बीबीसी हिंदी, Updated Sat, 02 May 2020 09:53 PM IST
इरफान खान कमर्शियल हिंदी सिनेमा में किसी अजूबे की तरह थे। बॉलीवुड की दुनिया में वो ‘मिसफिट’ थे। एक शानदार मिसफिट। वो इसलिए क्योंकि इरफान में किसी और बॉक्स नहीं, सिर्फ प्रतिभा के बॉक्स में टिक मार्क की तरह थे। प्रतिभा के अलावा इरफान खान के पास जो कुछ भी था, वो बॉलीवुड में उनके खिलाफ ही काम करता था। फिर चाहे वो उनका चेहरा-मोहरा हो, उनकी भाव-भंगिमा या फिर किसी आम इंसान जैसा तौर-तरीका। उनमें किसी भी तरह का कोई भड़काऊपन नहीं था और यही उन्हें सबसे अलग करता था। सच कहें तो इरफान खान जैसे अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के लिए ही बने थे और ऐसा हुआ भी। अपने करियर के आखिर में उनकीफिल्मों को दुनिया भर में शोहरत मिली। उनकी फिल्में ऑस्कर तक गईं। वहां तक गईं जिन पर हॉलीवुड के एंगली, वेस एंडर्सन, डैनी बॉयल और जॉन फॉरो को भी गर्व होता। क्या इरफान की भारतीय फिल्में कम प्रभावशाली थीं। नहीं, वो ज्यादा प्रभावशाली थीं और हमारे लिए ज्यादा प्यारी भी। आखिर इरफान ने इस सिनेमाई चुनौती पर जीत कैसे हासिल की? इसका जवाब पुराना है: खुद की तरह बनकर। इरफान खान सच में ऐसे थे जैसा हिंदी सिनेमा ने पहले कभी देखा ही नहीं था।