वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण
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गुरुचरण दास की गिनती अच्छे अर्थशास्त्र के समझदारों में होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 20 लाख करोड़ के कोविड-19 राहत पैकेज की घोषणा और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा तीन चरणों में इसका विवरण बताने के बाद गुरुचरण दास ने भी इस पर टिप्पणी की है।
दास ने अमर उजाला से विशेष बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार के पास पैसा होता तो वह सीधे एमएसएमई के कर्मियों, लोगों, गरीब, मजदूरों के हाथ में देती। ठीक वैसे ही जैसे किसानों के हाथ में देने का निर्णय लिया था। लेकिन लग रहा है कि केंद्र सरकार के पास पैसा नहीं है, इसलिए सरकार बैंक, वित्तीय संस्थानों आदि का सहारा लेकर लोन(कर्ज) के माध्यम से देश को संकट उबारने का प्रयास कर रही है।
लोगों के हाथ में पैसा देने से डिमांड बढ़ती, सप्लाई का दबाव बढ़ता, उत्पादन बढ़ता
गुरुचरण दास ने कहा कि राहत पैकेज के रुप में लोगों के हाथ में पैसा देने का रास्ता ज्यादा अच्छा था। इससे लोग(उपभोक्ता) पैसा होने पर बाजार जाते, सामान खरीदकर जरूरतें पूरी करते, बाजार में मांग बढ़ती। बाजार में मांग बढऩे पर आपूर्ति करने का दबाव बढ़ता और कंपनियां, उत्पादन क्षेत्र आपूर्ति के लिए उत्पादन बढ़ाने पर मजबूर होता।
क्योंकि उनके सामने कमाने, खड़े होने का अवसर दिखता। इसी तरह से पूंजी प्रवाह के अवसर बनते। अर्थशास्त्री का कहना है कि वह सहमत हैं। सरकार को इस तरह के ही कदम उठाने चाहिए थे। इससे पैसा सिस्टम(व्यवस्था) में जाता है। अभी वैसे भी लोग राशन, दवाई और जिविका के क्रम में तंग हैं। उन्हें अच्छी राहत मिल जाती।
गुरुचरण दास ने कहा कि अभी तीन चरणों की घोषणा से यही लग रहा है कि केंद्र सरकार बहुत सुरक्षित रास्ता अख्तियार करके चल रही है। वह बैंको, वित्तीय संस्थाओं आदि के जरिए एमएसएमई, कंपनियों, कारोबारियों, लोगों को कर्ज दे रही है। दास ने कहा कि सरकार का मकसद ऐसे आपात समय में कर्ज देकर लोगों से उनकी जिम्मेदारी को पूरी कराना, कंपनियों के कामकाज को गति देना है।
इससे अभी लोगों के हाथ में पैसा नहीं है। कामकाज शुरू करने के लिए उन्हें वित्तीय मदद चाहिए। वह बैंक आदि से लोन लेकर उसे पूरा करेंगे और बाद में कमाई करके सरकार की संस्थाओं, बैंको, वित्तीय संस्थानों को पैसा लोटा देंगे। गुरुचरण दास ने कहा कि इसके लिए सरकार को ब्याज की दर कम रखनी चाहिए थी।
अभी कम ब्याजदर की घोषणा नहीं हुई है। संभव है कि यह बाद में हो। इस तरह से आप कह सकते हैं कि सरकार ने कोई जोखिम लेने(बजट से न्यूनतम खर्चकर) से परहेज किया है।
सार
- सरकार बैंक, संस्थाओं से लोन का सुरक्षित रास्ता लेकर चल रही है
- किसानों की तरह ही सरकार को सीधे एमएसएमई के एम्प्लाई, गरीब, मजदूरों को पैसा देना चाहिए
- क्राइसिस का दौर है, ऐसे ही समय में रिफार्म का निर्णय लेने का अवसर होता है
विस्तार
गुरुचरण दास की गिनती अच्छे अर्थशास्त्र के समझदारों में होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 20 लाख करोड़ के कोविड-19 राहत पैकेज की घोषणा और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा तीन चरणों में इसका विवरण बताने के बाद गुरुचरण दास ने भी इस पर टिप्पणी की है।
दास ने अमर उजाला से विशेष बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार के पास पैसा होता तो वह सीधे एमएसएमई के कर्मियों, लोगों, गरीब, मजदूरों के हाथ में देती। ठीक वैसे ही जैसे किसानों के हाथ में देने का निर्णय लिया था। लेकिन लग रहा है कि केंद्र सरकार के पास पैसा नहीं है, इसलिए सरकार बैंक, वित्तीय संस्थानों आदि का सहारा लेकर लोन(कर्ज) के माध्यम से देश को संकट उबारने का प्रयास कर रही है।
लोगों के हाथ में पैसा देने से डिमांड बढ़ती, सप्लाई का दबाव बढ़ता, उत्पादन बढ़ता
गुरुचरण दास ने कहा कि राहत पैकेज के रुप में लोगों के हाथ में पैसा देने का रास्ता ज्यादा अच्छा था। इससे लोग(उपभोक्ता) पैसा होने पर बाजार जाते, सामान खरीदकर जरूरतें पूरी करते, बाजार में मांग बढ़ती। बाजार में मांग बढऩे पर आपूर्ति करने का दबाव बढ़ता और कंपनियां, उत्पादन क्षेत्र आपूर्ति के लिए उत्पादन बढ़ाने पर मजबूर होता।
क्योंकि उनके सामने कमाने, खड़े होने का अवसर दिखता। इसी तरह से पूंजी प्रवाह के अवसर बनते। अर्थशास्त्री का कहना है कि वह सहमत हैं। सरकार को इस तरह के ही कदम उठाने चाहिए थे। इससे पैसा सिस्टम(व्यवस्था) में जाता है। अभी वैसे भी लोग राशन, दवाई और जिविका के क्रम में तंग हैं। उन्हें अच्छी राहत मिल जाती।
सरकार ने सुरक्षित रास्ता अपनाया, ताकि कम खर्च हो और कर्ज वापस आ जाए
गुरुचरण दास ने कहा कि अभी तीन चरणों की घोषणा से यही लग रहा है कि केंद्र सरकार बहुत सुरक्षित रास्ता अख्तियार करके चल रही है। वह बैंको, वित्तीय संस्थाओं आदि के जरिए एमएसएमई, कंपनियों, कारोबारियों, लोगों को कर्ज दे रही है। दास ने कहा कि सरकार का मकसद ऐसे आपात समय में कर्ज देकर लोगों से उनकी जिम्मेदारी को पूरी कराना, कंपनियों के कामकाज को गति देना है।
इससे अभी लोगों के हाथ में पैसा नहीं है। कामकाज शुरू करने के लिए उन्हें वित्तीय मदद चाहिए। वह बैंक आदि से लोन लेकर उसे पूरा करेंगे और बाद में कमाई करके सरकार की संस्थाओं, बैंको, वित्तीय संस्थानों को पैसा लोटा देंगे। गुरुचरण दास ने कहा कि इसके लिए सरकार को ब्याज की दर कम रखनी चाहिए थी।
अभी कम ब्याजदर की घोषणा नहीं हुई है। संभव है कि यह बाद में हो। इस तरह से आप कह सकते हैं कि सरकार ने कोई जोखिम लेने(बजट से न्यूनतम खर्चकर) से परहेज किया है।
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