न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Fri, 08 May 2020 09:58 PM IST
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देश सेवा की उनमें कैसी जिद थी, इस सवाल पर राहुल शर्मा ने कहा- कर्नल आशुतोष जिस तरह की शख्सियत थे वैसा आयाम कम ही लोगों में देखने को मिलता था। जब हम स्कूल जाते थे तब भी उन्हें लगता था कि उन्हें देश सेवा करनी है। सेना में भर्ती होने के लिए वह फॉर्म भरते थे, उनके प्रेरणा स्रोत पिताजी थे जो हमेशा कहते थे कि लगे रहो। उनमें एक जिद थी कि मुझे सेना में ही जाना है।
उन्हें दो बार सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। मैंने अपने जीवन में उनसे बहादुर व्यक्ति नहीं देखा। ऐसा कहते हैं कि कश्मीर में उन्हें टाइगर के नाम से जाना जाता था। छोटी से छोटी बातों को भी वह ध्यान से सुनते थे। बहुआयामी योजना लेकर चलते थे इसलिए उनके अंदर का डर खत्म हो गया था। किसी भी टास्क को पूरा जरूर करते थे। इसलिए उनके सीनियर उनसे बहुत खुश थे।
कर्नल आशुतोष ने जवानों को ही अपना परिवार मान लिया था, इस सवाल पर राहुल शर्मा ने कहा- वह पूरी बटालियन के लिए पितातुल्य थे। 1500 जवानों का बटालियन वह संभालते थे। एक सैनिक का लक्ष्य यही होता है कि देश सबसे पहले। उन्होंने देश सेवा के लिए ही सेना को चुना था। सेना में अफसरों की पत्नियों का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। जब हमारे शेर युद्धभूमि में जाते हैं और दुश्मनों पर टूट पड़ते हैं तो हमारी शेरनियां अपने-अपने घरों में परिवारों की रक्षा करती हैं। ये शेर तभी बनते हैं जब शेरनियां अपने घरों में बाकी काम पूरे करती हैं।
12 चयन न होने पर भी हिम्मत नहीं हारी और 13वीं बार सफल हुए, इस सवाल पर राहुल शर्मा ने कहा- उनकी सोच इतनी मजबूत थी कि मैं हारूंगा नहीं। आशुतोष को लगता था कि मैं सेना के लिए ही बना हूं, लेकिन अभी स्वीकार नहीं किया जा रहा हूं। उन्होंने बार बार कोशिश की। 13 बार जब आखिरी कोशिश की तो बहुत नर्वस थे। वो सेना की हरी वर्दी पहनने के लिए ही बने थे और जिस तरह से वह आगे बढ़े पूरे देश ने देखा है।
उनसे कई बार पूछा जाता था कि 12 बार सेलेक्ट नहीं हुए तो वह एक ही जवाब देते थे कि मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं लेकिन तकनीकी सवालों में थोड़े बहुत अंतर से रह गया हूं। ये सही भी था और वह 13 प्रयास में सफल भी रहे। उन्हें हमेशा लगता था कि अगर मैं ये नहीं कर पाया तो क्या कर पाऊंगा। ये मेरा आखिरी मौका है, नहीं कर पाया तो क्या करूंगा।