नेपाल में राजनीतिक घटनाक्रम मोड़ ले रहा है। वहां की संसद में नक्शे में बदलाव को लेकर पेश हुआ प्रस्ताव भारत के कूटनीतिक जानकारों में चिंता पैदा करने लगा है।
पूर्व विदेश सचिव शशांक और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के 90 के दशक में सदस्य रहे प्रोफेसर एसडी मुनि ने इसके बाबत हालात चिंताजनक बताए हैं।
दोनों का मानना है कि नेपाल में जो चल रहा है, वह भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
नेपाल का राष्ट्रवाद-भारत विरोधी
पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि भारत का विरोध वहां का नया राष्ट्रवाद है। यह पहले नहीं था। प्रो. एसडी मुनि भी इसे सही ठहराते हैं। वह कहते हैं कि चीन ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार बचाई।
ओली नेपाल के राष्ट्रवादी नेता के रूप में उभरे हैं। भारत विरोधी रुख रखने वाले नेपाल में राष्ट्रवादी के तौर पर जाने जाने लगे हैं। प्रधानमंत्री ओली इस समय सबसे बड़े राष्ट्रवादी नेता है।
शशांक कहते हैं कि इससे भी चौकाने वाली बात यह है कि नेपाली कांग्रेस, प्रजातांत्रिक समेत अन्य राजनीतिक दल भी नेपाल के नए नक्शे का समर्थन करने लगे हैं।
इसमें कालापानी, लिपुलेख, लिंपिया धूरा इसमें शामिल है। शशांक के अनुसार 1938-39 के दौरान नेपाल और चीन में समझौता हुआ था। तब नेपाल, चीन के बीच में नक्शे का आदान-प्रदान हुआ था।
इसमें कालापानी क्षेत्र शामिल नहीं था। प्रो. मुनि कहते हैं कि 2015 में प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री ओली ने संयुक्त वक्तव्य में लिपुलेख को भारत का हिस्सा बताया गया है।
प्रो. मुनि कहते हैं कि दोनों देशों के दस्तावेजों में काफी कुछ है। मुझे लगता है कि संवाद की सकारात्मक पहल करके नेपाल के साथ मुद्दा सुलझा जाना चाहिए।
संयम से काम लेने की जरूरत
पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि नेपाल का चीन के करीब जाना अच्छा संकेत नहीं है। दुखद बात यह है कि नेपाल में चीन का विरोध नहीं है। भारत का विरोध वहां के राष्ट्रवाद से जोड़ा रहा है।
जनमानस में भारत विरोधी भावना बढ़ती जा रही है। नेपाल के प्रधानमंत्री, वहां की सरकार भारत के साथ अब सीमा बंद करने, नेपाल के भारत में मौजूद लोगों को वापस बुलाने तक के लिए तैयार दिखाई पड़ रहे हैं।
शशांक के मुताबिक एक तरफ नेपाल में इस तरह की भावना आकार ले रही है, दूसरी तरफ हमारे देश के नेता और लोग बेलगाम बोली बोल रहे हैं। मेरा सुझाव है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
इस समय संयम से काम लेने की जरूरत है। पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। नेपाल का नासूर बनना ठीक नहीं है। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद विशेष ध्यान देना चाहिए।
सार
- हमारे लोगों को बयान देने में सावधानी बरतनी चाहिए- शशांक
- नेपाल के साथ बेहतर संवाद की जरूरत- प्रो. एसडी मुनि
विस्तार
नेपाल में राजनीतिक घटनाक्रम मोड़ ले रहा है। वहां की संसद में नक्शे में बदलाव को लेकर पेश हुआ प्रस्ताव भारत के कूटनीतिक जानकारों में चिंता पैदा करने लगा है।
पूर्व विदेश सचिव शशांक और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के 90 के दशक में सदस्य रहे प्रोफेसर एसडी मुनि ने इसके बाबत हालात चिंताजनक बताए हैं।
दोनों का मानना है कि नेपाल में जो चल रहा है, वह भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
नेपाल का राष्ट्रवाद-भारत विरोधी
पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि भारत का विरोध वहां का नया राष्ट्रवाद है। यह पहले नहीं था। प्रो. एसडी मुनि भी इसे सही ठहराते हैं। वह कहते हैं कि चीन ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार बचाई।
ओली नेपाल के राष्ट्रवादी नेता के रूप में उभरे हैं। भारत विरोधी रुख रखने वाले नेपाल में राष्ट्रवादी के तौर पर जाने जाने लगे हैं। प्रधानमंत्री ओली इस समय सबसे बड़े राष्ट्रवादी नेता है।
शशांक कहते हैं कि इससे भी चौकाने वाली बात यह है कि नेपाली कांग्रेस, प्रजातांत्रिक समेत अन्य राजनीतिक दल भी नेपाल के नए नक्शे का समर्थन करने लगे हैं।
इसमें कालापानी, लिपुलेख, लिंपिया धूरा इसमें शामिल है। शशांक के अनुसार 1938-39 के दौरान नेपाल और चीन में समझौता हुआ था। तब नेपाल, चीन के बीच में नक्शे का आदान-प्रदान हुआ था।
इसमें कालापानी क्षेत्र शामिल नहीं था। प्रो. मुनि कहते हैं कि 2015 में प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री ओली ने संयुक्त वक्तव्य में लिपुलेख को भारत का हिस्सा बताया गया है।
प्रो. मुनि कहते हैं कि दोनों देशों के दस्तावेजों में काफी कुछ है। मुझे लगता है कि संवाद की सकारात्मक पहल करके नेपाल के साथ मुद्दा सुलझा जाना चाहिए।
संयम से काम लेने की जरूरत
पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि नेपाल का चीन के करीब जाना अच्छा संकेत नहीं है। दुखद बात यह है कि नेपाल में चीन का विरोध नहीं है। भारत का विरोध वहां के राष्ट्रवाद से जोड़ा रहा है।
जनमानस में भारत विरोधी भावना बढ़ती जा रही है। नेपाल के प्रधानमंत्री, वहां की सरकार भारत के साथ अब सीमा बंद करने, नेपाल के भारत में मौजूद लोगों को वापस बुलाने तक के लिए तैयार दिखाई पड़ रहे हैं।
शशांक के मुताबिक एक तरफ नेपाल में इस तरह की भावना आकार ले रही है, दूसरी तरफ हमारे देश के नेता और लोग बेलगाम बोली बोल रहे हैं। मेरा सुझाव है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
इस समय संयम से काम लेने की जरूरत है। पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। नेपाल का नासूर बनना ठीक नहीं है। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद विशेष ध्यान देना चाहिए।