन इसका असर अमेरिका में तेल कीमतों पर हुआ और वो नेगेटिव यानी जीरो से नीचे चली गईं। 

 

 

 






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